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फ्लॉप होतीं फिल्मेंः क्या बॉलीवुड का वक्त पूरा हो चुका है?

इस साल 26 हिंदी फिल्में रिलीज हुई हैं जिनमें से 20 फ्लॉप हुई हैं. क्या अब लोग हिंदी फिल्मों से ऊब चुके हैं?

फ्लॉप होतीं फिल्मेंः क्या बॉलीवुड का वक्त पूरा हो चुका है?
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"फिल्में नहीं चल रही हैं. यह हमारी गलती है. मेरी गलती है.” यह बात अक्षय कुमार ने पिछले महीने मीडिया से बात करते हुए तब कही थी जब उनकी फिल्म ‘रक्षा बंधन' फ्लॉप हो गई थी. उन्होंने कहा कि बॉलीवुड को बदलने की जरूरत है.

अक्षय कुमार ने कहा, "मुझे बदलने की जरूरत है. मुझे समझना होगा कि दर्शक क्या चाहते हैं. मुझे वो पूरी सोच बदलनी होगी जिसके आधार पर मैं चुनता हूं कि मुझे कैसी फिल्में करनी चाहिए.”

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अक्षय कुमार की यह कथनी लगभग सभी हिंदी फिल्मकारों पर लागू होती है. भारत की संस्कृति का आधार रहा बॉलीवुड अपनी चमक खो रहा है. उसके सितारे बुझ रहे हैं. कोविड महामारी के दौरान नेटफ्लिक्स और एमेजॉन प्राइम जैसी स्ट्रीमिंग सेवाओं ने बेशक इस चमक पर पर्दा गिराने का काम किया है लेकिन यह भी दिखने लगा है कि युवा पीढ़ी बॉलीवुड से थक रही है.

फिल्मों के आंकड़ों पर नजर रखने वाली वेबसाइट कोईमोई के मुताबिक इस साल अब तक 26 हिंदी फिल्में रिलीज हुई हैं जिनमें से 20 यानी लगभग 77 प्रतिशत विफल रही हैं. विफलता से यहां अर्थ यह है कि वे अपनी लागत का आधा या उससे ज्यादा पैसा कमाने में नाकाम रहीं. 2019 में विफलता की यह दर 39 प्रतिशत थी.

यानी, 2019 में जबकि कोविड महामारी नहीं आई थी, ज्यादा लोग सिनेमा गए और उन्होंने फिल्म देखने पर पैसा खर्चा. यही भारत में सिनेमा की परिपाटी रही है. टीवी की मौजूदगी के बावजूद लोग नई फिल्में देखने के लिए सिनेमा जाने को तरजीह देते रहे हैं. लेकिन महामारी की मार जब सिनेमाघरों पर पड़ी और लॉकडाउन में वे महीनों तक बंद रहे, तो लोगों ने नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम, सोनी टीवी और ऐसे ही कई स्ट्रीम वेबसाइटों का रुख किया.

अब विदेशी शो देखे जा रहे हैं

दो किशोरियों की मां 40 वर्षीय क्रिस्टीना सुंदरसन मुंबई में रहती हैं. वह कहती हैं कि महामारी से पहले वे लोग हफ्ते में से कम एक बार तो सिनेमा जाते ही थे, लेकिन अब शायद ही कभी ऐसा होता हो. इसकी वजह उन्हें फिल्मों का स्तर लगता है. वह कहती हैं, "मतलब, जब आप हंसना चाहें तो वे ठीक हैं लेकिन उनके लिए थिएटर तो मैं नहीं जाऊंगी.”

सुंदरसन इस बात की ओर भी इशारा करती हैं कि युवा पीढ़ी की उन फिल्मों में दिलचस्पी कम है. वह कहती हैं, "वे (बेटियां) पहले हमारे साथ फिल्में देख लेती थीं लेकिन अब उनकी दिलचस्पी ही नहीं है. वे कोरियाई शो देखती हैं या दूसरी सीरीज जो स्ट्रीमिंग प्लैटफॉर्म्स पर उपलब्ध हैं.”

