जातिगत जनगणना सामाजिक न्याय - टू का नया अध्याय शुरु करेगी
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने जातिगत जनगणना की जरूरत को सही साबित कर दिया है

- शकील अख्तर
जातिगत जनगणना की बात इसलिए है कि इससे सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। क्या इनकी सामाजिक स्थिति है, क्या आर्थिक स्थिति है, कितनी संख्या है सब सामने आ जाने के बाद इनके लिए योजना बनाना आसान होगी। अभी ब्राह्मण कल्याण बोर्ड का उद्देश्य बताते हुए राज्य सरकार ने कहा कि गरीब मध्यवर्गीय ब्राह्मणों को सरकारी योजनाओं का उचित लाभ देना।
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने जातिगत जनगणना की जरूरत को सही साबित कर दिया है। उसने परशुराम जयंती पर ब्राह्मण कल्याण बोर्ड बनाकर बता दिया कि जाति भारतीय समाज का सबसे बड़ा सत्य है और सारी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक गतिविधियां इसके अंतर्गत ही संचालित होती हैं। और जब सब कुछ इस आधार पर ही होता है तो इनकी सही-सही संख्या, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार सबके नवीनतम आंकड़े होना चाहिए।
भाजपा सरकार ब्राह्मणों का कल्याण तभी ठीक से कर पाएगी जब उसे पता हो कि राज्य में ब्राह्मण कितने हैं और बीस साल पहले उनकी स्थिति क्या थी और आज क्या हो गई है। जब गणना होगी, सर्वे होगा तभी मालूम पड़ेगा कि जब सरकारी स्कूल थे, सरकारी चिकित्सा उपलब्ध थी तब किसके कितने बच्चे पढ़ते थे, कितने लोगों को सरकारी चिकित्सा का लाभ मिलता था, कोरोना में कितने लोग किस समुदाय के मरे। कितनों को सरकारी सहायता उपलब्ध हुई। सारे आंकड़े आ जाएंगे। यह भी पता चल जाएगा कि कितने लोगों की नौकरी छूटी और बीस साल में कितनों को मिली।
फिर ब्राह्मण कल्याण बोर्ड की तरह राजपूत सशक्तिकरण बोर्ड, वैश्य सहायता बोर्ड और दूसरे किस-किस समाज के लिए सरकारी अनुदान जरूरी है यह भी मालूम पड़ जाएगा। कहने का मतलब स्पष्ट है। आप समझ रहे होंगे कि जातिगत जनगणना जिसकी मांग राहुल गांधी ने की है वह केवल ओबीसी के फायदे में नहीं होगी, सबके फायदे में होगी। जब आपके पास आंकड़े सही होंगे तो आप सबके विकास की सही योजना बना सकेंगे।
इसलिए मध्यप्रदेश की अपनी सरकार को थैंक्यू कहते हुए भाजपा को जातिगत जनगणना के पक्ष में तत्काल निर्णय ले लेना चाहिए। पहला काम तो यह करना चाहिए कि 2011 में जो यूपीए सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई थी उसके आंकड़े फौरन जारी कर देना चाहिए। दूसरे 2021 की जनगणना जो पहले से दो साल से ज्यादा लेट हो गई है उसे ज्यादा विस्तृत पैमाने पर करने की घोषणा करना चाहिए। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार अगर ब्राह्मणों का कल्याण करना चाहती है तो उसे दूसरे 90 प्रतिशत से ज्यादा समाज के लिए भी कुछ करना चाहिए या वह ऐसा समझती है कि बाकी लोगों दलित, पिछड़ों और सवर्णों में भी दूसरे समुदाय यथा राजपूत, वैश्य, जैन, सिंधी, कायस्थों की स्थिति इतनी अच्छी ह कि उन्हें किसी सहायता की जरूरत ही नहीं है। या उसके पास ब्राह्मणों के कुछ आंकड़े हैं जिनके आधार पर उसने यह फैसला किया है।
वैसे तो हमने खुद इसी विषय जातिगत जनगणना पर लिखे अपने पिछले लेख में कहा था कि गणना इसलिए जरूरी है कि अब तो आरक्षण सबको मिलने लगा है। भाजपा सरकार ने ही दिया है जनरल को भी। और पचास प्रतिशत की सीमा भी तोड़ दी है। तो अब यह मालूम होना चाहिए कि किस की क्या वास्तविक स्थिति है। हमने लिखा था कि गांव में रहने वाला ब्राह्मण वहां के सरकारी स्कूल में पढ़कर ही वहीं स्कूल में टीचर भी बन जाता था। मगर अब न सरकारी स्कूल बचे और न ही शिक्षकों की नौकरी। तो ब्राह्मण के लिए भी बड़ी समस्या है। अधिकांश लोग पीढ़ियों से नौकरी पर ही निर्भर थे। खेती, व्यापार तो उनके पास था नहीं। अब नौकरी भी खत्म करके, शिक्षा के अवसर भी खत्म करके उनके लिए जीवनयापन मुश्किल बना दिया है। महंगे प्राइवेट स्कूलों में जिन्हें भाजपा विप्र (पढ़ने-लिखने वाले) कह रही है कैसे अपने बच्चों को पढ़ा सकते हैं?
