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क्या ताड़ के पेड़ लोगों को आसमानी बिजली से बचा सकते हैं

ओडिशा में आसमानी बिजली की चपेट में आने से हर साल कई लोग मारे जाते हैं. इसे रोकने के लिए राज्य सरकार ने 20 लाख ताड़ के पेड़ लगाने का फैसला लिया है. क्या यह उपाय कारगर साबित होगा?

क्या ताड़ के पेड़ लोगों को आसमानी बिजली से बचा सकते हैं
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ओडिशा में आसमानी बिजली की चपेट में आने से हर साल कई लोग मारे जाते हैं. इसे रोकने के लिए राज्य सरकार ने 20 लाख ताड़ के पेड़ लगाने का फैसला लिया है. क्या यह उपाय कारगर साबित होगा?

ओडिशा आकाशीय बिजली से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले राज्यों में से एक है. राज्य में बीते 17 और 18 अगस्त को बिजली गिरने की वजह से 15 लोगों की मौत हो गई. ऐसी घटनाओं में कमी लाने के लिए राज्य की बीजेपी सरकार ने फैसला लिया है कि इस साल राज्य में 20 लाख ताड़ के पेड़ लगाए जाएंगे.

ओडिशा के राजस्व एवं आपदा प्रबंधन मंत्री सुरेश पुजारी ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, "ओडिशा में बिजली गिरने से होने वाली मौतों की दर भारत में सबसे अधिक है. इससे निपटने के लिए हमने पूरे राज्य में ताड़ के पेड़ लगाने की शुरुआत की है क्योंकि ये पेड़ बिजली के अच्छे कंडक्टर की तरह काम करते हैं."

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, राज्य के हर वन प्रखंड की सीमा के पास ताड़ के चार पेड़ लगाए जाएंगे. इस पूरी योजना में करीब सात करोड़ रुपए का खर्च आएगा. ओडिशा में ताड़ के मौजूदा पेड़ों को काटने पर भी पाबंदी लगा दी गई है. अगर कोई व्यक्ति बिना अनुमति लिए अपने निजी ताड़ के पेड़ भी काटता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

बिजली गिरने से किसे सबसे ज्यादा नुकसान

कर्नल संजय श्रीवास्तव (रिटायर्ड) आकाशीय बिजली के विशेषज्ञ हैं. वह क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रमोशन काउंसिल (सीआरओपीसी) के अध्यक्ष भी हैं. यह काउंसिल बिजली गिरने से जुड़ी सालाना रिपोर्ट जारी करती है.

साल 2021-22 की इस रिपोर्ट के मुताबिक, आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 96 फीसदी मौतें ग्रामीण इलाकों में हुईं. जान गंवाने वालों में ज्यादातर लोग किसान, चरवाहे, मजदूर, आदिवासी और मछुआरे थे. इसमें किसानों की संख्या सबसे ज्यादा 77 फीसदी थी.

वैज्ञानिकों ने मोड़ा, गिरती आसमानी बिजली का रास्ता

इसका कारण रेखांकित करते हुए संजय श्रीवास्तव डीडब्ल्यू हिंदी से बताते हैं, "पुराने जमाने में खेत बड़े होते थे और उनके चारों ओर पेड़ लगे रहते थे. ऐसे में बिजली पेड़ों पर ही गिरती थी और पेड़ उस ऊर्जा को सोख लेते थे. इससे खेतों में काम करने वाले लोगों को कोई नुकसान नहीं होता था. बाद में धीरे-धीरे वे पेड़ काटे जाने लगे, इसका नतीजा यह हुआ कि खेतों में काम करने वाले किसान-मजदूर बिजली की चपेट में आने लगे."

इस रणनीति पर जानकारों की मिली-जुली राय

2023-24 की सालाना लाइटनिंग रिपोर्ट के मुताबिक, ओडिशा में पिछले दस सालों में बिजली की चपेट में आकर करीब 2,200 लोगों ने जान गंवाई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2019 से 2022 तक प्रदेश में बिजली गिरने के चलते 1,100 से ज्यादा लोगों की जान गई. इस सूची में ओडिशा चौथे नंबर पर है. उससे ऊपर मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश हैं.

