मुख्य न्यायाधीश खुद ही संस्था
सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि यह भारत के प्रधान न्यायाधीश (एक उच्च संवैधानिक अधिकारी) का विशेषाधिकार है कि वह पीठ का गठन करे और मामलों का आवंटन करे

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि यह भारत के प्रधान न्यायाधीश (एक उच्च संवैधानिक अधिकारी) का विशेषाधिकार है कि वह पीठ का गठन करे और मामलों का आवंटन करे और इस अधिकार का महज कार्य के मनमाने ढंग से किए जाने की आशंका से विनियमन नहीं किया जा सकता। यह कहते हुए कि मामलों का आवंटन व पीठों का गठन प्रधान न्यायाधीश का विशेषाधिकार है, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर व न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, अदालत के न्यायिक व प्रशासनिक कार्य को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए इस तरह से कार्य सौंपना जरूरी है।
संवैधानिक पीठों के नियमन के लिए नियम बनाने व मामलों के आवंटन की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने अपने फैसले में कहा, इसमें अविश्वास की परिकल्पना नहीं जा सकती। फैसले में कहा गया है कि पीठ का गठन विशेष रूप से प्रधान न्यायाधीश के विशेषाधिकार में निहित है और जो भी चीज प्रधान न्यायाधीश के अधिकार को कम करता है वह प्रधान न्यायाधीश के पीठ के गठन व उनके मामलों के आवंटन के विशेष कर्तव्य व अधिकार में अतिक्रमण करता है।
पीठ की तरफ से न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, संवैधानिक भरोसे के एक भंडार के तौर पर प्रधान न्यायाधीश स्वयं में एक संस्था हैं। प्रधान न्यायाधीश को जो अधिकार दिया गया है, वह उच्च संवैधानिक अधिकारी के पास निहित है, उसे याद रखा जाना चाहिए।
अदालत ने यह फैसला वकील अशोक पांडे की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया।
चार न्यायाधीशों ने की थी प्रेस कांफ्रेंस
12 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय के 4 न्यायाधीशों ने प्रेस कांफ्रेंस की थी। इसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के बाद दूसरे नंबर के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ शामिल हुए थे। इस दौरान न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के तौर-तरीकों पर सवाल उठाए थे। कहा था- लोकतंत्र दांव पर है। ठीक नहीं किया तो सब खत्म हो जाएगा। न्यायाधीशों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद अशोक पांडे ने पीआईएल दाखिल की थी।


