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छत्तीसगढ़ी फिल्म पंचायत के फैसला का फिल्मांकन पूर्ण

छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत में एक और सामाजिक, पारिवारिक फिल्म ''पंचायत के फैसला'' ने अपनी धमाकेदार दस्तक दी है।

छत्तीसगढ़ी फिल्म पंचायत के फैसला का फिल्मांकन पूर्ण
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रायपुर। छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत में एक और सामाजिक, पारिवारिक फिल्म ''पंचायत के फैसला'' ने अपनी धमाकेदार दस्तक दी है। फिल्म का फिल्मांकन रायपुर, बीरगांव के निकट कुम्हारी ग्राम में किया गया। विशुद्ध छत्तीसगढ़ी परिवेश-संस्कृति पर केन्द्रित इस फिल्म की पटकथा लेखक-निर्देशक मनीराम यादव तथा निर्माता डॉ. मनोज साहू है। फिल्म की कहानी बड़ी मार्मिक, हृदयस्पर्शी है जिसमें बुजुर्गों की अवहेलना, बहुओं की प्रताड़ना और झूठे बेबुनियाद आरोप लगाने की प्रवृत्ति को प्रभावी ढंग से प्रदर्शित किया गया है।

फिल्म के विभिन्न किरदारों को वरिष्ठ रंगकर्मी सर्वश्री अरूण काचलवार, विजय मिश्रा 'अमित', रामदास कुर्रे, देवशरण नाग, ललीत निषाद, एलिजा धीर, गौरी क्षत्रिय, ज्योति सक्सेना, पूजा कश्यप, संतोषी घृतलहरे, सिमरन कौर, राजेन्द्र मानिकपुरी, विक्रान्त मिश्रा, कर्ण चैहान ने अपनी सशक्त अभिनय क्षमता से जीवन्त किया। कैमरामेन जगत खण्डेलवार ने बड़ी खूबसूरती के साथ विभिन्न लोकेशन में फिल्मांकन किया।

फिल्म के प्रमुख किरदार सरपंच बने पॉवर कंपनी के उपमहाप्रबंधक (जनसंपर्क) विजय मिश्रा ने कहानी का सार व्यक्त करते हुये बताया कि एक बूढ़े बीमार ससुर द्वारा बहु के हाथ पकड़ने की मामूली घटना से कहानी आरंभ होती है। इसे पढ़ी-लिखी बहू ससुर की भावना को गलत करार देती है। मामला गांव के पंचायत तक जा पहुंचता है। जहां सरपंच और महिला पंचों द्वारा बड़ी रोचकता के साथ इस सच्चाई को उजागर किया।

जाता है कि बूढ़े ससुर की लालसा घर के सदस्यों से अपनापन पाने की रही जिसे व्यक्त करने वह बहू का हाथ पकड़ता है। बूढ़े ससुर को निर्दोष साबित करते हुये पंचायत द्वारा यह बात सामने लाई जाती है कि वृद्धजनों की सेवा सहित गांव को संस्कारवान, स्वच्छ और व्यसनमुक्त बनाना है। नई युवा पीढ़ी और बूढ़े होते माता-पिता, सास-ससुर के मध्य बढ़ते ''जनरेशन गेप'' की समस्या के नियंत्रण हेतु सुसंस्कार के महत्व को फिल्म में विशेष रूप से उजागर किया गया है।


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