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आफत में है सीरियाई शिविरों के बच्चे और मांएं

इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के परिवारों से भरे सीरियाई शिविर और खतरनाक हो चुके हैं, ऐसे में ये कहा जा रहा है कि बच्चों को वहां से निकालना होगा, भले ही उनकी माएं न जाना चाहें. लेकिन परिवारों को अलग करने को लेकर विवाद है

आफत में है सीरियाई शिविरों के बच्चे और मांएं
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इस साल मई में 8 साल का एक बच्चा शिविर में सीवेज के गड्ढे में डूब गया था. नवंबर में 12 और 15 साल की दो लड़कियां एक दूसरे सीवेज गड्ढे में पाई गई. कथित रूप से बलात्कार के बाद उनके सिर काटकर वहां फेंक दिए गए थे. चरमपंथ के मुद्दे पर एक विशेषज्ञ ने डीडब्लू को बताया कि उन्होंने अल-होल शिविर में देखा था, कैसे बच्चों को कुत्ते बिल्लियों के सिर कलम करना सिखाया जाता था. इस तरह उन्हें इस्लामिक स्टेट (आईएस) में भर्ती के लिए ट्रेनिंग दी जाती थी.

उत्तर-पूर्वी सीरिया में अल-होल को अक्सर दुनिया का सबसे खतरनाक शिविर माना जाता है. यहां 53 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं. यूं तो सभी बाशिंदे आईएस का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन उन्हें इस गुट के विस्थापित परिवार के तौर पर ही जाना जाता है. इराक और सीरिया में अपने कब्जेउत्तरी सीरिया और इराक के कुछ क्षेत्रों पर तुर्की के हवाई हमले वाले इलाकों में आईएस को मिली हार के बाद उन्हें जबरन यहां आना पड़ा.

उत्तरी सीरिया और इराक के कुछ क्षेत्रों पर तुर्की के हवाई हमले

यहां रहने वाले ज्यादातर लोग इराक से हैं या सीरिया से. लेकिन यूरोप, अमेरिका और कनाड समेत दूसरे देशों के 10000 सेम 11000 की संख्या में कई विदेशी भी यहां पर हैं. शिविर की आबादी में ज्यादातर संख्या औरतों और बच्चों की है. सहायता संगठनों का अनुमान है कि शिविर में 60 से 64 फीसदी आबादी बच्चों की है और ज्यादातर 12 साल से कम उम्र के हैं.

रिकॉर्ड पैमाने पर हिंसा का वर्ष

शिविर में भारी भीड़, चिकित्सा देखरेख की कमी, सीमित सप्लाई और शिक्षा के अभाव के चलते, अल-होल के हजारों बच्चों की जिंदगी पहले से मुश्किल रही है. पिछले साल हालात बदतर ही हुए. 2021 में हत्या के 126 मामले और हत्या की कोशिश के 41 मामले दर्ज किए गए थे. वो अल होल कैंप का सबसे हिंसक साल था. सहायता एजेंसियों का कहना है कि ये साल और बुरा गुजरा है.

इसके अलावा इलाके पर पड़ोसी देश तुर्की लगातार हवाई हमले करता रहा है क्योंकि वो शिविरों की सुरक्षा करने वाली सीरियाई कुर्दों को दुश्मन मानता है.

ये सब देखते हुए किसी के लिए भी मां बाप के रूप में ये कल्पना करना मुश्किल है कि उनके बच्चे ऐसे हालात में जा फंसे. लेकिन अल-होल में कुछ माएं अपने परिवारों के लिए ठीक यही किस्मत चुन रही है.

अपनी नवंबर की रिपोर्ट में ह्यमुन राइट्स वॉच ने पाया कि कई यूरोपीय देशों समेत 30 देशों ने अपने नागरिकों को अल-होल से निकाल लिया है. इस सप्ताह जारी प्रेस रिलीज में सेव द चिल्ड्रन संस्था ने कहा कि 2019 से 1464 औरते और बच्चे अपने अपने देशों को लौट चुके हैं. 2022 में लौटने वालों की संख्या में 60 फीसदी इजाफा देखा गया.

लेकिन जब कुछ सरकारों ने अपने देश की औरतों से लौटने को कहा तो उन्होंने वो पेशकश ठुकरा दी. मिसाल के लिए जर्मन विदेश कार्यालय ने डीडब्लू को बताया कि आखिरी बार नवंबर में, एक महिला अपने चार बच्चों के साथ देश लौटी थी.

विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "हम मानते हैं कि कम संख्या में लेकिन दोहरी संख्या में कुछ जर्मन माएं और बच्चे अभी रोज और अल-होल शिविरों में मौजूद हैं. लेकिन जहां तक हमारी जानकारी है कि वे औरतें जर्मनी नही लौटना चाहती हैं."

रुकने की वजहें?

दूसरे देशों की महिलाओं की भी यही स्थिति है. ह्युमन राइट्स वॉच (एचआरडब्लू) में बाल अधिकारों पर एडवोकेसी डायरेक्टर जो बेकर ने बताया कि जो माएं लौटना नहीं चाहती थीं उनके इस फैसले के विभिन्न कारण थे.

वो कहती हैं, "कुछ मामलों में, वे गैर मुस्लिम देश में नहीं रहना चाहती थी, या उन्हें भेदभाव का डर था या मुकदमा चलने का. दूसरे मामले ऐसे थे जिनमें उनक पति जेल में थे और वे उनकी रिहाई का इंतजार कर रही थी या उनके बिना कोई फैसला नहीं करना चाहती थीं. दूसरी तरफ, उनके फैसले उनके बच्चों के हित मे नहीं थे."

फैक्ट चेक: रिफ्यूजियों में भेदभाव करता यूरोप

विवादास्पद प्रस्ताव

यही वजह है कि कुछ जानकारों का देशों को ये सुझाव दिया कि अगर माएं यही चाहती हैं तो उन्हें अल-होल शिविर में छोड़कर उनके बच्चों को ले आना चाहिए.

अमेरिका स्थित, हिंसक चरमपंथ के अध्ययन के अंतरराष्ट्रीय केंद्र (आईसीएसवीई) की निदेशक ऐनी स्पेकहार्ड के मुताबिक, "आमतौर पर बच्चों के लिए सबसे अच्छा तो यही है कि उन्हें परिवार के सदस्यों के साथ रखा जाए."

वो कहती हैं "लेकिन ये आवश्यक रूप से सच नहीं हो सकता अगर हम आईएस के परिवार के सदस्यों की बात करते हैं. जो शिविर में सिर्फ इसलिए रहने को विवश हों कि उन्हें देश में मुकदमे का खौफ हो या वे मानते हों कि आईएस उन्हें आखिरकार वहां से निकाल ही लेगा. अगर सात साल के किसी बच्चे की मां, मान लीजिए कुछ ऐसा कर रही है जो गलत है, बच्चों को ड्रग दे रही है या उन्हें आईएस का कोई वीडियो दिखाने पर मजबूर करती है- तो ऐसे में क्या देश का ये दायित्व नहीं होगा कि वो आगे बढ़कर उस घर से उच बच्चे को निकाल लाए?"

स्पेकहार्ड ये भी रेखांकित करती हैं कि बच्चों को अक्सर लंबे समय तक अपने मातापिता के साथ जेल में नहीं रखा जाता है. "अल-होल और रोज को हम बेशक कानूनी तौर पर शिविर के रूप में चिंहित करते हैं लेकिन असल में वे जेल हैं."

उग्रवाद में धकेले जाते बच्चे

अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक और इराक के कुर्द राजनीतिज्ञों के सलाहकार पीटर गैलब्रिएथ ने इस साल न्यू यार्क टाइम्स के संपादकीय में यही उल्लेख किया था.

उनके मुताबिक अधिकांश माएं अपने बच्चों से जुदा नहीं होना चाहेगी. और "बच्चों पर ये निश्चित रूप से बड़ी क्रूरता होगी और उनके लिए ये दर्दनाक होगा. लेकिन मैं मानता हूं कि बच्चो को जेल की जिंदगी में धकेल देना और भी ज्यादा क्रूरता है क्योंकि उसकी मां या उसका बाप, सीरिया जाकर आतंकी गुट में शामिल होने का फैसला कर लेता है."

अन्य विशेषज्ञों की तरह गैलब्रिएथ ने शिविर में बच्चों को उग्रवाद की ओर धकेले जाने के खतरे का भी जिक्र किया. आईएस गुट के खिलाफ लड़ाई के बारे में 2021 की एक ब्रीफिंग के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् ने अल-होल में "उग्रवाद, कट्टरपंथ, फंड उगाही, ट्रेनिंग और उकसाने के कई मामले" चिंहित किए थे.

