सेलेब्रिटी, सत्ता और समर्पण
अगर हम बारीकी से पड़ताल करें तो पाएंगे व्यापक सामाजिक मसलों पर चुप्पी बनाए रखना हमारे अधिकतर सेलेब्रिटीज का- फिर वह चाहे बॉलीवुड के हों, खेल जगत के हो या क्रिकेट की दुनिया के हों- की पहचान बन गया है।

अगर हम बारीकी से पड़ताल करें तो पाएंगे व्यापक सामाजिक मसलों पर चुप्पी बनाए रखना हमारे अधिकतर सेलेब्रिटीज का- फिर वह चाहे बॉलीवुड के हों, खेल जगत के हो या क्रिकेट की दुनिया के हों- की पहचान बन गया है। अधिकतर लोग वैसी ही बात बोलना पसंद करते हैं जो हुकूमत को पसन्द हो। क्या यह कहना मुनासिब होगा कि उन्हें यह डर सताता रहता है कि ऐसी कोई बात बोलेंगे जो हुकूमत को नागवार गुजरती हो, तो वह उनके कैरियर को बाधित कर सकती है।
भारतरत्न लता मंगेशकर और सचिन तेंडुलकर, क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली, बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल, कनाडा के नागरिक एवं एक्टर अक्षय कुमार, फिल्म अभिनेता अजय देवगन, फिल्म निर्देशक करण जौहर आदि आदि नामवरों में क्या समानता है? जाहिर है ऊपरी तौर पर कोई समानता ढूंढना मुश्किल है, कोई सुरों की सम्राज्ञी तो कोई अभिनय का तीरंदाज तो कोई खेल की दुनिया का सरताज!
बहरहाल, पिछले दिनों अचानक उनका साझापन नमूदार हुआ जब इन सभी ने लगभग एक जुबां में ट्वीट किया और विगत कई महिनों से चल रहे किसान आन्दोलन के 'सामंजस्यपूर्ण समाधान' की हिमायत कर डाली। संयोग यह था कि उनकी यह हिमायत रिहाना नामक चर्चित विश्वस्तरीय पॉप गायिका-ट्विटर पर जिनके करोड़ों फॉलोअर्स हैं- द्वारा किसान आन्दोलन को लेकर जारी एक ट्वीट और इसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी की गई अभूतपूर्व प्रतिक्रिया के बाद सामने आई।
दिलचस्प था कि उनके बयानों की एक जैसी भाषा, 'भारत के सम्प्रभुता पर कोई बाहरी ताकत आंच नहीं ला सकती' ऐसी उनकी उद्घोषणा जहां उनमें मौलिकता की कमी को उजागर कर रही थी वहीं लोगों ने यह भी महसूस किया अपनी शीतनिद्रा से उनके अचानक जग जाने की वजह क्या है?
लोगों ने रेखांकित किया कि जिस किसान आन्दोलन को लेकर वह एक ही जुबां में ट्वीट कर रहे हैं, उसके सामंजस्यपूर्ण समाधान की बात कर रहे हैं, वह दो माह से अधिक वक़्त से दिल्ली की सरहदों पर चल रहा है, किसान हजारों-लाखों की तादाद में दिल्ली की सरहदों पर विगत दो महिनों से आसमान के नीचे कंपकंपाती ठंड में रह रहे हैं, जहां लगभग डेढ़ सौ के करीब किसान ठंड से या अन्य बीमारी से मरे भी हैं, लेकिन इस दौरान इनमें से किसी का भी दिल नहीं पसीजा और उस वक़्त इनमें से किसी ने भी एक लफ्ज भी नहीं कहा था, सब गोया ऐसे रहे कि कुछ हुआ न हो!
