मंडलायुक्त जांच करने पहुंचे
उच्च न्यायालय के आदेश पर सरकार द्वारा गठित समिति शुक्रवार को जांच करने के लिए शहर में पहुंची
गजियाबाद। उच्च न्यायालय के आदेश पर सरकार द्वारा गठित समिति शुक्रवार को जांच करने के लिए शहर में पहुंची। समिति ने वसुंधरा गेस्ट हाउस में गोपनीय बैठक के दौरान भूखंड घोटाले से जुड़े तमाम दस्तावेजों को बारीकी से खंगाला।
इस दौरान मौजूद अफसरों के हाथ-पांव फूले रहे। इतना ही नहीं जीडीए सचिव रवीन्द्र मधुकर गोडबोले को दिल्ली में आहूत एनसीआरपीबी की बैठक को छोड़कर आना पड़ा। जीडीए के अनु सचिव और विधि सहायक राजेन्द्र त्यागी भी बैठक में मौजूद रहे। बताया गया है कि इस घोटाले की जांच शनिवार को भी जारी रहेगी। जांच पूरी होने के बाद ही कार्रवाई संभव है। मुरादाबाद के मण्डलायुक्त आर के सिंह की अध्यक्षता में गठित इस समिति के निशाने पर कई अफसर है।
जीडीए की स्वर्णजयंती पुरम आवासीय योजना के 139 निरस्त बेशकीमती भूखंडों को गलत तरीके से बहाल करने के आरोपी अफसरों पर बड़ी कार्रवाई का निर्णय भी समिति करेगी। आईएएस रितु माहेश्वरी के अलावा मेरठ के डीआईजी रजिस्ट्रेशन और पीसीएस राजेश कुमार यादव भी इस समिति के सदस्य है। समिति दोपहर को पहुंची। पहले जीडीए में बैठक होनी थी लेकिन आनन-फानन में आवास विकास का गेस्ट हाउस खुलवाया गया।
जीडीए अफसर डाटा एकत्र करने में ही लगे रहे। बताया गया है कि कई अफसरों के अलावा कई कर्मचारियों पर गाज गिर सकती है। इस केस में अनियमितता के आरोप में वर्तमान में डीएम हमीरपुर आरपी पाण्डेय का नाम भी शामिल है। इतना ही नहीं जीडीए में वीसी रहे रिटायर्ड आईएएस डी पी सिंह के अलावा सचिव रहे रिटायर्ड पीसीएस आर सी मिश्रा, ओएसडी रहे रिटायर्ड पीसीएस हीरालाल के अलावा सचिव रहे यू एन ठाकुर भी इस जांच के लपेटे में आ गए है।
जीडीए सचिव रवीन्द्र मधुकर गोडबोले ने इस प्रकरण में दोषी मानते हुए लिपिक राम चरित्र को निलंबित कर दिया था। साथ इस खेल में सहयोग करने के आरोपी निलंबित चल रहे बाबु दीपक तलवार को अतिरिक्त आरोप पत्र थमा दिया है। दोनों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए वित्त नियंत्रक सूबेदार सिंह को जांच अधिकारी बनाया गया है।
यहां ओएसडी रहे ओर वर्तमान में डीएम हमीरपुर आर पी पाण्डेय, रिटायर्ड अफसर डीपी सिंह, आरसी मिश्रा और हीरालाल के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी है। रिटायर्ड मुख्य लिपिक जगदीश शर्मा पर भी कार्रवाई होनी है। इस योजना में कुल 1583 भूखंड विकसित किए गए थे। 1998 से 2003 के बीच 11 योजनाएं निकाली गई। 139 भूखंडों का आबंटन रदद हुआ।
इन्ही को बाबुओं और अफसरों ने मिलकर गलत तरीके से बहाल कर अन्य लोगों को आबंटित कर दिया। बोर्ड का प्रावधान है कि निरस्त प्लॉट को छह माह के भीतर ही बहाल किया जा सकता है लेकिन एक साल से लेकर चार साल तक इन भूखंडों को बहाल किया गया। पार्षद राजेन्द्र त्यागी ने इस धांधली की शिकायत तमाम अफसरों से की। कार्रवाई न होने पर वे उच्च न्यायालय चले गए। इस केस में तीन नवम्बर को अहम सुनवाई हुई।
हाईकोर्ट ने बडे अफसरों पर कार्रवाई करते हुए अवगत कराने का आदेश दिया है। अगली सुनवाई 22 नवम्बर को होगी।इसी को लेकर यह समिति आ रही है। समिति ने शुक्रवार को गहन जांच के बाद अनियमितता पाई है। समिति के सदस्यों ने इसे बडा घोटाला बताया है।


