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केन्द्र सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विस्वास पाने में रही असमर्थ: रालोद

राष्ट्रीय ल़ोकदल ने केन्द्र सरकार के द्वितीय कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जीतने में सरकार नाकाम रही है।

केन्द्र सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विस्वास पाने में रही असमर्थ: रालोद
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लखनऊ। राष्ट्रीय ल़ोकदल ने केन्द्र सरकार के द्वितीय कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जीतने में सरकार नाकाम रही है।

रालोद प्रवक्ता सुरेन्द्र नाथ त्रिवेदी ने शनिवार का यहां कहा कि सरकार इस कार्यकाल में देश के अल्पसंख्यक वर्ग का वोट लेने के बाद भी उसका विश्वास पाने में सरकार अस्मर्थ रही। नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित करके लगभग 35 प्रतिशत जनसंख्या वाले अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की ऐसी भावना को जन्म दिया जो आने वाले समय में दूर होती नजर नहीं आती। उन्होंने कहा कि दिल्ली के शाहीन बाग, लखनऊ के घण्टाघर और गोमती नगर के साथ साथ कानपुर, आजमगढ़, सम्भल और सहारनपुर के अल्पसंख्यक महिलाओं द्वारा महीनों तक चलाये गए ऐतिहासिक धरनों की दूसरी मिसाल देश के इतिहास में नहीं मिलती है। धरना स्थलों पर केन्द्र सरकार के किसी भी प्रतिनिधि का न जाना भी लोकतंत्र में बहुत हास्यास्पद है।।

उन्होंने कहा कि देश के किसानों और मजदूरों का वर्ग कुल आबादी का 80 प्रतिशत है। सरकार के पिछले कार्यकाल से लेकर अब तक किसानों की अशिक्षा का लाभ उठाकर भाजपा ने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने, गन्ने का मूल्य बढा़ने, उनकी आय दुगुनी करने जैसे अनेकों लालीपाप किसानों को दिखाये। खाद के मूल्यों में वृद्धि से लेकर बिजली और डीजल की कीमतों में भी बेतहाशा बढो़त्तरी की गई। कर्जमाफी के नाम पर लाखों किसानों के सम्मान को ठेस पहुंचाने में भी सरकार को कोई संकोच नहीं रहा।।

रालोद प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि इस महामारी के कारण देश में मजदूरों की दशा इतनी दयनीय हो गई जिसकी यादें आम जनमानस को झकझोर रही हैं। सरकार का पूँजीवादी व्यवस्था में विश्वास और कारपोरेट घरानों से लगाव ही मजदूरों की दुर्दशा का कारण है। जिस देश में विशाल जनमानस दुःखी हो और अभी तक किसी प्रकाश की किरण ने धरातल पर आकर कोई सार्थक पहल न की हो फिर भी केन्द्र सरकार अपनी सफलता के गीत गाये या देश वासियों को भावनात्मक पत्र लिखा जाय, दोनों ही स्थितियां विचित्र प्रतीत होती हैं।


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