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भाजपा ने हरि सहनी को बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाकर एक साथ साधे कई निशाने

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विधान पार्षद हरि सहनी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाकर न केवल एक तीर से कई निशाने साधे हैं

भाजपा ने हरि सहनी को बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाकर एक साथ साधे कई निशाने
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पटना। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विधान पार्षद हरि सहनी को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष बनाकर न केवल एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इसके जरिए भाजपा ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को भी संदेश दे दिया है।

सम्राट चौधरी के बिहार भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद से ही यह तय था कि चौधरी अब नेता प्रतिपक्ष पद से हटेंगे और कोई अन्य एमएलसी इस कुर्सी पर बैठेगा।

रविवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चौधरी ने विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष के रूप में हरि सहनी के नाम की औपचारिक घोषणा कर दी।

दरअसल, जदयू के एनडीए से अलग होने के बाद भाजपा अकेले बिहार में सरकार बनाने की रणनीति पर कार्य कर रही है। इसके तहत अन्य दलों के वोट बैंक पर सेंध लगाने में जुटी है। राजद और जदयू के वोटबैंक माने जाने वाले अति पिछड़ों को भाजपा साधने में जुटी है।

इसके तहत भाजपा ने सम्राट चौधरी को अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी। वहीं, हरि सहनी को भी विधान परिषद में नेता विपक्ष की जिम्मेदारी देकर निषादों के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है।

वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी निषादों के वोटों पर अपना दावा करते रहे हैं। सहनी इन दिनों निषाद आरक्षण संकल्प यात्रा पर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के दौरे पर हैं।

भाजपा ने उनकी ही बात को सही साबित करने के अंदाज में मल्लाह जाति के हरि सहनी को विधान परिषद् के नेता प्रतिपक्ष की अहम जिम्मेदारी देकर वीआईपी की मनमानी पर एक तरह से अंकुश लगाने की कोशिश की है।

एक अनुमान के मुताबिक बिहार में अति पिछड़ा वोट 26 फीसदी के करीब है, जिसमें से केवल मल्लाह और निषाद ही 14 फीसदी हैं, जबकि 12 प्रतिशत में लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां शामिल हैं। ऐसे में मुकेश सहनी के तोड़ के रूप में हरि सहनी को भाजपा ने बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाया है।

इस तरह भाजपा हरि सहनी को आगे बढ़ाकर एक तो नीतीश कुमार के अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी और ऊपर से मुकेश सहनी के इस वोट बैंक पर दबदबे को समाप्त करना चाहती है।

ऐसी स्थिति में अगर वीआईपी एनडीए के साथ आती है तो मुकेश सहनी की मनमानी पर अंकुश लगाया जा सकता है और अगर मुकेश सहनी को पार्टी महागठबंधन के साथ जाती है तब भी इस वोट पर उसके दबदबे को तोड़ा जा सकता है।


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