निश्चित तौर पर इन्हीं क्षेत्रों से ऐसी तापसी पन्नू जैसी आवाजें भी थीं जिन्होंने इन सेलेब्रिटीज के इस 'रीढ़विहीन रवैये' की आलोचना की और साफ-साफ कहा कि 'अगर एक ट्वीट उनकी एकता को बाधित करता है, एक जोक आपकी आस्था को चोट पहुंचाता है या एक शो आप के धार्मिक विश्वासों को खरोंच पहुंचाता है तो इसका मतलब यही है कि आप अपनी मूल्य प्रणाली को मजबूत करें न कि दूसरों के लिए 'प्रचारक' की भूमिका में आ जाएं।'
तापसी पन्नू की चेतावनी सर आंखों पर लेकिन इन दिनों आलम यह है कि अधिकतर सेलेब्रिटीज ने अपना पक्ष चुन लिया है, उन्हें शायद इस बात से भी गुरेज नहीं है कि पब्लिक में उनकी क्या छवि बन रही है? 'आल्ट न्यूज के संस्थापक प्रतीक सिन्हा की इस बात से क्या सहमत हुआ जा सकता है कि उनके इस आचरण की तुलना 'सर्कस के बंदर' के साथ की जा सकती है।
अगर हम बारीकी से पड़ताल करें तो पाएंगे व्यापक सामाजिक मसलों पर चुप्पी बनाए रखना हमारे अधिकतर सेलेब्रिटीज का- फिर वह चाहे बॉलीवुड के हों, खेल जगत के हो या क्रिकेट की दुनिया के हों- की पहचान बन गया है। अधिकतर लोग वैसी ही बात बोलना पसंद करते हैं जो हुकूमत को पसन्द हो। क्या यह कहना मुनासिब होगा कि उन्हें यह डर सताता रहता है कि ऐसी कोई बात बोलेंगे जो हुकूमत को नागवार गुजरती हो, तो वह उनके कैरियर को बाधित कर सकती है।
वह उन्हीं चीजों के बारे में स्टैण्ड लेते हैं जिनके बारे में सभी जानते हैं- उदाहरण के लिए स्वच्छता के लिए या नारी सशक्तिकरण आदि के लिए। कुछ समय पहले का एक उदाहरण देना यहां समीचीन होगा। उन दिनों छत्तीसगढ़ के सुकमा में उग्रवादी हमले में सीआरपीएफ के जवान मारे गए थे। इस सम्बन्ध में अपने ट्वीट के जरिए खुद बॉलीवुड के एक जमाने के हीरो विवेक ओबेरॉय ने बताया कि मारे गए सीआरपीएफ के 25 जवानों के आश्रितों को उन्होंने ठाणे जिले में फ्लैट देने का निर्णय लिया है।
प्रस्तुत फ्लैट उनकी अपनी फर्म इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा बनाए जाने वाले आवासीय योजना में से दिए जाने वाले थे। इन आश्रितों को लेकर इस ऐलान के कुछ समय पहले कनाडा के नागरिक तथा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में उन दिनों रजत कमल से नवाजे गए अक्षय कुमार का बयान भी आया था जिसमें उन्होंने इन परिवारों के लिए चन्द लाख रुपए देने की घोषणा की थी।
अखबार में यह बात भी प्रकाशित हुई थी कि उनके इस कदम से उनकी जेब एक करोड़ रुपए अधिक सी खाली होगी। यह वही समय था जब वह 'स्वच्छ भारत अभियान' के लिए मध्य प्रदेश के एक सुदूर इलाके में टायलेट खोदते नजर आए थे और बाद में पता चला कि इसी थीम पर केन्द्रित उनकी एक फिल्म भी आनेवाली है जिसका शीर्षक है 'टायलेट - एक प्रेम कथा।'