इसलिए सिर्फ ओबीसी की संख्या सही जानने के लिए ही नहीं सवर्णों में भी शिक्षा, नौकरी के अवसर खोने वाले समुदायों के लिए भी विस्तृत जानकारी जरूरी है। शिवराज सिंह चौहान सरकार ने ब्राह्मणों के लिए कल्याण बोर्ड बनाकर सवर्णों की दूसरी जातियों में भी उत्थान की भावना भर दी है।
राजपूतों की यही समस्या है। जमीनें बची नहीं हैं। शिक्षा की तरफ रुझान बढ़ा नहीं है। नौकरी हैं नहीं। जैसे ब्राह्मणों में कुछ लोग परशुराम के नाम से गर्वबोध से भरे रहते हैं वैसे ही राजपूतों में करणी सेना बनाकर युवा खुद को शक्तिशाली समझते हैं। यह सब जाति के नाम पर होता है। और एक दूसरे के खिलाफ ही होता है। जब शिक्षा, नौकरी, रोजगार, कला, संस्कृति सब गौण हो रहे हैं तो मिथ्या गर्व बोध को बढ़ाया जाता है। जब जाति गर्व बोध बढ़ेगा तो समाज में तनाव भी बढ़ेगा। इसको शांत करने का एक ही तरीका है वह है सबका सशक्तिकरण। जैसा राहुल ने कहा कि 'जितनी आबादी उतना हक!' हक या अधिकार भाजपा की मध्यप्रदेश सरकार दे तो रही है मगर बिना किसी सर्वे के, गणना के। केवल भावनाओं के आधार पर। हो सकता है ब्राह्मणों को किसी और सुविधा सहायता की जरूरत हो और सरकार कुछ और दे रही हो। ऐसे ही मुख्यमंत्री चौहान ने पाल गड़रिया धनगर बोर्ड की स्थापना की बात भी की। यह जाति किसी राज्य में पिछड़े में, कहीं अनुसूचित जाति में और अभी मध्य प्रदेश में घुमक्कड़ अर्ध घुमक्कड़ जाति में शामिल की गई है।
जातिगत जनगणना की बात इसलिए है कि इससे सारी चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। क्या इनकी सामाजिक स्थिति है, क्या आर्थिक स्थिति है, कितनी संख्या है सब सामने आ जाने के बाद इनके लिए योजना बनाना आसान होगी। अभी ब्राह्मण कल्याण बोर्ड का उद्देश्य बताते हुए राज्य सरकार ने कहा कि गरीब मध्यवर्गीय ब्राह्मणों को सरकारी योजनाओं का उचित लाभ देना। सही बात है। मगर उनकी संख्या सही पता चल जाए और यह कितने गरीब है, कितने मध्यमवर्गीय और उसमें भी उनके रोजगार की स्थिति क्या है तो योजनाओं का सही लाभ दिया जा सकेगा।
आशा है भाजपा सरकार की इस पहल के बाद जातिगत जनगणना का विरोध खत्म हो जाएगा। और राहुल गांधी की मांग के अनुसार 2011 में करवाई गई जातिगत जनगणना के आंकड़े जल्दी घोषित हो जाएंगे। बिहार में तो यह जातिगत जनगणना हो ही रही है। उसके आंकड़े जल्दी आने वाले ही हैं। फिर देश के बाकी आंकड़े छिपाए रखने से क्या फायदा?
जातिगत जनगणना इस समय देश का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। ओबीसी जो कहता है कि वह देश की आबादी के आधे हिस्से से ज्यादा संख्या रखता है इसका प्रबल समर्थक है। और अब जब ब्राह्मणों को भी जाति के आधार पर सरकारी योजनाओं में लाभ मिलने की बात कह दी गई है तो वे भी अपने आप जातिगत जनगणना के समर्थन में आएंगे। आखिर गिनती नहीं होगी तो कैसे मालूम चलेगा कि ब्राह्मणों की संख्या कितनी है। और जैसा कि भाजपा के समर्थन से कांशीराम जी ने कहा था कि 'जिसकी जितनी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी' और उसके बाद ही ब्राह्मणों ने मायावती को पूर्ण समर्थन देकर 2007 में उनकी सरकार बनवाई थी वह अजेंडा कब पूरा होगा?
लगता है उसका समय आ गया। और भारत की राजनीति में भी सामाजिक न्याय - टू का भी। इस सामाजिक न्याय- टू में जनरल को भी उनका पूरा हिस्सा मिलेगा। देखना दिलचस्प होगा कि अब कौन सी पार्टी इसके विरोध में खड़ी होती है। दक्षिण भारत में तो इसको भारी समर्थन है। बड़ी पहल तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने ही की है। उन्होंने इसे एक व्यापक वैचारिक आधार देते हुए आल इंडिया फेडरेशन आफ सोशल जस्टिस का गठन किया और तमाम समान विचार वाले दलों को एक मंच पर ले आए। इसके बाद ही राहुल ने कर्नाटक से इस मांग को बड़ा स्वर दे दिया।
अब देखना यह है कि धर्म की राजनीति के मुकाबले सामाजिक न्याय की यह लड़ाई विपक्ष कितने दम से लड़ता है। अगर विपक्ष ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया तो धर्म की राजनीति खत्म हो जाएगी। और सामाजिक न्याय- टू का माहौल बन जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


