ईरान पर हमला करके ट्रंप पूरी दुनिया को धमका रहे हैं
अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला करके परमाणु रिसाव और परमाणु युद्ध के खतरों को बढ़ावा दे दिया

- शकील अख्तर
अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला करके परमाणु रिसाव और परमाणु युद्ध के खतरों को बढ़ावा दे दिया। ईरान ने अमेरिका के हमले के बाद अपने पलटवार और तेज कर दिए हैं। इजराइल पर मिसाइल हमले तो तेज किए ही अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर भी हमला करने की घोषणा की है। ईरान पिछले दस दिन में अपनी ताकत से ज्यादा लड़ा।
यह दुनिया ऐसे ही चलती है। ताकतवर की दुनिया। 12 हजार किलोमीटर दूर ईरान पर हमला करके अमेरिका कहता है अब शांति होगी। अगर दुनिया खामोश रही तो वह गजा के बाद ईरान में भी मौत की शांति पैदा कर देगा।
ईरान पर पहले इजराइल ने हमला किया। और जवाब देने को जुर्रत (दुस्साहस) मानते हुए फिर अमेरिका ने। इस धमकी के साथ कि तबाह कर देगा अगर समर्पण नहीं किया तो। संयुक्त राष्ट्र ने बड़े कड़े शब्दों में विरोध किया। अमेरिकी हमले की निंदा की। मगर वह तो गजा पर इजरायली हमले की भी की थी। हमले रोकना तो दूर वहां इजराइल ने भयंकर नरसंहार किया। 50 हजार से ज्यादा तो केवल बच्चों और महिलाओं को मारा है। कुल मरने वालों की तादाद 60 हजार से ऊपर है।
संयुक्त राष्ट्र के कहने से कुछ नहीं हो रहा। जिस विश्व शांति के लिए इसका गठन हुआ था सैकंड वर्ल्ड वार के बाद वह अर्थहीन हो गया। अमेरिका और इजराइल ने दुनिया को फिर एक बड़े युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया। भारत पहले ऐसे में उपयोगी भूमिका निभाता था। मगर बेवजह खुद को विश्व गुरू, विश्व गुरू कहकर हमारे प्रधानमंत्री ने अपनी व्यक्तिगत छवि कितनी उभारी पता नहीं मगर देश की छवि वह 2014 से पहले सम्मान वाली नहीं रहने दी।
अब सबकी नजर चीन और रूस पर है। यह दोनों महाशक्तियां चाहें तो अमेरिका और इजराइल के ईरान पर हो रहे हमलों को रुकवा सकते हैं। मगर आप अगर पिछले दो सालों को देखें तो इन दोनों ने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया है। मूल मुद्दा गजा में नरसंहार रोकने का था। वहां के बच्चों और नागरिकों के दवा, दूध, खाने पर इजराइल द्वारा लगाई गई बंदियों को हटाने का था। मगर यह मानवीय मदद भी कोई नहीं कर पाया।
असली सवाल फिलिस्तीन के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व का तो बहुत पीछे चला गया। दो साल में इजराइल ने ऐसा जुल्म ढाया कि आज सबसे पहले सब यही मांग कर रहे हैं कि बच्चों को दूध दवाएं मिल सकें। अस्पतालों और नागरिकों पर हमले बंद हों। मगर यह करने के बदले इजराइल ने सीधे ईरान पर हमला करके इशु डाइवर्ट कर दिया। आज फिलिस्तीन, गजा का नरसंहार पृष्ठभूमि में चला गया। सबसे बड़ा सवाल यह आ गया कि अमेरिका के युद्ध में कूद जाने के बाद दुनिया किसी बड़े खतरे की तरफ न बढ़ जाए।
अमेरिका ने ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों पर हमला करके परमाणु रिसाव और परमाणु युद्ध के खतरों को बढ़ावा दे दिया। ईरान ने अमेरिका के हमले के बाद अपने पलटवार और तेज कर दिए हैं। इजराइल पर मिसाइल हमले तो तेज किए ही अमेरिका के सैन्य ठिकानों पर भी हमला करने की घोषणा की है।
ईरान पिछले दस दिन में अपनी ताकत से ज्यादा लड़ा। इसके पीछे इतना समर्थन इसीलिए है। इजराइल को पहली बार अपने घर में हमलों का स्वाद चखना पड़ा। वह कह रहा कि उसके नागरिकों पर हमले हुए, अस्पताल पर हुए। लेकिन वह यह भूल गया कि उसने गजा में कितने अस्पतालों पर बम गिराए। मासूम बच्चों तक की हत्या की। लेकिन उस समय उसे युद्ध के नियम याद नहीं आए। आज कह रहा है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को देखना चाहिए कि हमारे नागरिक क्षेत्रों पर कैसे हमले हो रहे हैं।
