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कलकत्ता हाईकोर्ट ने मनरेगा में धांधली के आरोप वाली जनहित याचिका पर बंगाल सरकार से हलफनामा मांगा

कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका के संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार से एक हलफनामा मांगा

कलकत्ता हाईकोर्ट ने मनरेगा में धांधली के आरोप वाली जनहित याचिका पर बंगाल सरकार से हलफनामा मांगा
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कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने सोमवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी द्वारा दायर एक जनहित याचिका के संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार से एक हलफनामा मांगा। याचिका में केंद्र प्रायोजित दो योजनाओं में धांधली का आरोप लगाया गया है। विचाराधीन दो योजनाएं हैं - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) और प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई)।

मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की खंडपीठ के समक्ष यह मामला सुनवाई के लिए आया।

अधिकारी के वकील सौम्या भट्टाचार्य ने तर्क दिया कि पश्चिम बंगाल में मनरेगा योजना के तहत धन का गंभीर रूप से गबन हुआ है।

उन्होंने तर्क दिया, "ग्रामीण विकास मंत्रालय ने सूचित किया है कि मनरेगा के तहत करोड़ों रुपये जाली दस्तावेजों को प्रस्तुत करके डायवर्ट किए गए हैं। जॉब-कार्ड धारकों की मास्टर-भूमिका में गंभीर विसंगतियां हैं।"

जनहित याचिका में एक पक्ष, केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने आरोप लगाया कि आरोप गंभीर हैं, क्योंकि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत धन का अनुचित उपयोग भारतीय संविधान का उल्लंघन है।

हालांकि, राज्य के महाधिवक्ता सौमेंद्र नाथ मुखर्जी ने आरोपों का खंडन किया और दावा किया कि यह राजनीति से प्रेरित जनहित याचिका है।

मुखर्जी ने अदालत से कहा, "गौर किया जाना चाहिए याचिकाकर्ता भाजपा नेता और विपक्ष के नेता हैं। राज्य सरकार को हलफनामे के रूप में अपना तर्क पेश करने के लिए कुछ समय चाहिए।"

खंडपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद राज्य सरकार को 20 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई से पहले हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। पीठ ने अतिरिक्त महाधिवक्ता को इस मामले में ग्रामीण विकास मंत्रालय के विस्तृत विचार प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया।

अधिकारी ने हाल ही में पश्चिम बंगाल में मनरेगा योजना के कार्यान्वयन में 'भ्रष्टाचार' की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी किसी केंद्रीय एजेंसी से कराने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा था। उन्होंने मामले में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा ऑडिट के लिए भी कहा था।


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