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टकराव के रास्ते पर केन्द्र

लगता है कि मणिपुर में जारी हिंसा और महिलाओं के साथ हुए व्यापक उत्पीड़न के सवालों पर चौतरफा घिरे हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब भी राज्यों के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने की ज़रूरत महसूस नहीं हो रही है

टकराव के रास्ते पर केन्द्र
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लगता है कि मणिपुर में जारी हिंसा और महिलाओं के साथ हुए व्यापक उत्पीड़न के सवालों पर चौतरफा घिरे हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब भी राज्यों के साथ सौहार्द्रपूर्ण सम्बन्ध बनाये रखने की ज़रूरत महसूस नहीं हो रही है और उन्हें शायद राज्यों के साथ, खासकर जहां विरोधी दलों की सरकारें हों, टकराव व मनमुटाव का ही रास्ता बेहतर लगता है। नौ वर्षों का उनका कार्यकाल ऐसे अनेक दृष्टांतों से भरा पड़ा है। ताज़ा उदाहरण गुरुवार को देखने को मिला जब मोदी राजस्थान के दौरे पर गये थे। मेडिकल कॉलेज के उद्घाटन तथा अन्य कार्यक्रमों के लिये निर्धारित इस कार्यर्क्रम में राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पहले आमंत्रित किया गया था और उन्हें स्वागत के लिये तीन मिनट दिये गये थे। आश्चर्य कि आखिरी क्षणों में उनका नाम हटा दिया गया।

गहलोत ने इस आशय के एक ट्वीट के माध्यम से पीएम और केन्द्र सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि चूंकि उनका भाषण काट दिया गया है इसलिये वे प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो रहे हैं परन्तु इस ट्वीट के माध्यम से मोदी का राजस्थान में तहेदिल से स्वागत करते हैं। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से इस पर जवाबी ट्वीट जारी किया गया। जिसमें कहा गया कि केंद्र सरकार के सीकर में दो अलग-अलग आयोजन हो रहे हैं। इनमें एक सरकारी कार्यर्क्रम है और एक पार्टी कार्यर्क्रम है।

सरकारी कार्यर्क्रम इसलिए आयोजित किया गया है कि सीएम भाग ले सकें। हालांकि वे (गहलोत) वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सीकर में प्रत्यक्ष तौर पर आयोजित कार्यर्क्रम में शामिल होना चाहते थे जो सामान्य र्प्रिक्रया या प्रोटोकॉल के अनुसार नहीं है। पीएमओ के अनुसार मुख्यमंत्री कार्यालय से यह सूचना मिली थी कि गहलोत की तबियत खराब होने के कारण वे इसमें भाग नहीं ले पायेंगे। इसमें कहा गया कि, 'प्रधानमंत्री की राजस्थान में की गई पूर्व यात्राओं में भी आपको बुलाया गया था और आपने इन कार्यर्क्रमों की शोभा अपनी उपस्थिति से बढ़ाई थी। आज के कार्यर्क्रम में शामिल होने के लिए आपका स्वागत है। आपका नाम विकास कार्यों की नाम पट्टिका पर भी दर्ज है। आपको यदि हाल ही में लगी चोट के कारण कोई शारीरिक परेशानी न हो, तो आपकी उपस्थिति को बहुत महत्व दिया जाएगा।'

नाराज़ मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री पर तंज करते हुए कहा कि आज हो रहे 12 मेडिकल कॉलेजों के लोकार्पण और शिलान्यास राजस्थान सरकार व केन्द्र की भागीदारी का परिणाम है। इन मेडिकल कॉलेजों की परियोजना लागत 3,689 करोड़ रुपये है जिसमें 2,213 करोड़ केन्द्र का और 1,476 करोड़ राज्य सरकार का अंशदान है। मैं राज्य सरकार की ओर से भी सभी को बधाई देता हूं। गहलोत ने ये भी कहा कि वे इस कार्यर्क्रम में अपने भाषण के माध्यम से जो मांगें रखते, वे इस ट्वीट के माध्यम से रख रहे हैं। उन्होंने फिर व्यंग्य करते हुए कहा कि 'उम्मीद करता हूं कि 6 महीने में की जा रही इस सातवीं यात्रा के दौरान आप इन्हें पूरी करेंगे।'