युद्ध में सेना सेना से लड़ती है। नगरिकों से नहीं। हमारी सेना ने जब पाकिस्तान की आतंकवादी हरकतों का जवाब दिया तो उसने केवल वहां के आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया। सैन्य ठिकानों को भी नहीं, नागरिक क्षेत्रों का तो सवाल ही नहीं उठता। मगर पाकिस्तान ने जवाब में पुंछ में हमारे नागरिक क्षेत्रों के साथ धार्मिक स्थानों पर भी हमला किया। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने वहां जाकर गुरुद्वारों, मंदिर, मदरसों में पाकिस्तान द्वारा की गई गोलाबारी को खुद आंखों से जाकर देखा। गोलाबारी से मारे गए लोगों के परिवारों से मिले उन्हें सांत्वना दी। प्रधानमंत्री मोदी को भी जाना चाहिए था। वे नहीं गए।
तो हमला नागरिकों पर नहीं होता है। मगर इजराइल ने पहले गजा में फिर ईरान में किया। इजरायल, पाकिस्तान दोनों का अपराध एक जैसा है। मौसेरे भाई। और अमेरिका इन दोनों का सरपरस्त। इन दोनों के पास परमाणु हथियार हैं। और दोनों ही भरोसेमंद नहीं। मगर इनसे कभी कुछ नहीं कहता। लेकिन ईरान से कहता है कि तुम परमाणु हथियार बना रहे हो इसलिए तुम पर हमला किया। दोहरे मापदंड। हर लड़ाई उसने ऐसे ही लड़ी है। कोरिया में, वियतनाम में, इराक में अफगानिस्तान में। लंबी लिस्ट है और ज्यादातर में उसने मुंह की खाई है। इस बार ईरान में भी उसके लिए स्थिति साजगार नहीं हैं।
अमेरिका ने सोचा था इजराइल के हमले से ही डर कर ईरान हथियार डाल देगा। मगर उसने इजराइल को कड़ा जवाब दिया। और अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर और मिसाइलें मार रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अमेरिका के मुकाबले ईरान के पास हथियार और दूसरे साजो सामान नहीं है। मगर हौसले से उसने जो लड़ाई लड़ी उसकी वजह से उसे भारी नैतिक समर्थन मिल रहा है।
हालांकि यह सच्चाई है कि आज की लड़ाई जमीन पर नहीं आसमान में हो रही है और वहां आधुनिक तकनीक और विज्ञान ही सब कुछ है। अभी भारत-पाक संघर्ष से पहले किसने सोचा था कि लड़ाइयां ऐसी होंगी। पैदल सेना कहीं होगी ही नहीं। मिसाइलों और ड्रोन का इस्तेमाल पहली बार इसी में देखा गया। रूस और युक्रेन के युद्ध में भी यही हो रहा था। अब इजराइल ईरान और फिर अमेरिका ईरान युद्ध ने बता दिया कि भविष्य के युद्ध इंसान की शारीरिक शक्ति से नहीं दिमागी शक्ति से ही लड़े जाएंगे।
दूसरी एक बात यह भी साफ हो गई कि कागजी संगठन वास्तविक समस्या में कोई मदद नहीं करते। 57 इस्लामिक देशों का संगठन है इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईएस)। जो घोषित तौर पर कहता है मुस्लिम देशों की आवाज। मगर न वह गजा पर इजराइल के अमानवीय अत्याचारों पर कुछ कर पाया और न ईरान पर इजराइल और फिर अमेरिका के हमले के बाद।
याद सब रूस और चीन को कर रहे हैं कि उनका रिएक्शन क्या होता है? वह किस तरह अमेरिका की दादागिरी के खिलाफ खड़े होते हैं। इस्लामिक देशो में तो पाकिस्तान ने अपने एयरबेस अमेरिका को ईरान पर हमला करने के लिए दे दिए। सउदी अरब न गजा के मामले में कुछ बोला न इजराइल के ईरान के हमले पर। बाकी भी सभी बड़े देश या तो तटस्थ हैं या अमेरिका के साथ। और अमेरिका के साथ क्या, इजराइल के ईरान पर हमले को दस दिन से ज्यादा हो गए मगर किसी मुस्लिम देश ने खुल कर ईरान का साथ नहीं दिया। उल्टे इजराइल जो मिसाइलें ईरान पर गिरा रहा है वह ईराक, सीरिया, जार्डन लेबनान की वायुसीमा से होती हुई जाती हैं। इन्होंने अपना वायुमार्ग इजराइल के लिए बंद नहीं किया।
तो ईरान का मामला अब किस दिशा में जाता है देखना होगा। रुस और चीन बड़े देश हैं। उनका कोई भी रुख हो उनके अस्तित्व पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। मगर इस्लामिक देशों के लिए एक बड़ा सबक है। देखना है वे इसे कैसे समझते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


