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बॉम्बे हाईकोर्ट ने विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा पर लगी रोक हटाई

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा 'एन इनकंप्लीट लाइफ' के वितरण पर लगी रोक को हटाते हुए कहा कि इस फैसले अदालत की एकल पीठ ने गलती से पारित कर दिया था

बॉम्बे हाईकोर्ट ने विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा पर लगी रोक हटाई
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नई दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को विजयपत सिंघानिया की आत्मकथा 'एन इनकंप्लीट लाइफ' के वितरण पर लगी रोक को हटाते हुए कहा कि इस फैसले अदालत की एकल पीठ ने गलती से पारित कर दिया था। प्रकाशक, पैन मैकमिलन इंडिया ने कहा है कि वह तुरंत किताब को फिर से बेचना शुरू कर देगा। हालांकि, यह मामले का अंत नहीं हो सकता है, क्योंकि याचिकाकर्ता, रेमंड लिमिटेड को एक नए निषेधाज्ञा के लिए एकल न्यायाधीश से फिर से संपर्क करने की अनुमति दी गई है।

न्यायमूर्ति अभय आहूजा और न्यायमूर्ति एस. जे. कथावाला ने फैसला सुनाया कि पुस्तक के खिलाफ 4 नवंबर का निषेधाज्ञा आदेश गलत धारणा के तहत पारित किया गया था।

एकल न्यायमूर्ति के आदेश को किताब के प्रकाशक पैन मैक मिलन पब्लिशर प्राइवेट लिमिटेड ने अवकाशकालीन न्यायमूर्ति काथावाला व आहूजा की खंडपीठ के सामने चुनौती दी थी, जिस पर बुधवार को प्रकाशक की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि चार नवंबर को रेमंड कंपनी की ओर से कोर्ट में जो याचिका दायर की गई थी उसे उसमें पक्षकार नहीं बनाया गया था। इस लिहाज से एकल न्यायमूर्ति की ओर से दिया गया आदेश त्रुटिपूर्ण है।

वहीं रेमंड के वकील ने एकल न्यायमूर्ति के आदेश को न्यायसंगत बताया और कहा कि किताब के प्रकाशक की ओर से 4 नवंबर को वकील ने पैरवी की थी। हालांकि खंडपीठ ने सुनवाई के बाद एकल न्यायमूर्ति के आदेश को त्रुटिपूर्ण माना।

खंडपीठ ने कहा कि एकल न्यायमूर्ति ने यह मानकर आदेश दिया था कि निचली अदालत ने किताब के प्रकाशक के खिलाफ भी आदेश जारी किया है। इसलिए एकल न्यायमूर्ति के आदेश को खारिज किया जाता है।


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