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रिहाई मंच ने लगाया आरोप : बार एसोसिएशन फैज़ाबाद के दबाव में कोर्ट ब्लास्ट सुनवाई धीमी गति से

फैज़ाबाद कोर्ट बलास्ट मामले में बार एसोसिएशन के दबाव में कोर्ट द्वारा सुनवाई धीमी गति से चलाने का आरोप रिहाई मंच ने लगाया है

रिहाई मंच ने लगाया आरोप : बार एसोसिएशन फैज़ाबाद के दबाव में कोर्ट ब्लास्ट सुनवाई धीमी गति से
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लखनऊ। फैज़ाबाद कोर्ट बलास्ट मामले में बार एसोसिएशन के दबाव में कोर्ट द्वारा सुनवाई धीमी गति से चलाने का आरोप रिहाई मंच ने लगाया है।

रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम ने बताया कि 23 नवम्बर 2007 के इस मामले का मुकदमा स्पेशल जज एससीएसटी एक्ट फैज़ाबाद श्री मो अली की जेल कोर्ट में चल रहा है. इस मामले में बचाव पक्ष की तरफ से मो0 शुऐब, अरुण कुमार सिंह और जमाल अहमद अधिवक्ता हैं। बचाव पक्ष की तरफ से गवाह PW 12 जीतेन्द्र पाठक जिरह के लिए बुलाने का प्रार्थना पत्र कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। पर संबंधित न्यायाधीश महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस पर कोई आदेश नहीं कर रहे हैं. उन्होंने जेल कोर्ट को 1 बजे शुरू करने की बात कही पर आज बचाव पक्ष के एडवोकेट मो0 शुऐब, अरुण कुमार सिंह और जमाल अहमद 3.22 तक कोर्ट में रहे पर न्यायाधीश साहब नहीं आए।

शहनवाज़ आलम ने कहा कि एक तरफ माननीय न्यायालय बार-बार कहते हैं कि मुकदमों को लटकाने से वक्त,पैसे आदि की बर्बादी होती है। वही सभी जानते हैं कि देर से मिला न्याय नहीं होता और वो भी जब आरोपी बिना आरोप के सालों जेल में सड़ रहे हों। इस मामले का ये दसवां साल है। इस मामले में आजमगढ़ के तारिक कासमी, जौनपुर के मौलाना ख़ालिद मुजाहिद, जम्मू और कश्मीर के मो.अख़्तर और सज्जादुर्रह्मान अभियुक्त हैं, जिनमें मौलाना ख़ालिद मुजाहिद की 18 मई 2013 को फैज़ाबाद से लखनऊ जेल से लाते वक़्त हिरासत में हत्या कर दी गई थी। ऐसे में अदालत की ये देरी आरोपियों के जीवन को लगातार संकट में डाले है।

उन्होंने आरोप लगाया कि मुकदमे में देरी की वजह ये है कि कोर्ट में ब्लास्ट होने के बाद बार एसोसिएशन ने कहा था कि ये मुकदमा नहीं लड़ने देंगे। जिसके बाद लखनऊ के एडवोकेट मुहम्मद शुऐब और फैज़ाबाद के जमाल अहमद ने मुकदमा लड़ना जब शुरू किया तब वकीलों ने उन पर हमला किया और यहाँ तक कि जमाल अहमद का कोर्ट में बिस्तर तोड़-फोड़ डाला जिसके बाद उन्होंने कोर्ट परिसर में उसी जगह पर बोरा बिछाकर बैठने पर मजबूर हुए। आरएसएस के वकीलों का एक गुट ये कभी नहीं चाहता कि इस मुकदमे का निपटारा हो सके, क्योंकि वह जानता है कि इस मामले में किसका हाथ है। इस बात को पुलिस विवेचना व पूर्व एडीजी ला एंड ऑर्डर बृजलाल ने भी कहा है कि इन धमाकों के मॉड्यूल मक्का-मस्जिद और मालेगांव से मिलते-जुलते हैं।

श्री मो0 अली की नियुक्ति से पूर्व जितने भी न्यायाधीश रहे हैं सब के सब अभियुक्तों को तलब कर उनकी उपस्थिति में मुक़दमे की सुनवाई करते रहे हैं लेकिन इन्होंने वीडियोकांफ़्रेंस द्वारा सुनवाई का आदेश करके अभियुक्तों को तलब करना बंद कर दिया है, जबकि उसी बीच लगभग दो बजे लखनऊ और फ़ैज़ाबाद की रिमाण्ड भी वीडियो कान्सफ़्रेंस द्वारा कराई जाती है जिसकी कारण मुक़दमे की सुनवाई बाधित होती है। आज तो फ़ैज़ाबाद के रिमाण्ड मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में कोर्ट मुहर्रिर द्वारा रिमाण्ड दे दिया गया. बचाव पक्ष के वकीलों के कोर्ट से निकलने के बाद जितेंद्र पाठक को कोर्ट में बुलाने की अर्जी को खारिज कर दिया गया।


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