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लोकतंत्र में नेताओं के विरुद्ध अभियान असामान्य नहीं

कांंग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने 2019 में एक भाजपा विधायक द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि के मामले में उनकी 'सभी चोरों का मोदी उपनाम क्यों है

लोकतंत्र में नेताओं के विरुद्ध अभियान असामान्य नहीं
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- नन्तु बनर्जी

क्या इसे दंडनीय अपराध माना जा सकता है, अगर ऐसा पहले से नहीं है? संसद द्वारा राहुल गांधी को इसके सदस्य के रूप में तत्काल अयोग्य ठहराये जाने के बाद सूरत अदालत के आदेश से कांग्रेस नेता के राजनीतिक कॅरियर और उनकी पार्टी की सार्वजनिक प्रोफ़ाइल पर प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत कम है।

कांंग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने 2019 में एक भाजपा विधायक द्वारा उनके खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि के मामले में उनकी 'सभी चोरों का मोदी उपनाम क्यों है' सवाल पर दी गयी सजा को हो सकता है अनेक लोगों ने उनके द्वारा जनसभा में प्रधानमंत्री की कड़ी आलोचना करने के 'अपराध' की तुलना में अत्यधिक माना हो। हालांकि, कुछ लोग इस बात से असहमत होंगे कि टिप्पणी आपराधिक बदनीयती थी।

यह भी ध्यातव्य है कि सजा पूरी तरह से जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान में फिट बैठती है जिसके तहत एक सांसद या विधायक या एमएलसी को दो साल या उससे अधिक के कारावास की सजा सुनाने पर राज्य विधानमंडल या संसद के सदस्य के रूप में 'सजा की तारीख से अयोग्य' घोषित किये जाने का प्रावधान है। इतना ही नहीं सजा काट लेने के बाद भी और छह साल के लिए अयोग्यता बनी रहती है।

विडंबना यह है कि 2013 में राहुल गांधी ने इस प्रावधान का तहेदिल से समर्थन किया था। शायद, राहुल गांधी ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वह लिली थॉमस बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के युगांतरकारी फैसले का शिकार होंगे। वकील लिली थॉमस ने अधिवक्ता सत्य नारायण शुक्ला के साथ, 2005 में शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के एक प्रावधान को चुनौती दी गयी थी, जो सजायाफ्ता सांसदों को उनकी दोषसिद्धि के खिलाफ अपील की लंबितता के आधार पर अयोग्यता से बचाता है।

सर्वोच्च न्यायाल के प्रावधान के तहत केवल चार सांसदों को अयोग्य घोषित किया गया है। वे हैं- राज्यसभा से रशीद मसूद, लोकसभा से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, लोकसभा से जद (यू) के जगदीश शर्मा और अब लोकसभा से कांग्रेस के राहुल गांधी। चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव और जगदीश शर्मा को दोषी करार दिया गया था। नौ बार के सांसद रशीद मसूद को एमबीबीएस सीटों के लिए अयोग्य उम्मीदवारों को धोखाधड़ी से नामांकित करने के लिए भ्रष्टाचार घोटाले में दोषी ठहराया गया था। तमिलनाडु के टी.एम.सेल्वागणपति, एक राज्यसभा सांसद, जिन्हें एक शमशान घाट निर्माण घोटाले में शामिल होने के प्रावधान के तहत दोषी ठहराया गया था, ने संसद से हटाए जाने से पहले इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा, कम से कम सात राज्य विधायकों को प्रावधान के तहत बुक किया गया था। वे हत्या के प्रयास, चोरी, वित्तीय भ्रष्टाचार और ज्ञात आय से अधिक संपत्ति रखने जैसे अपराधों में शामिल थे। अपमानजनक सार्वजनिक टिप्पणी के लिए पहले कभी किसी विधायक को दोषी नहीं ठहराया गया था।

राहुल गांधी को दोषी करार देते हुए सूरत कोर्ट ने कहा- हालांकि आरोपी को सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी थी और सलाह दी थी, लेकिन उसके आचरण में किसी बदलाव का कोई सबूत नहीं है। 'आरोपी एक सांसद है जो एक सांसद के रूप में लोगों को संबोधित करता है और समाज के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करता है, इसलिए इस अपराध का प्रभाव इस मामले में कहीं अधिक व्यापक है।' न्यायिक दंडाधिकारी ने आगे कहा- 'यदि अभियुक्त को कम सजा दी जाती है, तो इससे जनता में गलत संदेश जायेगा और मानहानि (कानून) का उद्देश्य पूरा नहीं होगा और बदनामी आसान हो जायेगी।' राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 499 तथा 500 के तहत दोषी ठहराया गया और दो साल की जेल की सजा सुनाई गई।