मुसीबत में पड़े लोगों की मदद करने से जैसे मानवीय कदम के लिए कोई कुछ करे तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है? बालीवुड के इन दोनों सितारों के इस बेहद मानवीय कदम में एक दिलचस्प समानता उन दिनों भी रेखांकित की थी, जहां उन्होंने केन्द्रीय आरक्षी पुलिस बल के मृतक सैनिकों के परिवारों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया था, वहीं उन्होंने यह जानने की कोशिश भी नहीं की थी कि उसी क्षेत्र में आदिवासियों की विशाल आबादी भी रहती है और उसके साथ हो रही ज्यादतियों का मसला खुद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रडार पर रहता है,
आदिवासियों के साथ हो रही ज्यादतियों को लेकर, आदिवासी युवतियों के साथ सामूहिक बलात्कार की घटनाओं को लेकर या फर्जी मुठभेड़ों को लेकर उसकी रिपोर्टें भी आती रहती हैं।
सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन को देखें, जो सिनेमा की अपनी दूसरी पारी में भी अपने सुपरस्टार होने की छाप छोड़ते रहते हैं। अभिनय के क्षेत्र में नयी जमीन तोड़ने वाले अमिताभ बाकी सभी मामलों में बिल्कुल लीक पर चलते दिखे हैं। व्यापक राजनीतिक सामाजिक घटनाओं पर चुप्पी तोड़ना तो दूर अपने निजी जीवन में भी वह उसी लीक पर चलते दिखे हैं, जिस पर आम आदमी चलता है।
यथास्थिति को लेकर इन सेलेब्रिटीज के इस अजीब सम्मोहन को लेकर देश के एक अग्रणी अ$खबार में कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित लेख की बात आज भी मौजूं जान पड़ती है। 'ए स्टार्स रिअल स्ट्राइप्स' शीर्षक अपने लेख में (टाईम्स आफ इण्डिया) अर्चना खरे ने पूछा था कि 'बालीवुड हमेशा हालीवुड से प्रभावित दिखता है, निजी शैलियों से लेकर फिल्म की स्क्रिप्टस तक सभी में उसकी नकल उतारता है, फिर ऐसी क्या बात है जो हमारे यहां के कलाकारों को स्टेट्समैन और अगुआ बनने से रोकती है जो मंच पर खड़े होकर साम्प्रदायिक हिंसा का विरोध करे, गरीबी, जातिप्रथा, भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज बुलन्द करे।'
कुछ साल पहले हालीवुड के सबसे चर्चित नायकों में से एक जार्ज क्लूनी की एक तस्वीर दुनिया भर के अ$खबारों में प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्हें हथकड़ी डाले दिखाया गया था।
यह किसी फिल्म की शूटिंग का दृश्य नहीं था, वह खुद सूडान दूतावास के सामने गिरफ्तार हुए थे, जब वह वॉशिंग्टन स्थित सूडान के दूतावास के सामने कई अन्यों के साथ प्रदर्शन करने पहुंचे थे। याद रहे कि वह समय था जब जार्ज क्लूनी सूडान की मानवीय त्रासदी, वहां भुखमरी की बदतर होती स्थिति के बारे में बोलते रहे थे।
मगर किसी मसले पर स्टैण्ड लेकर खड़े होने वालों में क्लूनी अकेले नहीं रहे हैं। वहां के कई बड़े कलाकार तानाशाहों के विरोध में, मुद्दों को रेखांकित करने में, जरूरतमन्दों को मदद करने में समय-समय पर आगे आते रहते हैं। हॉलीवुड ही नहीं वहां विभिन्न खेलों के अग्रणी खिलाड़ियों की ऐसी फेहरिस्त है जिन्होंने सत्ता के सामने सच बोलने का साहस बार-बार किया और उसके लिए जोखिम उठाए।
'द ग्रेटेस्ट' मुहम्मद अली की मृत्यु पर यही बात रेखांकित की गई थी कि किस तरह वह न केवल महान खिलाड़ी थे बल्कि अभिव्यक्ति के तमाम खतरों को उठाने के लिए तैयार महान शख्सियत भी थे। क्या हमारे महानायक एवं सम्राट उनसे कुछ सीख लेंगे?


