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बुंदेलखंड : अवैध रेत खनन के मामले में 'थानेदार' हैं 'लठैत'!

उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा में रेत (बालू) के अवैध खनन की रोक की बात अब बेमतलब जैसी हो गई है

बुंदेलखंड : अवैध रेत खनन के मामले में थानेदार हैं लठैत!
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बांदा। उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के बांदा में रेत (बालू) के अवैध खनन की रोक की बात अब बेमतलब जैसी हो गई है लेकिन जो बात उभर कर आ रही है कि यहां के माफियाओं के लिए गांवों के 'लठैत' सबसे बड़े 'थानेदार' बन चुके हैं।

यह बात थोड़ी अटपटी जरूर लग रही होगी, लेकिन यह सच है। वैध या अवैध रेत खनन में खनन माफियाओं पर पुलिस से ज्यादा गांवों के 'लठैत' भारी पड़ रहे हैं। किसी माफिया की मजाल क्या, जो बिना 'टैक्स' दिए एक भी बालू भरा वाहन निकाल ले जाए या किसानों के खेतों के सामने नदियों की बालू का खनन कर सके।

खनिज विभाग के अधिकारी राजेश कुमार की मानें तो जिले में बालू की कुल 39 वैध खदान हैं, लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ चार पर खनन हो रहा है। इसी परिप्रेक्ष्य में धरातल में नजर दौड़ाएं तो केन, बागै, रंज और यमुना नदी में 70 से अधिक स्थानों में बालू का खनन किया जा रहा है। करीब 66 अवैध खदानों में कुछ जनप्रतिनिधियों और पुलिस की संलिप्तता का भी आरोप लग रहा है।

गौर-शिवपुर गांव के पास केन नदी में रनगढ़ किले के अगल-बगल कोई वैध खदान नहीं है। पिछले साल से रिसौरा खदान का मामला उच्च न्यायालय में लंबित है, फिर भी दिन-रात ट्रैक्टरों से खनन किया जा रहा और बालू लदे वाहनों का परिवहन भी नरैनी-बांदा मुख्य सड़क से ही हो रहा है।

इस अवैध खदान में मजदूरी करने वाले कल्लू निषाद ने जो बात बताई, उससे तो यही लगता है कि यहां सबसे बड़े 'थानेदार' गांवों के 'लठैत' हैं। उसने बताया कि जिस किसान के खेत के सामने नदी में बालू पड़ी होती है, उसे ट्रैक्टर-ट्रॉली वाले रातभर के पांच सौ रुपये और यदि किसान के खेत से वाहन निकालने के लिए रास्ता बनाया गया है तो उसे हर ट्रैक्टर-ट्रॉली वाला तीन सौ रातभर का देता है।

उसने बताया, "पुलिस के पास एक पखवाड़े का पन्द्रह हजार रुपये 'इंट्री' के नाम पर जमा किया जाता है। यानी एक रात की 'इंट्री' एक हजार रुपये की होगी। इसके बदले पुलिस सड़क में धरपकड़ नहीं करेगी और बड़े अधिकारी के अचानक आने पर 'मिस्ड कॉल' से 'लोकेशन' देगी।"

उसने बताया, "पुलिस की मिस्ड कॉल बड़े अधिकारी के आने का कोड वर्ड है।"

पूरा जोड़-घटाव कर कल्लू बताता है कि सबका खर्चा निकालने के बाद एक ट्रैक्टर मालिक को एक रात में कम से कम पांच से छह हजार रुपये की बचत होती है।

एक सवाल के जवाब में कल्लू ने बताया, "खनन कारोबार से जुड़े लोग ज्यादातर किसानों के खेत की बालू उठाने का एग्रीमेंट (सहमति पत्र) निबंधन कार्यालय से पंजीकृत करवाए हुए हैं और जिस किसान ने बालू या रास्ते का एग्रीमेंट नहीं करवाया, वह दस-पन्द्रह लोगों की टोली में रातभर साथ लाठी लेकर अपनी खेत में मौजूद रहते हैं और अपनी रकम नकद ले लेते हैं।"

नरैनी क्षेत्र के मऊ गांव के युवक राजकुमार ने बताया, "इस गांव के साधूराम, बूढ़ी आदि पांच-छह किसानों के खेत के टीलों की बालू का एक विधायक ने अपने भतीजे के नाम रजिस्टर्ड एग्रीमेंट करवाकर करीब बीस दिन खनन करवाया है। जब विधायक ने किसानों को तय रकम नहीं दी तो जबरन खनन कार्य बंद करवा दिया गया है। अब विधायक बालू तभी ले जाएंगे, जब एग्रीमेंट के समय तय हुए एक लाख रुपये देंगे।"

नदियों और किसानों के खेतों में हो रहे रेत खनन के बारे में जब उपजिलाधिकारी (एसडीएम) वन्दिता श्रीवास्तव से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कहीं भी अवैध खनन नहीं हो रहा है। कुछ दिन पूर्व मऊ और रिसौरा गांव में अवैध खनन की शिकायत मिली थी, तब उस समय खनिज विभाग के अधिकारियों के साथ छापेमारी कर पांच-छह ट्रैक्टर-ट्रॉली जब्त किए हैं। आगे और भी ऐसी कार्रवाई होती रहेगी।'


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