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अडानी के खिलाफ अभियान को भारत पर हमला बताकर भाजपा ने किया खुद को बेनकाब

यह कहकर कि अडानी समूह के खिलाफ कथित हिंडनबर्ग हमला भारत के खिलाफ हमला है

अडानी के खिलाफ अभियान को भारत पर हमला बताकर भाजपा ने किया खुद को बेनकाब
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- के. रवींद्रन

आने वाले दिनों में सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और अदानी समूह पर ध्यान केंद्रित होने की संभावना है। अधिक पारदर्शिता के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट द्वारा जारी की गयी चुनौती इस बहस के अगले चरण को अच्छी तरह से आकार दे सकती है। बुच, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की प्रतिक्रिया इस विवाद की दिशा और भारतीय राजनीति और शासन के लिए इसके निहितार्थों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होगी।

यह कहकर कि अडानी समूह के खिलाफ कथित हिंडनबर्ग हमला भारत के खिलाफ हमला है, केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने अनजाने में ही सही, मोदी सरकार पर समूह के प्रभाव को प्रकारान्तर से स्वीकार कर ही लिया। यह दावा न केवल अडानी के प्रभाव को रेखांकित करता है, बल्कि राहुल गांधी की लगातार आलोचना को भी सही साबित करता है कि मोदी प्रशासन आम भारतीयों के कल्याण से ज्यादा अडानी और अंबानी जैसे कॉरपोरेट दिग्गजों के हितों को प्राथमिकता देता है।

भाजपा ने आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताकर रिपोर्ट के निहितार्थों को कमतर आंकने की कोशिश की है। यह कथन पार्टी के उस सामान्य दृष्टिकोण के अनुरूप है जिसमें आलोचनात्मक रिपोर्टों और आरोपों को सरकार की वैधता को कमज़ोर करने के प्रयासों के रूप में खारिज किया जाता है। यह सुझाव देकर कि रिपोर्ट का समय और विषय-वस्तु विपक्षी दलों के लिए चुनावी या राजनीतिक अवसरों के साथ मेल खाने के लिए डिज़ाइन की गयी है, भाजपा जांच को भटकाना और अपनी राजनीतिक गति बनाये रखना चाहती है


भाजपा ने अडानी समूह का बचाव करने और समूह के हितों को अपने हितों से जोड़ने के जोखिम को भी नज़रअंदाज़ कर दिया है, क्योंकि यह मोदी सरकार द्वारा अडानी कंपनियों को बचाने के लिए किये गये प्रयासों की स्वीकृति है। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने अपने विशिष्ट अहंकारी अंदाज़ में यह दावा करके हिंडनबर्ग रिपोर्ट को बदनाम करने की कोशिश की है कि संगठन का मुख्य निवेशक हंगरी-अमेरिकी व्यवसायी, निवेशक और परोपकारी जॉर्ज सोरोस हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी का आलोचक माना जाता है।

भाजपा राहुल गांधी पर सोरोस के साथ संदिग्ध संबंधों का आरोप लगा रही है, जिन्होंने 90 के दशक में ब्रिटिश पाउंड के खिलाफ़ दांव लगाया था, जिससे मुद्रा की कमर टूट गयी थी। प्रसाद ने अडानी समूह और सेबी प्रमुख के खिलाफ रिपोर्ट के निष्कर्षों की आलोचना करते हुए इसे शेयर बाजार में हेरफेर करके भारत को अस्थिर करने का प्रयास बताया।

कांग्रेस हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच के खिलाफ लगाये गये आरोपों की संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने और उनके तत्काल इस्तीफे की मांग कर रही है। पार्टी ने माधबी पुरी बुच को बर्खास्त करने की मांग करते हुए देशव्यापी आंदोलन की योजना बनाकर विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया को तेज कर दिया है। इस कदम को जनता की भावनाओं को भड़काने और मोदी सरकार पर दबाव बनाने के रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। आंदोलन का उद्देश्य कांग्रेस द्वारा नियामक कब्जे और कॉर्पोरेट हितों की रक्षा में सरकार की मिलीभगत के व्यापक मुद्दे को उजागर करना है।

