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पंजाब: विशेष सत्र से पहले प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को लिखा पत्र, सदन को 'कमजोर' करने का लगाया आरोप

विधानसभा सत्र से एक दिन पहले पंजाब में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर कुलतार सिंह संधवान को एक चिट्ठी लिखकर चिंता जताई है

पंजाब: विशेष सत्र से पहले प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर को लिखा पत्र, सदन को कमजोर करने का लगाया आरोप
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चंडीगढ़। विधानसभा सत्र से एक दिन पहले पंजाब में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने स्पीकर कुलतार सिंह संधवान को एक चिट्ठी लिखकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि नियमित विधायी सत्रों की जगह चुनिंदा विशेष सत्र बुलाकर सदन को 'कमजोर' किया जा रहा है।

बाजवा ने अपने पत्र में कहा कि उन्होंने सदन की बैठकों की संख्या में आई कमी को लेकर बार-बार ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है, लेकिन उनकी इन बातों को लगातार नजरअंदाज किया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि जो हो रहा है वह कोई मामूली चूक नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर संवैधानिक विकृति है, जो विधायी लोकतंत्र की नींव पर ही हमला करती है।

आम आदमी पार्टी सरकार ने 30 दिसंबर को विधानसभा का एक विशेष एक दिवसीय सत्र बुलाया है। यह विशेष सत्र महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की जगह नए ग्रामीण रोजगार कानून विकसित भारत-जी राम जी (विकसित भारत–रोजगार और आजीविका मिशन ग्रामीण) के खिलाफ बुलाया गया है।

उन्होंने कहा कि विधानसभा विचार-विमर्श करने, सवाल पूछने, जांच करने और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराने के लिए है। नियमित और शीतकालीन सत्रों को विशेष सत्रों से बदलने की सोची-समझी चाल विधायिका को खोखला कर रही है।

उन्होंने कहा, “विधायी समय कम हो रहा है, जांच से बचा जा रहा है, और सदन को लोकतांत्रिक जवाबदेही के एक वास्तविक मंच के बजाय एक स्टेज-मैनेज्ड तमाशे में बदला जा रहा है।”

कांग्रेस विधायक ने कहा कि यह विशेष रूप से परेशान करने वाली बात है कि यह गिरावट एक ऐसी सरकार द्वारा की जा रही है, जिसका नेतृत्व, खासकर आपका नेतृत्व, लंबे समय से संवैधानिक मूल्यों, शक्तियों के बंटवारे और संस्थागत अखंडता पर नैतिक रूप से खुद को बेहतर बताता रहा है।

उन्होंने कहा, “जो लोग कभी देश को संवैधानिक नैतिकता पर लेक्चर देते थे, वे आज एक ऐसे मॉडल की अध्यक्षता कर रहे हैं जो विधायिका को कमजोर करता है और कार्यपालिका में शक्ति केंद्रित करता है।”

बाजवा ने कहा कि प्रक्रिया और कार्य-संचालन नियमों के तहत अनिवार्य रूप से सालाना कम से कम 40 बैठकों की मांग उन्हीं ताकतों द्वारा जोरदार तरीके से उठाई गई थी जो अब सत्ता में हैं। अब उन्होंने ही इस सिद्धांत को छोड़ दिया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि विशेष सत्रों पर बढ़ती निर्भरता, जिसमें अक्सर सार्थक प्रश्नकाल, शून्यकाल और ठोस बहस की कमी होती है, ने विधानसभा को जवाबदेही के बजाय दिखावे से चलने वाले एक नियंत्रित मैसेजिंग प्लेटफॉर्म में बदल दिया है।

ऐसे समय में जब पंजाब गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें बिगड़ती कानून-व्यवस्था, नशीली दवाओं का खतरा, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर दबाव, भूजल प्रदूषण और बढ़ता कर्ज शामिल है, बाजवा ने कहा कि गंभीर सत्र होने चाहिए, न कि इसे राजनीतिक नाटकबाजी में बदला जाना चाहिए।


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