वैसे गहलोत ने जो मांगें रखीं वे मुख्यत: इस प्रकार हैं- राजस्थान खासकर शेखावटी के युवाओं की मांग पर अग्निवीर स्कीम को वापस लेकर सेना में परमानेंट भर्ती पूर्ववत जारी रखी जाए, राज्य सरकार ने अपने अंतर्गत आने वाले सभी को-ऑपरेटिव बैंकों से 21 लाख किसानों के 15,000 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं। राजस्थान ने केन्द्र सरकार को राष्ट्रीयकृत बैंकों के कर्ज माफ करने के लिए वन टाइम सैटलमेंट का प्रस्ताव भेजा है जिसमें किसानों का हिस्सा राज्य देगा अत: इस मांग को पूरा किया जाए। राजस्थान विधानसभा ने जातिगत जनगणना के लिए संकल्प पारित कर भेजा है इसलिये केन्द्र सरकार इस पर अविलंब निर्णय ले। एनएमसी गाइडलाइंस के कारण हमारे तीन जिलों में खोले जा रहे मेडिकल कॉलेजों में केन्द्र सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिल रही है। ये पूरी तरह राज्य के वित्तपोषण से बन रहे हैं। इन आदिवासी बाहुल्य तीनों जिलों के मेडिकल कॉलेजों में भी केन्द्र सरकार 60 प्रतिशत की मदद दे और पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा दिया जाए।

राजस्थान की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री की ओर से रखी गई इन मांगों पर केंद्र की भाजपा सरकार कितना ध्यान देगी, इस बारे में कोई खास उम्मीद नहीं बांधी जा सकती। क्योंकि भाजपा के कार्यकाल में एक ओर डबल इंजन सरकार का लोकतंत्र विरोधी जुमला चला हुआ है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सरकार होने के फायदे बताए जाते हैं। दूसरी ओर जिन राज्यों में गैरभाजपा सरकारें हैं, वहां जितने भी विकास कार्य हो रहे हैं, उनमें या तो केंद्र से टकराव दिख रहा है या फिर पूरा होने की स्थिति में श्रेय लेने की होड़ नजर आ रही है। इन दोनों स्थितियों के बीच भारत की संवैधानिक व्यवस्था, लोकतांत्रिक मूल्य झूल रहे हैं। संविधान निर्माताओं ने केंद्र और राज्य के बीच आदर्श संबंधों की कल्पना की थी, आज स्थिति इससे बिल्कुल उलट दिख रही है।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में मणिपुर के घटर्नाक्रम को लेकर मोदी ने संसद भवन के बाहर जो बहुत संक्षिप्त उद्बोधन दिया था, उसके दौरान उन्होंने कुछ राज्यों के साथ मणिपुर की तुलना कर दी थी। उनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल भी थे। स्वाभाविकत: इससे राजस्थान में छ.ग. व प. बंगाल की ही तरह मोदी के खिलाफ नाराजगी है क्योंकि इन प्रदेशों में ऐसी स्थिति बिलकुल नहीं है। इतना ही नहीं, राजस्थान में इसी साल कुछ और राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।

भाजपा की हालत वहां पतली बतलाई जाती है और पूरी सम्भावना है कि गहलोत सरकार सत्ता में लौट सकती है। इतना ही नहीं, सचिन पायलट के जरिये वहां जो 'ऑपरेशन लोटस' के मंसूबे भारतीय जनता पार्टी ने बांध रखे थे, वे भी नाकाम हो गये हैं क्योंकि कांग्रेस का नेतृत्व दोनों प्रमुख नेताओं के बीच मनमुटाव टालने में फिलहाल तो कामयाब दिख रहा है। ऐसी आशा जताई जा रही है कि कांग्रेस वहां एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी। उलटे, वहां भाजपा ही विभाजित है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया का अलग खेमा है जो पार्टी नेतृत्व के लिये सिरदर्द बना हुआ है।

मोदी की यात्रा विकास सम्बन्धी कामों को लेकर थी, जिसमें दलगत मतभेदों को दूर रखना चाहिये था, परन्तु यह सम्भवत: मोदी व भाजपा की तासीर व नीति में नहीं है। जो हो, गहलोत के साथ हुआ यह व्यवहार उनका प्रदेश कतई पसंद नहीं करेगा।


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