यह बदलाव सिर्फ सुंदरसन परिवार में नहीं आया है. बहुत से युवा मनोरंजन के लिए अंतरराष्ट्रीय शो देख रहे हैं जो स्ट्रीमिंग वेबसाइटों पर उपलब्ध हैं. नेटफ्लिक्स और प्राइम की भारत में शुरुआत 2016 में हुई थी और उन्होंने अमेरिका, यूरोप और अन्य एशियाई देशों में बनी ऐसी सामग्री पेश की, जो भारत में उपलब्ध नहीं थी. इनमें पैरासाइट जैसी फिल्मों से लेकर गेम ऑफ थ्रोन्स व स्क्विड गेम्स जैसी सीरीज थीं जो पूरी दुनिया में तहलका मचा रही थीं.

डेटा वेबसाइट स्टैटिस्टा के मुताबिक 1.4 अरब लोगों के भारत में अब लगभग एक चौथाई लोग स्ट्रीमिंग सेवाएं इस्तेमाल कर रहे हैं. 2019 के 12 फीसदी से यह दोगुने से भी ज्यादा हो चुका है. अनुमान है कि 2027 तक यह आंकड़ा बढ़कर 31 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा. अमेरिका में जब 80 प्रतिशत लोग स्ट्रीमिंग सेवाएं प्रयोग कर रहे हैं तो भारत में भी इसके और ज्यादा बढ़ने की बड़ी गुंजाइश है.

बॉलीवुड में क्या समस्या है?

पिछला लगभग एक दशक भारत की टिकट खिड़की पर रिकॉर्ड तोड़ने का दशक रहा. एक दौर था जब हर महीने कमाई के नए रिकॉर्ड बन रहे थे. फिल्मों की सौ करोड़, दो सौ करोड़ की कमाई की खबरें आती थीं. 2019 में फिल्मों से 2 अरब डॉलर यानी लगभग 1.6 खरब रुपये का रेवेन्यू पैदा हुआ था. शायद वह बॉलीवुड का चरम था, जहां से उतार शुरू हो गया.

इस साल मार्च के बाद सभी भाषाओं की फिल्मों की टिकटों की बिक्री लगातार घट रही है. फिल्मों की कमाई पर नजर रखने वालों का कहना है कि बॉलीवुड पर मार कुछ ज्यादा ही बुरी पड़ी है. रिसर्च और इन्वेस्टमेंट फर्म इलारा कैपिटल के मुताबिक जुलाई से सितंबर की तिमाई में बॉलीवुड फिल्मों का रेवन्यू 45 प्रतिशत तक गिरने का अनुमान है.

जानकार कहते हैं कि बॉलीवुड अपने दर्शकों को बुद्धू मानकर नहीं चल सकता कि जो कुछ उनके सामने परोसा जाएगा, वे उसे ग्रहण कर लेंगे. जैसा कि अक्षय कुमार ने कहा, फिल्म देखने वालों के हिसाब से फिल्मकारों को बदलने की जरूरत है.

इसका असर दिखने भी लगा है. बहुत सारे निर्माता पुरानी स्क्रिप्ट बदल रहे हैं. भारत के दूसरे सबसे बड़े मल्टीप्लेक्स चेन आईनॉक्स (INOX) के मुख्य प्रोग्रामिंग ऑफिसर राजेंद्र सिंह ज्याला कहते हैं उनकी फिल्मकारों से हुई बातचीत में यह बात सामने आई है कि एक्टरों को मिलने वाले पैसे को बॉक्स ऑफिस पर होने वाली कमाई से जोड़ने की भी कोशिशें हो रही हैं.

ज्याला बताते हैं, "कोई नहीं जानता कि असली समस्या क्या है. महामारी के दौरान कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई. सब कुछ बंद था और लोगों के पास घर पर बैठकर ओटीटी देखने का खूब वक्त था. उन्हें अलग तरह की चीजें देखने को मिलीं. तो जो दो साल पहले काम कर सकता था, आज उसकी कोई कीमत नहीं है.”

ज्याला हालांकि कहते हैं कि सबकुछ इतना भी बुरा नहीं है और कुछ बड़ी हिट फिल्में बॉलीवुड में नई जान फूंक सकती हैं लेकिन उसके लिए तुरंत बड़े बदलाव करने की जरूरत है.

वीके/एए (रॉयटर्स)


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