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चंपाई सोरेन की जीत, भाजपा की बड़ी पराजय

झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन द्वारा विश्वास मत हासिल करना भारतीय जनता पार्टी की कई मोर्चों पर बड़ी पराजय है

चंपाई सोरेन की जीत, भाजपा की बड़ी पराजय
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झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन द्वारा विश्वास मत हासिल करना भारतीय जनता पार्टी की कई मोर्चों पर बड़ी पराजय है। 31 जनवरी को जब वहां के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित जमीन घोटाले में गिरफ्तार किया था, तो उसके पहले ही हेमंत सोरेन ने पद से इस्तीफा देकर अपने विश्वसनीय चंपाई सोरेन को विधायक दल का नेता बना दिया था। यह अलग बात है कि राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने में पूरे 3 दिन लिये और तत्काल बहुमत हासिल करने को कह दिया।

सोमवार 5 फरवरी को झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की सरकार ने सहयोगी दलों के साथ मिलकर, जिसमें कांग्रेस 16 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी सहयोगी है, बहुमत हासिल कर लिया। झारखंड विकास मोर्चा, राजद एवं सीपीआई (एमएल) के 1-1 सदस्य हैं। 81 सदस्यीय सदन में एक सीट रिक्त है। इस तरह गठबन्धन के 48 सदस्य हैं। बहुमत पाने के लिये 41 सदस्य चाहिये- उसे 47 मिले। भाजपा व उसकी सहयोगी पार्टियों के पास 32 सदस्य हैं परन्तु उसके 29 सदस्यों ने विश्वास मत के विरोध में वोट डाले। एक सदस्य लम्बे समय से बीमार हैं।

चंपाई सोरेन की जीत का अनेक मायनों में महत्व है। पहला तो यह कि भाजपा का जेएमएम व गठबन्धन को तोड़ने का प्रयास वैसा सफल नहीं हो पाया जिस प्रकार से उसने हाल ही में बिहार में किया है। ईडी के जरिये 'ऑपरेशन लोटस' का षडयंत्र पूरी तरह से नाकाम हो गया। इतना ही नहीं, केन्द्रीय जांच एजेंसियों का डर इसलिये खत्म होता नज़र आता है क्योंकि विश्वास मत के दौरान सदन में अपने भाषण में चंपाई सोरेन ने साफ कर दिया कि उन्हें 'हेमंत सोरेन-2' के रूप में ही जाना जाये। दूसरी तरफ ईडी की हिरासत में लाये गये हेमंत सोरेन ने सदन में बेखौफ कहा कि 'ईडी उन लोगों का बाल भी बांका नहीं कर पाती जो जनता का लाखों करोड़ों रुपये डकारकर विदेश भाग गये हैं।' सबसे बड़ी बात तो यह है कि इंडिया गठबन्धन एकजुट रहा। भाजपा की कोशिशें थीं कि कुछ लोगों को तोड़कर भाजपा की सरकार बनाई जाये। सांसद निशिकांत दुबे का यह दावा भी खोखला साबित हो गया जिसमें उन्होंने कहा था कि जेएमएम के 18 विधायक पाला बदल सकते हैं।

इस अवसर पर लोग बिहार के बरक्स झारखंड के घटनाक्रम को देख रहे हैं जिसमें साफ है कि तमाम राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम करते हैं। नीतीश कुमार ने 28 जनवरी की सुबह 11 बजे राष्ट्रीय जनता दल के साथ चलाई जा रही सरकार से इस्तीफा दिया, उन्हें उसी शाम 5 बजे भाजपा के साथ बनाई सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिला दी गयी। उन्हें विश्वास मत हासिल करने के लिये भी पर्याप्त समय दिया गया है। एक ही सरकार के दो राज्यपालों द्वारा दो तरह के नियम लागू करना भाजपा के लोकतंत्र विरोधी रवैये को तो साबित करता ही है, उससे यह भी साबित होता है कि सत्ता पाने के लिये भाजपा किसी भी हद तक जा सकती है।

उल्लेखनीय है कि ना-नुकुर के साथ 3 फरवरी को चंपाई सोरेन को सीएम पद की शपथ दिलाई गयी, उसके तत्काल बाद राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' में भाग लेने के लिये नए मुख्यमंत्री गोड्डा पहुंचे थे। वहां उनका पहुंचना और अब सदन में कांग्रेस का जेएमएम के साथ खड़ा होना बतलाता है कि गठबन्धन अटूट है। उसके सदस्य अब केन्द्रीय जांच एजेंसियों के डर से बाहर निकल चुके हैं। इसका असर उन राज्यों की गैर भाजपायी सरकारों पर भी सकारात्मक ही पड़ेगा जिन्हें गिराने की कोशिशें भाजपा करती आ रही है। इनमें मुख्यत: दिल्ली की अरविंद केजरीवाल की सरकार कही जा सकती है। उसके तीन मंत्री व एक सांसद पहले से ही ईडी की कार्रवाई से जेल की सलाखों के पीछे हैं तो वहीं मुख्यमंत्री केजरीवाल तथा शिक्षा मंत्री आतिशी मार्लेना पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। चंपाई सोरेन के जरिये हेमंत सोरेन को मिली जीत से सभी का मनोबल बढ़ेगा।

ऑपरेशन लोटस के माध्यम से झारखंड की गठबंधन सरकार को हटाकर अपनी सरकार बनाने के मंसूबे ध्वस्त होने से भी भाजपा के रवैये में कोई फर्क नहीं आयेगा- ऐसा उसके ट्रैक रिकार्ड को देखकर कहा जा सकता है। कई राज्यों में चुनी हुई सरकारों को अनैतिक तरीकों से गिराने वाली भाजपा की सत्ता लोलुपता जगजाहिर है। वह तो अपना रास्ता बदलने से रही पर यह एक ऐसा अवसर है जब स्वयं जांच एजेंसियों को अपनी साख फिर से प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिये। भाजपा सरकार के गैरकानूनी आदेशों को मानने तथा संसदीय प्रक्रिया में भाजपा का हाथ बंटाने की बजाये निष्पक्ष रूप से उसे काम करना चाहिये-यह भी झारखंड एपीसोड की एक सीख हो सकती है।

बहरहाल, भाजपा को चाहिये कि वह ऐसे गैर वाजिब कामों से बाज आये और देश में स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम करने की जिम्मेदारी ले, क्योंकि वही सत्तारुढ़ है और यही उसका उत्तरदायित्व है। जनतंत्र में सभी राजनैतिक दलों को भयरहित होकर काम करने तथा अपने विस्तार का माहौल मिलना चाहिये। चुनी हुई सरकारों को गिराना या उन्हें अस्थिर करना किसी भी देश के लिये निकृष्टतम कार्य ही कहा जायेगा। भाजपा ने जो कांग्रेस मुक्त या विपक्ष मुक्त भारत की अवधारणा बना रखी है, वह निहायत लोकतंत्र विरोधी है। झारखंड में ईडी के जरिये निर्वाचित सरकार को गिराने में नाकाम रही भाजपा को लोकतंत्र का ककहरा फिर से पढ़ने की ज़रूरत है। झारखंड में मिली नाकामी से वह कई सबक एक साथ ले सकती है, अगर लेना चाहे तो।


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