बच्चों की मौत से घिरी सरकार, प्रदेश भर में स्वास्थ्य मंत्री का पुतला दहन
कवर्धा ! कबीरधाम जिले मे 500 बच्चो की मौत के मामले मे सरकार अब घीरने लगी है वहीं अब इस मामले को लेकर युवक कांग्रेस ने प्रदेश भर के 90 विधान सभा मे स्वास्थ्य मंत्री का पुतला दहन कर

कवर्धा ! कबीरधाम जिले मे 500 बच्चो की मौत के मामले मे सरकार अब घीरने लगी है वहीं अब इस मामले को लेकर युवक कांग्रेस ने प्रदेश भर के 90 विधान सभा मे स्वास्थ्य मंत्री का पुतला दहन कर विरोध प्रर्दशन किया है साथ ही इन बच्चो के मौत की जिम्मेदारी को तय करने को लेकर जल्द ही युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के अगवाई मे कवर्धा जिले मे प्रर्दशन की तैयारी मे यहां के कार्यकत्र्ता जुट गये है। वही इस मामले मे शासन ने जिला प्रशासन को सख्त पत्र लिखकर रिर्पोट मांगा है। जिले के पंडरिया व बोड़ला के वनांचल मे संरक्षित बैगा जनजाति के लोग इसमे सर्वाधिक चपेट मे है। वैसे भी जिले मे निवासरत् विशेष पिछड़ी जनजातियों मे विलुप्तप्राय: हो रहे नागा बैगा है। बच्चों की मौत के मामले में अब लीपा पोती का खेल भी चालू हो गया है। जिले में बच्चों की सार्वाधिक मौत के मामले में जब पड़ताल की गई तो चौकाने वाले तथ्य सामने आये है। बच्चों की मौत के पीछे सबसे बड़ा कारण कम वजन के बच्चे पैदा होना रहा है जिसका प्रमुख कारण माँ का कुपोषित होना सामने आया है। जबकि जिले में महिला और बाल विकास योजना के तहत महतारी जतन योजना के तहत सरकार करोडो रुपये पाने की तरह बहा रही है। इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए आंगनबाड़ी केन्द्रों में प्रत्येक गर्भवती महिला को सप्ताह में छह दिन गर्म भोजन दिया जाना है। उल्लेखनीय है गर्भावस्था के समय यदि माता को पौष्टिक भोजन नहीं मिलता है तो वह रक्त अल्पता की शिकार हो जाती है. जिससे प्रसव के दौरान मौत का डर बना रहता है । माता के पौष्टिक आहार लेने से बच्चें का गर्भ में तथा प्रसव के बाद विकास अच्छा होता है.
50 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को योजना का लाभ नही - योजना का लाभ लेने शहर से लेकर गांव तक की करीब 50 फीसदी महिलाएं केंद्रों में पहुँच ही नहीं पा रही है। जिले में 1549 आंगनबाड़ी है। 8621 गर्भवती महिलाये पंजीकृत है इन केन्द्रो में गर्म भोजन लेने गर्भवती महिलाये पहुँच नहीं पा रही हैं। कई महिलाओं ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि आंगनबाड़ी केंद्रों में मिलने वाला खाना पौष्टिक नहीं होता है। हम केंद्र में रोज खाना खाने नहीं आ सकते हैं। हम अपना पेट भरने के लिए पूरे परिवार को भूखे नहीं रख सकती हैं। तो किसी का अपना अलग तर्क था की खाना बनाने के नाम पर सहायिका खानापूर्ति करती हैं। शहरी क्षेत्र की कई आंगनबाड़ी केद्रों में जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला की आंगनबाड़ी में गर्भवतियों का पंजीयन तो किया गया है। पर हर दिन सभी महिलाएं नहीं आ पाती है कई महिला कामकाजी हैं,इसलिए भी यहां भोजन करने नहीं आतीं। अधिकतर महिलाएं चावल की गुणवत्ता सही नहीं होने की बात कहते हुए खाने से परहेज करती हैं। हो कुछ भी परन्तु प्रशासनिक लापावाही के चलते व्यवस्था में सुधार में नहीं हो पा रहा है । अधिकारी सिर्फ कागजो में दौरा दिखा कर सब ठीक ठाक होने की रिपोर्टिंग कर रहे है। स्वास्थ्य विभाग और महिला बाल विकास के आंकड़ो में नही है मेल - महिला बाल विकास विभाग के अधिकारी जिले में लगभग 8000 गर्भवती महिलाओ के पंजीयन होना बता रहे है जबकि स्वास्थ्य विभाग की आंकड़ो की माने तो जिले में लगभग 15000 गर्भवती महिलाये पंजीकृत है। जिले के दो विभागों में ही गर्भवती महिलाओ के पंजीयन में लगभग 50 प्रतिशत का अंतर है।
इन आंकड़ो के हिसाब से जिले के लगभग 50 प्रतिशत प्रतिशत गर्भवती महिलाओ को शासन की महतारी जतन योजना का लाभ मिल ही नहीं रहा है। ऐसे में कैसे जच्चा बच्चा सुरक्षित और तंदरुस्त हो।
पोषण आहार गुणवत्ता में सुधार नहीं - महिला बाल विकास विभाग द्वारा महतारी जतन योजना के तहत स्पॉट फीडिंग योजना के तहत आंगनबाड़ी योजना में गर्भवती महिलाओ को गर्म भोजन देना है साथ ही 100 ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से रेडी टू ईट का पैकेट दिया जाता है जिसमे 55 प्रतिशत गेहू , 15 प्रतिशत चना , 5 प्रतिशत सोयबीन , 22 प्रतिशत शक्कर और 3 प्रतिशत तेल होता है। माँ के साथ साथ बच्चों को भी पौष्टिक आहार दिया जाना है। विभाग से मिली जानकारी अनुसार 6 माह के बच्चे से लेकर 3 साल तक के बच्चों को टेक होम राशन रेड़ी टू ईट पावडर देना है। परंतु रेडी टू ईट की गुणवत्ता पर भी समय समय पर उंगलिया उठती रही है।