राहुल गांधी ऐसे पहले सांसद हैं जिन्हें मौखिक रूप से बदनाम करने के प्रावधान के तहत दोषी ठहराया गया है और ऐसी सजा दी गयी है जो उन्हें सांसद के रूप में बने रहने के लिए स्वत: ही अयोग्य बना देती है। यह कठोर नहीं तो असामान्य लग सकता है। लोकतंत्र में, खासकर चुनाव प्रचार के दौरान, विपक्ष पर जुबानी हमले आम बात हैं। चुनाव के दौरान राजनीतिक नेता हमेशा अपने निकटतम विरोधियों के लिए शब्दों के उपयोग में कम ही परोपकारी रहे हैं। यह चलन दुनिया भर के लोकतंत्रों में कायम है।

अमेरिका, जो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे जीवंत लोकतंत्र है,एक राजनीतिक नेता द्वारा दूसरे के खिलाफ कटु आलोचना के उपयोग में भी शायद सबसे खराब है। उनमें से लगभग सभी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ अपने गुस्से और मजबूत भावनाओं को व्यक्त करने के लिए कठोर या निंदनीय शब्दों के इस्तेमाल करके भी बच जाते हैं। असल में आम जनता ऐसे भावों का लुत्फ उठाती है जो उनके हाईप्रोफाइल नेताओं को उनकी मनोदशा के स्तर के करीब लाते नजर आते हैं। चुनाव अभियान अक्सर एक राजनीतिक नेता और उसकी पार्टी के वास्तविक व्यक्तिगत चरित्र को उजागर करते हैं।

अमेरिका में, विपक्षी नेताओं का सार्वजनिक अपमान और राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भद्दी बयानबाजी 18वीं सदी से आम बात रही है। समय के साथ, अभियान संबंधी बयानबाजी बदतर होती गई है। अलेक्जेंडर हैमिल्टन, जिनकी छवि $ 10 के करंसी नोट की है, को जॉन एडम्स द्वारा 'बास्टर्ड ब्रैट ऑफ़ ए स्कॉच पेडलर' कहा गया था। एडम्स को भी हैमिल्टन से नफरत थी। द न्यू यॉर्क ट्रिब्यून अखबार के मालिक होरेस ग्रीले ने यूलिसिस एस. ग्रांट को 'ए ड्रंकन ट्राउजर मेकर' और 'उनकी काठी की तरह बुद्धिहीन' कहा। लुईस कैस, जो 1848 में राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के रूप में असफल रहे (वे ज़ाचरी टेलर से हार गये), को इतने अधिक अपशब्द नहीं मिले कि उन्हें विशेष रूप से उल्लेखनीय उम्मीदवार बनाया जा सके। कैस को 'पॉट-बेलिड, मटन-हेडेड, क्यूकम्बर-सोल' के रूप में वर्णित किया गया था। केनेथ रेनर ने राष्ट्रपति फ्रैंकलिन पियर्स को 'व्हाइट हाउस का दलाल' कहा। यूके में, सर एडवर्ड हीथ को पीडोफाइल और सुश्री मार्गरेट थैचर को 'दूध छीनने वाला' कहा जाता था।

21वीं सदी में भी, कुछ राज्यों को छोड़कर, जहां अपशब्दों का प्रयोग जीवन और सामान्य अभिव्यक्ति का हिस्सा रहा है, परिवार के सदस्यों और दोस्तों से कोई शिकायत नहीं होने को छोड़कर, भारतीय समाज आम तौर पर बहुत अधिक शांत और रूढ़िवादी बना हुआ लगता है। मनपसंद गालियां खुलेआम फेंकी जाती हैं। दुर्व्यवहार मानव शरीर रचना के विभिन्न हिस्सों का विवरण देगा, करीबी रिश्तेदारों के बारे में सबसे खराब आरोप लगायेगा और प्रजनन के कार्यों को एक अपरिष्कृत तरीके से संदर्भित करेगा। यह तेजी से बदलती सामाजिक परिस्थितियों के कारण देश के अन्य हिस्सों में तेजी से एक स्वीकृत मानदंड बनता जा रहा है।

मुख्य प्रश्न यह रहता है कि क्या इस तरह के दुरुपयोग को एक स्वीकृत मानदंड होना चाहिए और क्या इसे दंडनीय अपराध माना जा सकता है, अगर ऐसा पहले से नहीं है? संसद द्वारा राहुल गांधी को इसके सदस्य के रूप में तत्काल अयोग्य ठहराये जाने के बाद सूरत अदालत के आदेश से कांग्रेस नेता के राजनीतिक कॅरियर और उनकी पार्टी की सार्वजनिक प्रोफ़ाइल पर प्रभाव पड़ने की संभावना बहुत कम है। इसके विपरीत, कार्रवाई अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले देश भर में पार्टी की सार्वजनिक स्वीकृति को फिर से जीवंत करने में मदद कर सकती है।

विरोधाभासी रूप से, राहुल गांधी ने राज्यों और संसद में विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय के 2013 के आदेश का समर्थन किया था। जब कांग्रेस की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरूध एक अध्यादेश लाया जो तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष अनुमोदन के लिए लंबित था, उस समाय राहुल गांधी ने अध्यादेश की एक प्रति को फाडऩे के लिए दिल्ली में एक प्रेस बैठक बुलायी थी।उस वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर थे।वह बहुत लज्जित हुए।हालांकि, राहुल गांधी को इसका कोई मलाल नहीं था।


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