सावधान! दम तोड़ रही पर्यावरण संरक्षण की मुहिम
पर्यावरण संरक्षण की मुहिम शहर में दम तोड़ रही है। वनों के साथ पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी वन वि•ााग व प्राधिकरण को दी गई है, विभाग के पास भी है और स्टाफ भी है
नोएडा। पर्यावरण संरक्षण की मुहिम शहर में दम तोड़ रही है। वनों के साथ पर्यावरण बचाने की जिम्मेदारी वन वि•ााग व प्राधिकरण को दी गई है, विभाग के पास भी है और स्टाफ भी है। लेकिन शहर की हरियाली को कागजी आंकड़ों और लोगों के नैतिक दायित्वों के विभाग ने पर्यावरण को छोड़ दिया है।
विभाग के पास बातें खूब हैं, लेकिन रखरखाव के नाम पर सिर्फ पैसों की बर्बादी। जमीनी हकीकत कुछ और ही है। नतीजा हरियाली लुप्त हो रही है तो जीवनदायिनी नदियां भी प्रदूषण से कराह रही हैं।
पर्यावरण प्रदूषण व ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए शहर में हर साल लाखों की संख्या में पौधे लगाए जा रहे है। शहर का करीब 16 प्रतिशत भाग हरियाली मय होना चाहिए। लेकिन इस छोटे से मानक को पूरा करने वन विभागग व प्राधिकरण के हाथ पांव फूल रहे है। इसकी प्रमुख वजह पौधों का रखरखाव ठीक से नहीं किया जाना।
प्रश्न उठाते हुए बोटेनिकल गार्डन ऑफ सर्वे के वैज्ञानिक डाक्टर शियो कुमार ने कहा कि हर साल शहर में पौधे लगाए जाते है। लेकिन क्या इनमे सुबह शाम पानी दिया जाता है। पर्याप्त खाद दी जाती है। या ग्रीन हाउस बनाए जाते है।
उन्होंने कहा कि पौधे एक बच्चे की तरह है जिन्हें कम से कम पांच से छह माह तक की देखरेख की जरूरत है। ऐसा नहीं करने पर वह कब जलकर समाप्त हो जाएंगे यह पता नहीं चलेगा। दरसअल, शहर में गगन चुंबी इमारतों को निर्माण के लिए लाखों की संख्या में पेड़ पौधों को काटा गया। लेकिन इनको कहा शिफ्ट किया इसका पूर्ण आकड़ा किसी के पास नहीं।
नए वाहनों के रजिस्ट्रेशन बड़ी समस्या
नोएडा में साढ़े चार लाख वाहन है। यही नहीं प्रतिदिन करीब 400 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन शहर में किया जा रहा है। इनमे से अधिकांश वाहन पेट्रोल पर चलते है। ऐसे में यदि इन सब को सीएनजी से चलाया जाए तो काफी हद तक पर्यावरण को बचाया जा सकता है।
समय रहते करे संरक्षण
डॉक्टर शियो ने बताया कि शहर में प्रदूषण की वजह कंस्ट्रक्शन है। यहा ऊची इमारतों के निर्माण में जल दोहन किया गया उड़ती धूल पीएम(10) में लगातार बढ़तोरी कर रही है। ऐसे में सड़कों से प्रदूषण को हटाने के लिए कनेर, लाल कनेर, पीला कनेर के अलावा बरगद, आम , पीपल के पौधे लगाए। साथ ही घरों में तुतसी , मनी प्लांट आदि पौधे लगाए। लेकिन इनका संरक्षण जरूर करे।
अमरबेल खत्म कर रहा हरियाली
शहर में सबसे ज्यादा समस्या हरियाली को बचाने की है। अमरबेल यहा के विकसित पौधों के लिए काल का गाल बन चुकी है। शहर के अधिकांश हिस्सों में अमरबेल ने बड़े पौधों को जलाकर राख कर दिया। प्राधिकरण व वन विभाग के पास अमरबेल से छुटकारा पाने का कोई •ाी सटीक हल नहीं है।
धूल रोकने में नाकाम प्रदूषण विभाग
शहर में प्रदूषण का मुख्य वजह अवैध निर्माण कंस्ट्रक्शन कार्य है। नतीजन आवासीय सेक्टरों में लगातार धूल के कणों में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि एनजीटी के निर्देश के बाद प्राधिकरण ने अपने स्तर से बिल्डरों व औद्योगिक इकाईयों पर जुर्माना लगाया। जिसके तहत कंस्ट्रक्शन सामग्री को ढक कर रखना, साइट पर पानी का छिड़काव , ग्रीन शीट से निर्माणाधीन बिल्डिंग को ढकना आदि है। बावजूद इसके पार्यावरण में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है।
ई वेस्ट सबसे घातक प्रदूषण
आईटी हब के नाम से मशहूर शहर में ई-वेस्ट के निस्तारण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। आम कूड़े के साथ ई वेस्ट को •ाी फेंका जाता है। इनसे ऐसी घातक रसायन निकलते है जो वायु में घुलकर उन्होंने जहरीला तक कर देते है। साथ ही मÞदा के साथ प्रक्रिया कर यहा भूमिगत जल को दूषित कर रहे है।