क्या ताड़ के पेड़ इन मौतों को रोकने में कारगर भूमिका निभा सकते हैं? इस सवाल पर संजय श्रीवास्तव बताते हैं, "जिस पेड़ में जितना ज्यादा पानी होता है, वह बिजली का उतना बढ़िया कंडक्टर होता है. ताड़ के पेड़ों के अंदर काफी पानी होता है, इसलिए ये दूसरे पेड़ों की तुलना में ज्यादा अच्छे कंडक्टर माने जाते हैं. यह एक वैज्ञानिक तथ्य है. इस पर कई अध्ययन भी हैं. इसलिए अगर योजनाबद्ध तरीके से ताड़ के पेड़ लगाए जाएं, तो वे बिजली गिरने की स्थिति में करंट को सोख लेंगे. साथ ही इनसे इलाके की जलवायु भी बेहतर होगी."

हालांकि, कई जानकारों की राय इससे अलग भी है. मनोरंजन मिश्रा ओडिशा के फकीर मोहन विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में प्रोफेसर हैं. उन्होंने ओडिशा में बिजली गिरने की घटनाओं पर व्यापक शोध किया है. वह कहते हैं, "इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है कि ताड़ के पेड़ एक अच्छे कंडक्टर के तौर पर काम करते हैं. यह फैसला सिर्फ पहले के अनुभवों और पुरानी परंपराओं को ध्यान में रखकर लिया गया है. इसलिए यह पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि ताड़ के पेड़ लगाने से बिजली गिरने से होने वाली मौतें कम हो जाएंगी."

मनोरंजन मिश्रा एक अन्य पक्ष की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, "हो सकता है कि ये पेड़ आकाशीय बिजली से सुरक्षा करने में सक्षम हों, लेकिन इन्हें पूरी तरह से बड़े होने में 18 से 22 साल का समय लगेगा. तब जाकर ये आकाशीय बिजली से बचाव करने के लायक होंगे. तो क्या हम इतने सालों तक इंतजार कर सकते हैं?"

हमने ओडिशा के प्रधान वन संरक्षक और विशेष राहत आयुक्त से संपर्क कर उनका पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

किन बातों का रखना होगा ध्यान

संजय श्रीवास्तव बताते हैं, "बिजली, इलाके में मौजूद सबसे ऊंचे पेड़ पर गिरती है. अगर उस पेड़ के नीचे कोई व्यक्ति खड़ा होगा या उसके आसपास किसी का घर होगा, तो उसे भी नुकसान होगा. इसलिए यह ध्यान रखना होगा कि ये पेड़ आबादी वाले इलाकों में न लगाए जाएं. ऐसी जगह जहां लोग या जानवर खड़े होते हों, वहां भी ये पेड़ नहीं लगाए जाने चाहिए. इन पेड़ों को खेत जैसे खुले इलाकों में ही लगाना चाहिए."

मनोरंजन मिश्रा सुझाव देते हैं कि पहले यह पता करना चाहिए कि बिजली गिरने की सबसे ज्यादा घटनाएं और मौतें कहां हो रही हैं, उसी हिसाब से पेड़ लगाने चाहिए. वह आगे कहते हैं, "पुराने समय में राज्य में ताड़ के पेड़ बड़ी संख्या में हुआ करते थे. अब इनकी संख्या कम हो गई है. इसलिए 20 लाख पेड़ लगाने से पर्यावरण को फायदा ही होगा. ये पेड़ हाथियों के लिए भोजन का विकल्प भी बनेंगे."

क्यों बढ़ रही हैं बिजली गिरने की घटनाएं

बिजली गिरने की घटनाओं में देखी जा रही वृद्धि का संबंध प्रकृति और पर्यावरण में तेजी से हो रहे बदलाव और जलवायु परिवर्तन से भी है. संजय श्रीवास्तव बताते हैं, "पिछले पांच सालों में बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है. ऐसा तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है. तापमान बढ़ने की वजह से भी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं. हमने शोध में पाया है कि एक डिग्री तापमान बढ़ने से लाइटनिंग में 12 फीसदी की बढ़ोतरी होती है. इसके लिए जरूरी है कि एक दीर्घकालीन 'क्लाइमेट एक्शन प्लान' बने, जिसके तहत जलवायु को बेहतर बनाने के प्रयास किए जाएं."

तेजी से बढ़ रही है आकाशीय बिजली से मरने वालों की संख्या

मनोरंजन मिश्रा का भी कुछ ऐसा ही मानना है. वह कहते हैं, "जलवायु सकंट पहले ही शुरू हो चुका है, जिस वजह से बिजली गिरने की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है. इसलिए हमें अब आकाशीय बिजली को झेलने में सक्षम तकनीक और बुनियादी ढांचे के बारे में सोचने की जरूरत है. साथ ही, जमीनी स्तर पर जागरूकता भी फैलानी होगी. ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को इस बारे में समझाना होगा. सिर्फ सोशल मीडिया पर जागरूकता फैलाने से स्थिति नहीं सुधरेगी."


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