मानव तस्करी-रोधी विधेयक 2018 से आएगा बदलाव: कैलाश सत्यार्थी
नोबल पुरस्कार विजेता बाल अधिकार कार्यकर्ता, कैलाश सत्यार्थी लोकसभा में पेश नए मानव तस्करी-रोधी (बचाव, सुरक्षा एवं पुनर्वास) विधेयक 2018 का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे एक अच्छा विधेयक बताते हैं

नई दिल्ली। नोबल पुरस्कार विजेता बाल अधिकार कार्यकर्ता, कैलाश सत्यार्थी लोकसभा में पेश नए मानव तस्करी-रोधी (बचाव, सुरक्षा एवं पुनर्वास) विधेयक 2018 का पुरजोर समर्थन करते हुए इसे एक अच्छा विधेयक बताते हैं।
इस विधेयक के लिए सत्यार्थी लंबे समय से सड़क से लेकर अदालत तक संघर्ष करते रहे हैं। सत्यार्थी का मानना है कि यह विधेयक देश के हजारों बच्चों की सिसकियों को मुस्कराहट में बदल सकता है।
30 जुलाई को 'वर्ल्ड डे अगेन्स्ट ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स' के ठीक पहले मानव तस्करी-रोधी विधेयक लोकसभा में पास हो गया है, और अब इसे राज्यसभा में पास होना है।
इससे किस तरह के बदलाव की उम्मीद है? सत्यार्थी ने कहा, "पिछले कई दशकों से बाल दासता के खिलाफ अपने प्रयासों से मैंने जो सीखा है, उसके आधार पर कह सकता हूं कि यह विधेयक एक अच्छा बदलाव लाएगा, इसलिए मैं इसका पुरजोर समर्थन कर रहा हूं, क्योंकि यह विधेयक सिर्फ तस्करों को सजा दिलाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह न्याय के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है।"
वह बताते हैं, "यह विधेयक प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के आधार पर अपराध की रोकथाम और पीड़ितों के लिए मुआवजा व पुनर्वास भी सुनिश्चित करता है। पीड़ितों को मुआवजे के लिए फैसला होने तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा, बल्कि मुकदमा दायर होते ही उन्हें तात्कालिक राहत मिल जाएगी और इसके बाद उनका आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास किया जाएगा। इन प्रावधानों से यह विधेयक कानून बन जाने के बाद बहुत प्रभावी हो जाएगा। नया विधेयक तस्करी को संगठित अपराध मानते हुए हर जिले में विशेष अदालत गठित कर तय समय-सीमा में सुनवाई करने और सख्त सजा का प्रावधान सुनिश्चित करता है।"
सत्यार्थी ने पिछले साल तस्करी और बच्चों के यौन शोषण के खिलाफ सख्त कानून बनाने और इस बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए देशव्यापी भारत यात्रा का आयोजन किया था।
इस विधेयक के लिए सत्यार्थी की संस्था, बचपन बचाओ आंदोलन की तरफ से की जा रहीं कोशिशों के बारे में उन्होंने कहा, "इसके लिए मैं उस हर दरवाजे को खटखटा रहा हूं, जहां से मुझे जरा भी उम्मीद है। सांसदों, मंत्रियों, विपक्षी नेताओं, बुद्धिजीवियों से मैं और बचपन बचाओ आंदोलन के लोग लगातार संपर्क में हैं और उनसे इस विधेयक को अपना समर्थन देने के लिए निवेदन कर रहे हैं। हम उन्हें बता रहे हैं कि कैसे यह विधेयक बच्चों को गुलामी और शोषण से बचाएगा।"
उन्होंने कहा, "मैं आपके माध्यम से भी सभी सांसदों और सत्ता पक्ष और विपक्ष के नेताओं से हाथ जोड़ कर निवेदन कर रहा हूं कि वे बच्चों के बचपन को सुरक्षित करने वाले इस विधेयक को राज्यसभा में भी पास कराएं। सुरक्षित बचपन से ही सुरक्षित भारत का निर्माण होगा। तस्करी के शिकार मासूम चेहरे उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं, क्योंकि यह विधेयक देश के हजारों बच्चों की सिसकियों को मुस्कराहटों में बदल सकता है।"
नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक दशक में मानव तस्करी के कुल मामलों का 76 फीसदी हिस्सा नाबालिग लड़कियों व महिलाओं का है। जाहिर-सी बात है कि इनमें अधिकांश बच्चियों और महिलाओं को देह व्यापार में झोंका जाता है। वह कहते हैं, "विधेयक से वेश्यावृत्ति के लिए बच्चियों और महिलाओं की तस्करी करने वालों पर शिकंजा कसेगा। खास बात यह है कि विधेयक वयस्क यौनकर्मियों के भी सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास की बात करता है, जो यह काम छोड़ कर अपना भविष्य सुधारना चाहती हैं। इसमें उनके पुनर्वास, मुआवजा, कौशल विकास, शिक्षा और वैकल्पिक रोजगार के लिए जिलास्तर पर एक तंत्र विकसित करने की बात की गई है।"
बच्चों की सुरक्षा के प्रति सरकार के रुख में कई बार उदासीनता देखने को मिलती है। आप क्या कहना चाहेंगे? उन्होंने कहा, "बच्चे राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में नहीं हैं, क्योंकि वे वोटर नहीं हैं। मैं कब से मांग कर रहा हूं कि साल में कम से कम एक दिन देश की संसद बच्चों को समर्पित हो। इस दिन पूरी संसद केवल बच्चों के मुद्दों और उनकी समस्याओं पर चर्चा करे। देश में 18 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या कुल आबादी का तकरीबन 39 फीसदी है। क्या उनके लिए हमारे माननीय सासंदों के पास साल में एक दिन का भी समय नहीं है? जबकि बच्चे देश के भविष्य हैं। हालांकि इस विधेयक को लाकर सरकार ने इस दिशा में अच्छा काम किया है।"


