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जाति आधारित अस्पृश्यता खत्म हुई, पर कुष्ठ के प्रति अस्पृश्यता का भाव बरकरार : राष्ट्रपति

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि स्वतंत्रता के बाद संविधान द्वारा जाति एवं धर्म पर आधारित अस्पृश्यता का तो अंत कर दिया गया

जाति आधारित अस्पृश्यता खत्म हुई, पर कुष्ठ के प्रति अस्पृश्यता का भाव बरकरार : राष्ट्रपति
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हरिद्वार/नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को कहा कि स्वतंत्रता के बाद संविधान द्वारा जाति एवं धर्म पर आधारित अस्पृश्यता का तो अंत कर दिया गया, लेकिन अभी भी कुष्ठ के प्रति अस्पृश्यता का भाव समाप्त नहीं हो पाया है। कुष्ठ रोग को कलंक के रूप में देखे जाने की अवेज्ञानिकता के अवशेष आज भी देखे जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुष्ठ रोगियों के प्रति व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्हें भी बीमारी के दौरान तथा उसके बाद स्वास्थ्य होने पर अन्य रोगों से मुक्त होने वाले रोगियों की तरह ही अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने इस संबंध में समाज मे फैली आंशकाओं को दूर करने के प्रयासों की भी जरूरत बताई।

राष्ट्रपति ने रविवार को उत्तराखंड के हरिद्वार स्थित कुष्ठ रोगियों के लिए काम करने वाले 'दिव्य प्रेम सेवा मिशन' के रजत जयंती समारोह को संबोधित किया।

उन्होंने दिव्य प्रेम सेवा मिशन को संकल्प और सेवा की भावना के साथ मानव कल्याण के लिए संवेदनशीलता से कार्य करने वाली संस्था बताते हुए कहा कि आज से 25 वर्ष पूर्व इस संस्था को एक छोटे बीज के रूप में बोने में उनकी भी भूमिका रही है, जो आज बड़ा वृक्ष बन गई है। उन्होंने कहा कि पवित्र गंगा के तट पर स्थापित यह मिशन मानव सेवा के लिए समर्पित हैं। संस्था द्वारा कुष्ठ रोगियों की समर्पित भाव से की जा रही सेवा सराहनीय है।

राष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी ने भी कुष्ठ रोगियों की सेवा कर समाज को इसके लिए प्रेरित किया था। महात्मा गांधी का जन्मदिन राष्ट्रीय कुष्ठ दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि कुष्ठ रोग असाधारण नहीं है। इसे असाधारण समझने वाले ही असली रोगी है। राष्ट्रपति ने कहा कि कुष्ठ रोगियों के बीच कार्य करने वालों का आत्मविश्वास कितना ऊंचा होता है, इस संस्था से जुड़े लोग इसका उदाहरण है।

राष्ट्रपति ने कहा कि उत्तराखंड की पवित्र धरती आध्यात्म के साथ ही शांति एवं ज्ञान की भूमि रही हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ के साथ हरिद्वार व हर-द्वार भगवान विष्णु एवं शिव की प्राप्ति के द्वार हैं। पतित पावनी जीवनदायिनी गंगा भी इसकी साक्षी है। उन्होंने कहा कि जब वे पहली बार राज्यसभा के संसद बने, तब भी तथा राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनकी पहली यात्रा उत्तराखंड की रही।

इससे पहले राष्ट्रपति ने दिव्य प्रेम सेवा मिशन, सेवाकुंज परिसर पहुंचने पर शिव अवतरण, शिव ज्ञान से जीव सेवा यज्ञ, सवा करोड़ पार्थिव शिवलिंग पूजन, एक वर्षीय अनुष्ठान कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इसके बाद उन्होंने दिव्य प्रेम सेवा मिशन, सेवाकुंज परिसर में बिल्ब के पौधे का रोपण भी किया।

इस अवसर पर राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल सेवानिवृत्त गुरमीत सिंह ने कहा कि आज का यह कार्यक्रम 'सेवा की साधना' को समर्पित है, सेवा की साधना की प्रेरणा हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों की देन है। भारतीय शास्त्रों की देन है, जिनमें परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य कहकर महिमामंडित किया गया है। पवित्र गुरुवाणी और सिक्ख जीवन-दर्शन में सेवा और परिश्रम को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। संस्था की इन स्वर्णिम उपलब्धियों की पृष्ठभूमि में पिछले पच्चीस वर्षो की तपस्या, सेवा और निष्ठा छिपी हुई है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि दिव्य प्रेम सेवा मिशन से जुड़े लोगों ने वर्ष 1997 से आजतक तिल-तिल जलाकर इस मिशन को आगे बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि जिसके प्रेम में दिव्यता होती है, उनके लिए दूसरों की सेवा करना ही धर्म बन जाता है। कुष्ठ रोगियों के हित के लिए यह संस्था निरंतर कार्य कर रही हैं।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वे सैनिक के पुत्र है और सैनिक कभी सेवानिवृत्त नहीं होता हैं। मुख्यमंत्री ने राष्ट्रपति सहित अन्य अतिथियों का उत्तराखंड की जनता की ओर से स्वागत करते हुए कहा कि उत्तराखंड की जनता ने राज्य के अंदर एक नया इतिहास बनाने का कार्य किया है।


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