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निजी स्कूलों में मनाया ब्लैक डे, काली पट्टी बांध किया काम

 स्कूल संचालन और प्रबंधन के कार्य में दिन प्रतिदिन बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप नए-नए नियम कानूनों के नाम पर होने वाले भेदभाव के खिलाफ  देशभर के स्कूलों का गुस्सा आखिरकार गुरुवार को छलक उठा

निजी स्कूलों में मनाया ब्लैक डे, काली पट्टी बांध किया काम
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नई दिल्ली। स्कूल संचालन और प्रबंधन के कार्य में दिन प्रतिदिन बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप नए-नए नियम कानूनों के नाम पर होने वाले भेदभाव, स्कूल संचालकों व कर्मचारियों के शोषण व बढ़ते इंस्पेक्टर राज के खिलाफ देशभर के स्कूलों का गुस्सा आखिरकार गुरुवार को छलक उठा। आर्थिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए अलग अलग राज्यों के हजारों निजी स्कूल संचालकों, अध्यापकों और कर्मचारियों ने इसका विरोध किया।

नेशनल इंडिपेंडेंट स्कूल्स अलायंस के नेतृत्व में स्कूल बसों व स्कूल भवनों पर विरोधस्वरूप काले झंडे भी लहराए गए। स्कूल संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मानव संसाधन एवं विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, राज्य के मुख्यमंत्रियों व शिक्षामंत्रियों को मांगपत्र सौंपा और अपने साथ होने वाली ज्यादतियों से भी अवगत कराया और समस्या के समाधान की मांग की। अलायंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुलभूषण शर्मा ने बताया कि शिक्षा का अधिकार कानून के तहत 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी सरकार की है।

सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से भाग रही है और इसे निजी स्कूलों पर थोप रही है। स्कूलों को 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों के एवज में प्रतिपूर्ति भी नहीं की जा रही है और आए दिन अनावश्यक रूप से नए नए नियम थोपे जा रहे हैं।

कुलभूषण शर्मा ने कहा कि गुरुग्राम स्थित रेयान इंटरनेशनल स्कूल के छात्र के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बाद छोटे व गैर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए ऐसे ऐसे नियम थोपे जा रहे हैं जो व्यवहारिक नहीं है।

इससे भ्रष्टाचार और इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा मिल रहा है। निसा के राष्ट्रीय संयोजक डा. अमित चंद्र ने बताया कि आरटीई, समान शिक्षा प्रदान करने की बजाय राजनैतिक मुद्दे के तौर पर ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है जिससे स्कूल संचालकों, शिक्षकों, कर्मचारियों, अभिभावकों, मीडिया व नागरिक संगठनों के मध्य विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।

निसा पदाधिकारी एस. मधुसूदन ने बताया कि नीति निर्धारण के दौरान निजी स्कूलों के प्रतिनिधित्व की अनदेखी की जाती है जिससे कम शुल्क लेने वाले बजट स्कूलों के लिए मुश्किलें बढ़ रही हैं।


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