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सियासत की चौसर और अंतरात्मा की आवाज

सुना है कि अंतरात्मा की भी कोई आवाज होती है। यह आवाज दलगत राजनीति को स्वीकार नहीं करती

सियासत की चौसर और अंतरात्मा की आवाज
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- सुधाकर आशावादी

सुना है कि अंतरात्मा की भी कोई आवाज होती है। यह आवाज दलगत राजनीति को स्वीकार नहीं करती। जब खास अवसर आते हैं, तब यह अधिक बुलंद होती है और क्रॉस वोटिंग करने वालों की ढाल बन कर बचाव करती है। सारे आरोप प्रत्यारोप अंतरात्मा की आवाज के सम्मुख मौन धारण करने के लिए विवश हो जाते हैं। ऐसी होती है अंतरात्मा की आवाज।

अपने एक मित्र बड़े आशावादी थे। बड़ी हवेली में प्रवेश के लिए चौथी बार अपना भाग्य आजमा रहे थे। उन्हें प्रवेश दिलाने के लिए सुरक्षित मार्ग चुना गया था। उन्हें बताया गया था, कि उनके लिए बड़ी हवेली का प्रवेश मार्ग निष्कंटक है। उनके मार्ग में अनेक बंधु बांधवों ने फूल ही नहीं पलकें भी बिछा रखी हैं, जिन पर सवार होकर वह सुगमता से गंतव्य तक पहुँच सकते हैं। कुछ बंधु उनके साथ रात्रिभोज में भी सम्मिलित हुए। उन्होंने उन्हें आश्वस्त भी किया, कि मित्र भले ही तुम्हें वाया पर्यटक स्थल बड़ी हवेली में भेजने की व्यवस्था की गई हो और पर्यटक स्थल के निवासियों की इच्छा का अनादर किया गया हो, मगर हम आपके साथ हैं, हम आपको बड़ी हवेली तक पहुँचा कर ही दम लेंगे।

कुछ बंधु सुबह नाश्ते के समय भी साथ में बैठकर ब्रेड बटर का सेवन कर रहे थे, मगर उस बस से दूर ही खड़े रह गए, जिसमें मित्र महोदय को सवार होना था। बहरहाल कभी कभी भाग्य भी खेला कर देता है। एक सवारी वाली बस में यदि दो चढ़ जाएँ, तो लॉटरी के सहारे फैसला कराता है, जिसके नाम की लॉटरी निकलती है, वही सुरक्षित सीट पर सफर तय करके गंतव्य तक पहुँच पाता है। मित्र महोदय के साथ भी यही हुआ। इसमें भाग्य को दोषी माना जाए या उन बंधु बांधवों को, जिन्होंने बस में सीट सुरक्षित कराने में रुचि नहीं ली। इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

वैसे बैकडोर से बड़ी हवेली में प्रवेश करने वालों की चतुराई के किस्से कम नहीं हैं। ताश की बाजी खेलने वाले जानते हैं, कि कमजोर पत्तों से कैसे जीत सुनिश्चित की जाती है। अपने एक मित्र बाजी पलटने में माहिर हैं। शकुनि के पासों की तरह उनके फेंके हुए पासे कभी बेकार नहीं जाते। उन्हें पता था कि उनके पास मजबूत पासे नहीं हैं, फिर भी उन्होंने दॉव खेल दिया। बड़ी हवेली तक जाने वाली बस में अपनी उस सवारी को सवार करा ही दिया, जिस पर टिकट के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं थे। बहरहाल जब खुदा मेहरबान होता है, तो गधा भी पहलवान बन जाता है। सारे पासे मनोनुकूल पड़ने लगते हैं। उसके बाद कोई चाहे अंतरात्मा की आवाज को पासों की अनुकूलता से जोड़े या किसी लालच का आरोप लगाकर अपनी हार की खीज मिटाए।

सब जानते हैं कि मौलिक अधिकार स्वतन्त्रता का सम्मान करते हैं। किसी के मन में क्या है, कौन भविष्य में कौन सा आचरण करने वाला है, यह किसी को नहीं बताया जाता। गोपनीयता मन की बात उजागर करने की आज्ञा नहीं देती। मन चंचल होता है, न जाने कब भटक जाए और कब अपना मार्ग परिवर्तित कर ले। कोई कह रहा था कि बिना जनता के आशीर्वाद के बड़ी हवेली में प्रवेश करने के लिए जुगत भिड़ानी पड़ती है। समीकरण बिठाने पड़ते हैं, तब जाकर कहीं बड़ी हवेली में प्रवेश सुनिश्चित होता है। इसके लिए उन लोगों को साधना पड़ता है, जिनकी कृपा से बड़ी हवेली के मार्ग प्रशस्त होते हैं। उसके बाद अंतरात्मा की आवाज, बंधुआ मुक्ति, स्वतंत्र चिंतन जैसे शब्दों से अभिप्रेरित करने का प्रयास किया जाता है, तब जाकर कहीं अंतरात्मा की आवाज बुलंद होती है, क्रॉस वोटिंग जैसी स्थिति निर्मित होती है। यह स्थिति निराशा, हताशा जैसी स्थिति को आशा में परिवर्तित करती है। सियासत की चौसर पर यही खेल महाभारत काल से खेला जाता रहा है और आज भी खेला जा रहा है।


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