सेबी के नेतृत्व और इसकी विफलताओं पर टकराव मोदी सरकार और अडानी जैसी कॉर्पोरेट संस्थाओं के बीच संदिग्ध संबंधों का प्रतीक है। राहुल गांधी लंबे समय से तर्क देते रहे हैं कि मोदी सरकार कॉर्पोरेट सत्ता के साथ बहुत अधिक घनिष्ठ है, जो औसत भारतीय के लिए नुकसानदेह है। उनके अनुसार, सरकार की नीतियां और प्राथमिकताएं व्यापक जनता की ज़रूरतों और आकांक्षाओं को संबोधित करने के बजाय शीर्ष पर कुछ चुनिंदा लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए उनकी ओर झुकी हैं। उनका बार-बार दोहराया जाने वाला आरोप कि एक प्रतिशत भारतीय देश की 40 प्रतिशत संपत्ति संभालते हैं, उनकी सार्वजनिक बैठकों का एक मुहावरा बन गया है।

हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट, जिसने सबसे पहले अडानी समूह को गहन जांच के दायरे में लाया, ने भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन और नियामक निगरानी के बारे में चर्चाओं को फिर से हवा दे दी है। हिंडनबर्ग ने सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच को भारत और विदेश दोनों में अपने निवेश के विवरण का खुलासा करने की चुनौती दी है। यह चुनौती पारदर्शिता और भारत के नियामक संस्थानों के भीतर संभावित हितों के टकराव के बारे में व्यापक चिंताओं को रेखांकित करती है। रिपोर्ट में अडानी समूह की वित्तीय प्रथाओं की निगरानी में सेबी की भूमिका की ईमानदारी पर सवाल उठाया गया है। यह जांच ऐसे परिदृश्य में महत्वपूर्ण है जहां कॉर्पोरेट हितों और सरकारी प्रभाव के बीच की रेखा अक्सर धुंधली हो जाती है, जिससे नियामक निकायों की प्रभावकारिता और निष्पक्षता के बारे में चिंताएं बढ़ जाती हैं।

जहां तक भाजपा का सवाल है, हिंडनबर्ग की ताजा रिपोर्ट के निष्कर्ष राहुल गांधी द्वारी मोदी सरकार की आलोचना को सही साबित करते हैं। शायद यही कारण है कि अमेरिकी शॉर्ट सेलर द्वारा लगाये गये आरोपों के निहितार्थों को लेकर भाजपा खेमे में निराशा है। राहुल गांधी के लिए, अडानी विवाद मोदी सरकार की और स्वयं मोदी की आलोचना और व्यापक सामाजिक जरूरतों की उपेक्षा करते हुए मुठ्ठी भर व्यापारिक दिग्गजों के हितों के साथ सरकारी नीतियों के व्यवस्थित संरेखण का एक आवर्ती विषय रहा है। इस स्थिति के राजनीतिक परिणाम बहुत गहरे हैं।

एक ओर, सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा अडानी का बचाव और दूसरी ओर जांच की विपक्ष की मांग को खारिज करना कॉर्पोरेट सहयोगियों का समर्थन करने की उनकी प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। भाजपा के इस रुख से आम मतदाताओं के और अलग-थलग पड़ने का भी खतरा है, जिन्हें लग सकता है कि कॉर्पोरेट हितों के पक्ष में उनकी चिंताओं को दरकिनार किया जा रहा है। इस प्रकार सेबी के नेतृत्व और कॉर्पोरेट प्रभाव के व्यापक मुद्दे पर बहस एक बड़े राजनीतिक कथानक, जिसमें शासन, निष्पक्षता और प्रतिनिधित्व की चर्चा की जाती है, का सूक्ष्म रूप बन जाती है। लोकसभा चुनावों में प्रतिकूल चुनावी नतीजों के साथ, यह सत्तारूढ़ दल के लिए चिंता का एक गंभीर कारण है।

आने वाले दिनों में सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और अदानी समूह पर ध्यान केंद्रित होने की संभावना है। अधिक पारदर्शिता के लिए हिंडनबर्ग रिपोर्ट द्वारा जारी की गयी चुनौती इस बहस के अगले चरण को अच्छी तरह से आकार दे सकती है। बुच, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की प्रतिक्रिया इस विवाद की दिशा और भारतीय राजनीति और शासन के लिए इसके निहितार्थों को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होगी।


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