उपचुनावों के नतीजे भाजपा के लिए खराब संकेत
उप चुनावों के नतीजों से इंडिया गठबंधन को मिली नई ऊर्जा व ताकत

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जयशंकर गुप्त
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के घोसी सहित देश के छह राज्यों में विधानसभा की सात सीटों के लिए उपचुनावों के नतीजे भाजपा और इसके नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अगले कुछ दिनों बाद होने वाले पांच राज्य विधानसभाओं और उसके कुछ महीनों बाद होनेवाले लोकसभा चुनावों के लिए खतरनाक संकेत कहे जा सकते है। सात सीटों में इसके पाले में केवल तीन सीटें ही आ सकीं। इसमें से उत्तराखंड के बागेश्वर में इसके उम्मीदवार की जीत महज दो हजार कुछ सौ मतों से हुई जबकि त्रिपुरा में दोनों सीटें (बाक्सानगर और धननगर) इसके उम्मीदवार मतदान में धांधली के विपक्ष के गंभीर आरोपों के बीच ही जीत सके। विपक्ष यानी माकपा के लोगों ने इस कथित धांधली के विरोध में मतगणना का बहिष्कार भी किया। इन दोनों राज्यों में लोकसभा की कुल जमा सात सीटें हैं।
इन उपचुनावों के नतीजों ने हिमाचल प्रदेश और कर्णाटक विधानसभा के चुनावों में बड़ी जीत से उत्साहित कांग्रेस और विपक्ष के इंडिया गठबंधन को नई ऊर्जा और ताकत दी है। इसके चार उम्मीदवार चुनाव जीत गए। बश्चिम बंगाल के धुपगुड़ी में तो तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा से सीट छीनी है। वहां भाजपा के उम्मीदवार के निधन के कारण उपचुनाव हुआ था। झारखंड के डुमरी में झामुमो और केरल में कांग्रेस के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। केरल के पुथुप्पली में भाजपा के उम्मीदवार की जमानत भी नहीं बच सकी। वहां मुकाबला कांग्रेस और वाम मोर्चा के बीच था।
लेकिन भाजपा और राजग की सबसे बड़ी और करारी हार तो उत्तर प्रदेश के घोसी में हुई जहां सपा के निवर्तमान विधायक दारा सिंह चौहान के भाजपा में शामिल हो जाने और इसलिए विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने के कारण उपचुनाव हुआ। घोसी विधानसभा का उपचुनाव एनडीए बनाम इंडिया भी बन गया था। लोगों की निगाहें घोसी पर लगी थीं। दारा सिंह पेशेवर दलबदलू हैं। कांग्रेस, बसपा, सपा, कांग्रेस, बसपा से भाजपा में होकर सपा में आए दारा सिंह ने पिछला चुनाव सपा के टिकट पर जीती था लेकिन प्रदेश में सपा की सरकार नहीं बनने से निराश दारा सिंह चौहान ने मंत्री बनने के सपने के साथ भाजपा में वापसी की और भाजपा ने भी अति पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पैठ मजबूत करने की गरज से उन्हें उपचुनाव में उम्मीदवार बना दिया। उनके साथ पिछली बार सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़नेवाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पलटीमार ओमप्रकाश राजभर भी हो लिए।
सपा के समर्थन से विधायक बने राजभर के मन में भी मंत्री नहीं बन पाने की कसक हिलोर मार रही थी। भाजपा के लोगों ने दारा सिंह की जीत के बाद ही दोनों को मंत्री बनाने आश्वासन दिया। यह भी कारण था कि पूरे दल बल और धन के साथ दारा सिंह और राजभर घोसी में डेरा डाले रहे। यही नहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, दोनों उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक, राज्य सरकार के दो दर्जन मंत्री, इतने ही सांसद, चार पांच दर्जन विधायक, अपना दल की नेता, केंद्र सरकार में राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल भी वहां डेरा डाले रही। पूरा घोसी विधानसभा क्षेत्र पुलिस-सुरक्षाबलों की छवनी बन गया। रामपुर की तरह यहां भी खासतौर से यादव और मुसलिम मतदाताओं को डरा-धमकाकर मतदान करने से परहेज करने के संदेश दिए गए। सपा कार्यकर्ताओं को रेड कार्ड जारी किया गया। कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया गया। लेकिन मतदान कम होने के बावजूद घोसी के मतदाताओं ने अहंकार, निकम्मेपन और पलटीमार राजनीति के खिलाफ मतदान किया।
समाजवादी पार्टी ने दलबदलू दारा सिंह के मुकाबले अपने पूर्व विधायक और तपे तपाए नेता सुधाकर सिंह को खड़ा किया। कांग्रेस, रालोद तथा कम्युनिस्ट दलों ने सपा को खुला समर्थन दिया। बसपा ने अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया और अपने समर्थकों से नोटा का बटन दबाने को कहा। इसका भरपूर लाभ सपा उम्मीदवार को मिला। स्थानीय होने और अडिग रहने के कारण सपा के लोगों के साथ ही उन्हें भाजपा के खांटी कार्यकर्ताओं और बसपा के जनाधार का समर्थन भी मिला। बसपा से किसी मुसलमान के और कांग्रेस से किसी यादव के मैदान में नहीं होने कारण पिछड़ी जातियों और दलित समाज के लोग भी बड़े पैमाने पर सपा के साथ लामबंद हुए। सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर के बार बार पाला बदलने की राजनीति के कारण उनके राजभर समाज और उनकी पार्टी में भी उनके विरुद्ध असंतोष बढ़ा और बगावत शुरू हो गई। लोगों ने उन्हें सबक सिखाने का मन बना लिया।
इस बार समाजवादी पार्टी ने भी पूरी ताकत के साथ यह उपचुनाव लड़ा। अखिलेश यादव को समझ में आ गया कि घोसी के पिछले उपचुनाव और फिर आजमगढ़ के संसदीय उपचुनाव में पार्टी के चुनाव अभियान में शामिल नहीं होकर उन्होंने भारी राजनीतिक भूल की थी। वह इस सदलबल घोसी आए। उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव मतदान के एक दिन पहले तक घोसी और आसपास डंटे रहे। पार्टी के तमाम नेता, विधायक भी घोसी में डंटे रहे। इसका पूरा लाभ सपा उम्मीदवार को मिला।
जाहिर सी बात है कि इन सात विधानसभा सीटों और खासतौर से घोसी के उपचुनावी नतीजे भाजपा-एनडीए और इसके रणनीतिकारों के लिए भी परेशानी का सबब बन सकते हैं। खासतौर से तब जबकि दो-तीन महीने बाद ही राजस्थान, छत्तीसगढ़, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी मन ही मन मुस्करा रहे होंगे। घोसी के उपचुनाव के नतीजे से पूर्वांचल में उनके लिए तीन सिर दर्द निपट जाएंगे।


