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मानसून की अच्छी बारिश से खरीफ फसल की बुआई पिछले साल से 3.4 प्रतिशत अधिक रही

अगस्त में धीमी शुरुआत के बाद भी भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून लंबी-अवधि के औसत (एलपीए) से 4 प्रतिशत अधिक रहा है। यह जानकारी गुरुवार को जारी हुई एक रिपोर्ट में दी गई

मानसून की अच्छी बारिश से खरीफ फसल की बुआई पिछले साल से 3.4 प्रतिशत अधिक रही
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नई दिल्ली। अगस्त में धीमी शुरुआत के बाद भी भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून लंबी-अवधि के औसत (एलपीए) से 4 प्रतिशत अधिक रहा है। यह जानकारी गुरुवार को जारी हुई एक रिपोर्ट में दी गई।

केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे खरीफ की बुवाई में सालाना आधार पर 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि खाद्यान्नों में बुवाई क्षेत्र में 6.2 प्रतिशत की तेज वृद्धि देखी गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व और उत्तर-पूर्व को छोड़कर सभी इलाकों में एलपीए से अधिक बारिश हो रही है।

उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश एलपीए से 19 प्रतिशत अधिक दर्ज की गई, इसके बाद मध्य भारत में एलपीए से 9 प्रतिशत अधिक और दक्षिणी प्रायद्वीप में एलपीए से 5 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। हालांकि,पूर्व और उत्तर-पूर्व में एलपीए से 17 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में बताया गया कि मेघालय में 43 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 39 प्रतिशत, असम में 34 प्रतिशत और बिहार में 26 प्रतिशत कम बारिश हुई।

कुल मिलाकर, 36 उप-विभागों में से देश के 60 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करने वाले 24 उप-विभागों में जून से सामान्य बारिश हुई है।

अनाज की बुवाई का रकबा 7.2 प्रतिशत और दलहन की बुवाई का रकबा 1.2 प्रतिशत बढ़ा। अन्य फसलों में, गन्ने की बुवाई में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि तिलहन और रेशों की बुवाई में क्रमशः 2.8 प्रतिशत और 2.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तिलहन की बुवाई में कमजोर प्रदर्शन चिंताजनक बना हुआ है, क्योंकि इस श्रेणी में मुद्रास्फीति बढ़ी हुई है।

जलाशयों के भंडारण में मजबूत सुधार हुआ है और अखिल भारतीय स्तर पर यह क्षमता के 78 प्रतिशत पर है, जबकि पिछले वर्ष यह 72 प्रतिशत था, जिससे सिंचाई प्रयासों को मदद मिली है। आईएमडी ने दक्षिण-पश्चिम मानसून के दूसरे भाग के दौरान सामान्य से अधिक वर्षा की भविष्यवाणी की है, जिससे कृषि उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।

हालांकि, रेटिंग एजेंसी ने कहा कि देश के कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा के कारण कृषि उत्पादन को होने वाले जोखिम पर आगे भी नजर रखी जा सकती है।


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