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जब तक सीनेट चुनाव बहाल नहीं होते तब तक संघर्ष जारी रहेगा: पंजाब विश्वविद्यालय बचाओ मोर्चा

पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में छात्र लगातार सीनेट चुनाव की तारीख की घोषणा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि तारीख की घोषणा होने के बाद ही प्रदर्शन वापस लिया जाएगा

जब तक सीनेट चुनाव बहाल नहीं होते तब तक संघर्ष जारी रहेगा: पंजाब विश्वविद्यालय बचाओ मोर्चा
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चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) में छात्र लगातार सीनेट चुनाव की तारीख की घोषणा की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि तारीख की घोषणा होने के बाद ही प्रदर्शन वापस लिया जाएगा।

इस क्रम में 'पंजाब विश्वविद्यालय बचाओ मोर्चा' ने शनिवार को आगामी कार्ययोजना की घोषणा के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। शुरुआत में मोर्चा ने 10 तारीख के कार्यक्रम के दौरान कुप्रबंधन और समय की कमी के लिए खेद व्यक्त किया, जिसके कारण कुछ सहभागी संगठन मंच से अपने विचार प्रस्तुत नहीं कर पाए।

छात्र नेताओं ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि दो सप्ताह के निरंतर विरोध प्रदर्शन के बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन की प्रतिक्रिया उदासीन और असंतोषजनक रही है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उपराष्ट्रपति ने अभी तक सीनेट चुनावों के कार्यक्रम को मंजूरी नहीं दी है, जो प्रशासन की ओर से निरंतर उदासीनता को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि इस निरंतर निष्क्रियता को देखते हुए मोर्चा ने गोल्डन चांस और मेडिकल-केस परीक्षाओं को छोड़कर आगामी अंतिम सेमेस्टर परीक्षाओं का बहिष्कार करने की घोषणा की।

मोर्चा ने आगे बताया कि आंदोलन के अगले कदमों पर विचार-विमर्श के लिए 20 नवंबर को पंजाब स्तर के विभिन्न संगठनों की एक बैठक होगी। इसके अलावा 26 से 30 नवंबर के बीच बुद्धिजीवियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन आयोजित होने की उम्मीद है, जहां संघर्ष की व्यापक दिशा पर चर्चा की जाएगी। मोर्चा के अनुसार अधिकारी छात्रों को कोई विश्वसनीय आश्वासन दिए बिना 25 नवंबर तक किसी भी ठोस घोषणा को टालने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।

मोर्चा ने घोषणा की कि जब तक सीनेट चुनाव विधिवत बहाल नहीं हो जाते और एक पारदर्शी कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा नहीं हो जाती, तब तक संघर्ष दृढ़ता और बिना किसी समझौते के जारी रहेगा।

दरअसल, यह विरोध उस समय शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने 28 अक्टूबर को एक अधिसूचना जारी कर पंजाब यूनिवर्सिटी की दो मुख्य शासी संस्थाओं (सीनेट और सिंडिकेट) को भंग कर दिया था। सरकार ने इनकी जगह एक नया बोर्ड ऑफ गवर्नर्स बनाने की घोषणा की। इस बोर्ड में ज्यादातर सदस्य केंद्र द्वारा नामित किए जाने थे। इस फैसले के बाद पंजाबभर में विरोध की लहर दौड़ गई। छात्रों, शिक्षकों और राजनीतिक दलों ने इसे राज्य की सबसे पुरानी और स्वायत्त यूनिवर्सिटी पर नियंत्रण करने की कोशिश बताया।


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