गैलब्रिएथ का सुझाव है कि शिविरों में मौजूद उन बच्चों को, जिनकी माएं नहीं जाना चाहती हैं, या नहीं जा सकती हैं, उन्हें सीरियाई कुर्दों के संचालित विशेष बाल गांवों में रखा जा सकता है. कई बच्चों के रिश्तेदार भी घरों में है जो उनकी देखभाल कर सकते हैं. और इस तरह उन्हें सीरिया से निकालना ज्यादा आसान हो पाएगा.

बच्चों के हित में

इस इलाके में काम करने वाले, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, सेव द चिल्ड्रन, और एचआरडब्लू जैसे सहायता संगठनों की रिपोर्टों में भी ऐसी कार्रवाइयों की अहमियत को रेखांकित किया गया है कि जो बच्चों के हित में सबसे सही हों. इन रिपोर्टों में अल-होल शिविर के भयंकर हालात का जिक्र भी है. लेकिन कोई भी रिपोर्ट सीधे तौर पर ये नहीं बच्चों को उनके मां बाप से अलग करने के लिए नहीं कहती है.

सीरिया और इराक में एक गैर सरकार संगठन के कर्मचारी ने डीडब्लू को बताया, "ये एक पेचीदा सवाल है जो भविष्य में और भी ज्यादा प्रासंगिक होगा. उन्होंने ऑफ द रिकॉर्ड बात की क्योंकि उन्हें नियोक्ता की ओर से बोलने की मनाही है. "अपेक्षाकृत रूप से ज्यादा आसान मामले पहले निपटा लिए जाएंगे और संभावित घर वापसी वाला ग्रुप और छोटा और ज्यादा पेचीदा होता जाएगा."

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार संधि के अनुच्छेद 9 के मुताबिक "बच्चे को अपने मां बाप की इच्छा के विपरीत उनसे अलग नहीं किया जा सकेगा. अपवाद के रूप में ऐसा तभी किया जा सकता है जबकि सक्षम स्तर के अधिकारी ऐसा फैसला करें... कि बच्चे को अलग करना उसके हित में जरूरी है."

एक पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत

ह्युमन राइट्स वॉट की बेकर का कहना है कि अगर बच्चों को मां बाप के बिना उनके अपने देशों में वापस भेजा जाता है तो उसके लिए एक प्रक्रिया बनाने और अपनाने की जरूरत पड़ेगी जिसमें हर स्थिति पर फैसला मामला दर मामला किया जाना चाहिए.

किसी भी प्रक्रिया में मां से परामर्श की जरूरत होगी, उसके पास क्या विकल्प हैं. वापस घर में अभियोग चलने की क्या संभावना है और उसका क्या नतीजा निकल सकता है, ये भी देखना होगा कि परिवार के कौन से सदस्य उसके बच्चों की देखभाल करेंगे और वे बच्चे अपने परिजनों को कितना बेहतर जानते होंगे. उम्र में बड़े बच्चों को अपने मन की बात कहने का मौका मिलना चाहिए. और अधिकारियों के लिए ये जरूरी है कि नियमित रूप से परिवारों में बच्चों की स्थिति जांचते परखते रहें क्योंकि बड़े होने या कैंप की स्थितियां बदलने के साथ उनका रवैया बदल भी सकता है. बेकर कहती हैं, "सही है कि ये प्रक्रिया खासी पेचीदा है और श्रम की मांग करती है."

इस सप्ताह अल-होल शिविर का दौरा करने वाली सेव द चिल्ड्रन की संचार निदेशक ओके बाउमान कहती हैं कि अगर बच्चों को मांओं के बगैर अल-होल से निकालने की कोई प्रक्रिया या प्रविधि बना भी ली जाए तो "शिविर की स्थितियां किसी भी तय प्रक्रिया को अपनाने में बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं."

उनके मुताबिक, "लेकिन ऐसी किसी भी स्थिति आती है तो उसमें बच्चे की कोई गलती नहीं है, अपने मां बाप के अपराधों की कीमत उसे न चुकानी पड़े, ये देखना होगा. हमें उन मां बापों की जवाबदेही पर भी भरोसा कनरा होगा जिन्होंने अपराध किए हैं. दोनों चीजें परस्पर-विरोधी नहीं हैं."


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