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ब्रिक्स प्लस यानी ब्रिक्स का बढ़ता वैश्विक दबदबा

दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में दुनिया की दूसरी और पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था के बीच संभावनाओं के नए दरवाजे खुलते दिख रहे हैं

ब्रिक्स प्लस यानी ब्रिक्स का बढ़ता वैश्विक दबदबा
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बीजिंग। दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में दुनिया की दूसरी और पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था के बीच संभावनाओं के नए दरवाजे खुलते दिख रहे हैं।

इस सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह हाथ मिलाया है, उससे साफ है कि हाल की कुछ घटनाओं के बावजूद दोनों देश एक-दूसरे के साथ आने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।

ब्रिक्स में असोसिएट सदस्यों के तौर पर कई अन्य देशों को जोड़ने के मसले पर चीन और भारत की सहमति से भी जाहिर है कि कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर दोनों देशों की राय एक ही है।

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा के अनुसार आगामी एक जनवरी 2024 से ब्रिक्स के सदस्य देशों के रूप में मिस्र, इथियोपिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और अर्जेटीना यानि कुल छह देश ब्रिक्‍स के नए स्‍थायी सदस्‍य देश बनने जा रहे हैं।

माना जा रहा है कि ब्रिक्‍स में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए इन देशों को शामिल किया गया है। साफ है कि इथियोपिया और मिस्र जहां अफ्रीकी महाद्वीप के देश हैं, वहीं अर्जेटीना लैटिन अमेरिका का देश है। जबकि, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब एशिया के देश हैं।

जाहिर है कि इन देशों के शामिल होने के बाद ब्रिक्स देशों की अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा। इसके साथ ही अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों में ब्रिक्स की ताकत बढ़ेगी।

चीन के राष्ट्रपति के शी चिनफिंग के इस संदर्भ में दिए वक्तव्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जिसमें उन्होंने कहा, ‘हमें वैश्विक शासन को और अधिक न्यायसंगत और समतापूर्ण बनाने के लिए ब्रिक्स परिवार में और भी देशों को शामिल कर समूह का विस्तार करने की प्रक्रिया तेज करने की जरूरत है।’

इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने भाषण में ब्रिक्‍स के विस्‍तार का समर्थन कर चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने बुधवार को कहा कि ब्रिक्स के विस्तार का भारत पूरा समर्थन करता है और आम सहमति से इस दिशा में आगे बढ़ने का स्वागत करता है।

ब्रिक्स में इन छह देशों को औपचारिक रूप से शामिल किए जाने के बाद ब्रिक्स को नया नाम भी दिया जा रहा है। यह नाम होगा ब्रिक्स प्लस।

वैसे दिलचस्प यह है कि ब्रिक्स में शामिल होने के लिए जहां 40 देशों ने इच्छा जाहिर की है, वहीं 23 देशों ने तो बाकायदा आवेदन तक किया है। इससे जाहिर है कि पश्चिमी देशों के मुकाबले कभी तीसरी दुनिया के देश रहे मुल्कों के इस मंच को ना सिर्फ वैश्विक स्वीकृति मिल रही है, बल्कि उसकी साख भी बढ़ रही है।

इससे साफ है कि ब्रिक्स आने वाले दिनों में दुनिया के बड़े आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समूह के रूप में उभरेगा।

ब्रिक्स की यह स्वीकार्यता ही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 मिशन की कामयाबी को सिर्फ भारत नहीं, बल्कि मानवता की सफलता बताया। ब्रिक्स के मंच से उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 से मिले आंकड़ों और उस पर होने वाले शोध से भारत ही नहीं, पूरी मानवता का भला होगा।

जाहिर है कि ब्रिक्स को और स्वीकार्य बनाने की दिशा में उनके इस बयान को देखा जा सकता है।


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