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दिवास्वप्न जैसा भाजपा का घोषणापत्र

आम चुनाव में पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होने वाला है और उससे ठीक पांच दिन पहले अंबेडकर जयंती पर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपना घोषणापत्र पेश किया

दिवास्वप्न जैसा भाजपा का घोषणापत्र
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आम चुनाव में पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होने वाला है और उससे ठीक पांच दिन पहले अंबेडकर जयंती पर सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी ने अपना घोषणापत्र पेश किया। यूं तो 10 सालों से केंद्र की सत्ता पर बैठी भाजपा को अपने 10 साल के काम दिखाकर ही जनता से वोट मांग लेने चाहिए थे। अलग से घोषणाएं करने की कोई जरूरत ही नहीं थी। 2014 में नरेन्द्र मोदी ने अच्छे दिनों का वादा जनता से किया था। अगर अच्छे दिन 2014 से शुरु हो चुके थे, तो उन्हें 2024 में भी जारी रहने दिया जा सकता था। लेकिन हकीकत क्या है, ये भाजपा भी अच्छे से जानती है और अब जनता भी समझने लगी है। इसलिए भाजपा को अपना संकल्प पत्र नाम का घोषणापत्र जारी करना पड़ा। जिसमें महंगाई या बेरोजगारी पर कोई बात नहीं की गई, अलबत्ता मोदी की गारंटी जैसी शब्दावली के साथ नयी घोषणाओं को पेश किया गया है।

कांग्रेस का घोषणापत्र न्यायपत्र के नाम से जारी किया गया है और भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में ज्ञान का ज़िक्र किया है। जी वाय ए एन का विस्तार हुआ, गरीब, युवा, अन्नदाता और नारी। भाजपा की यह ज्ञान वाली कोशिश कांग्रेस के आगे बचकानी ही नजर आई। क्योंकि भाजपा अगर 10 साल सत्ता में रहने के बाद भी गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं के लिए नए वादे कर रही है, इसका मतलब यही हुआ कि 10 सालों में इन वर्गों के उत्थान में भाजपा सफल नहीं हो पाई है।

भाजपा ने 2014 में सत्ता में आने के लिए हर साल 2 करोड़ रोजगार, हर खाते में 15 लाख जैसे वादे किए थे, फिर 2022 तक किसानों की दोगुनी आय की बात कही थी, नमामि गंगे, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी के सपने लोगों को दिखाए थे। और भाजपा की सत्ता के साल गुजरने के साथ ही ये तमाम बातें जुमलेबाजी में बदल गईं। हल्की-फुल्की चर्चा और मस्ती-मजाक में किसी पर जुमलेबाजी करने, ऊंची-ऊंची हांकने, मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाने जैसी बातें स्वीकार्य हो सकती हैं, लेकिन जब इनका असर देश पर होने लगे तो यह हर नागरिक के लिए खतरे की घंटी है कि वह संभल जाए।

भाजपा के 10 सालों में गंगा नदी साफ नहीं हुई, बल्कि इस दौरान काशी विश्वनाथ से लेकर महाकाल तक कई मंदिरों में कॉरिडोर बनाकर उन्हें आम आदमी की पहुंच से दूर कर दिया गया। उत्तराखंड में हिमालय में पड़ रही दरारों को अनदेखा कर ऑल वेदर रोड जैसी परियोजनाएं शुरु हो गईं। एक साल तक किसानों को आंदोलन पर बैठना पड़ा, अब भी किसान आंदोलनरत हैं, इस बात को भुलाकर किसानों के उत्थान के नए वादे हो रहे हैं। मणिपुर से लेकर महिला पहलवानों तक नारी उत्पीड़न के कई गंभीर मामलों को अनदेखा कर नारी शक्ति की बात की जा रही है। बुलेट ट्रेन अब तक नहीं चली, अब नयी वंदे भारत की बात होने लगी है और ओडिशा में हुई बड़ी रेल दुर्घटना के दोषियों को कब सजा मिलेगी, वरिष्ठ नागरिकों के लिए रियायती टिकट की व्यवस्था क्या फिर से शुरु होगी, इस पर कोई बात नहीं की जा रही। 45 सालों में बेरोजगारी के आंकड़े क्यों बढ़े, इसका कोई जवाब न देकर पकौड़ा रोजगार का विकल्प मोदी सरकार ने पेश किया था, अब सरकार रोजगार की बात ही नहीं कर रही और युवाओं को लुभाने के लिए पेपरलीक पर कड़े कानून की बात कर रही है। पेपर तो पिछले 10 सालों में कई बार लीक हुए, तो अब तक सरकार ने कोई कानून क्यों नहीं बनाया, ये सवाल भाजपा से पूछा जाना चाहिए।

सरकार का दावा है कि उसने करोड़ों लोगों को गरीबी से निकाला, लेकिन ये बात सच है तो फिर 80 करोड़ लोगों को 5 किलो मुफ्त अनाज योजना का सच क्या है। क्या लोग इसी तरह 5 किलो अनाज के मोहताज बनकर अपने स्वाभिमान को छोड़कर केवल सांस लेते रहने के लिए जिंदा रहेंगे। क्या श्री मोदी 2047 के विकसित भारत में ऐसे ही जिंदा लोगों का देश बनाना चाहते हैं।

भाजपा के घोषणापत्र में एक नया शिगूफा 2036 में ओलंपिक की मेजबानी का छोड़ा गया है। ओलंपिक की मेजबानी शायद ही किसी देश में चुनाव का मुद्दा बना हो, श्रीमान नरेन्द्र मोदी ने इस बात को भी मुमकिन कर दिखाया है। ओलंपिक किस देश में होंगे, यह तय करना अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के सदस्यों का काम है, और समिति किसी पार्टी नहीं, बल्कि देश के हालात देखकर उसका चयन करती है। अभी 2032 तक की मेजबानी तय हो चुकी है, मगर श्री मोदी ने 2036 की बात अपने घोषणापत्र में कर दी है। मानो अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति भारत को नहीं भाजपा को ओलंपिक की मेजबानी के लिए चुनेगी। भाजपा के घोषणापत्र में ओलंपिक की मेजबानी का ज़िक्र ठीक वैसा ही है जैसे 15-15 लाख हर खाते में डालने की बात थी। तब लोगों को ये आसान गणित समझाया गया था कि स्विस बैंकों में रखा हुआ काला धन मोदीजी देश में ले आएंगे और उसे फिर सारे लोगों में बांट देंगे। अभी प्रवर्तन निदेशालय द्वारा प.बंगाल में पकड़ी गई अवैध धनराशि के भी इसी तरह वितरण की बात श्री मोदी ने कही है। लोगों को यह सुनकर ही अच्छा लगता है कि बैठे-ठाले उन्हें लाखों की रकम मिल जाएगी। मगर 10 सालों में लोगों को नोटबंदी, जीएसटी और बैंकों के दिवालिया होने या बड़े कर्जदारों के देश से भाग जाने पर लाखों का चूना लग चुका है।

भाजपा के घोषणापत्र में इन भगोड़ों को वापस लाने की कोई बात नहीं है, बैंकिंग व्यवस्था मजबूत करने, छोटे और लघु व्यवसायियों को राहत मिलने, किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य और नए सार्वजनिक निकायों को स्थापित करने की कोई बात नहीं है। केवल सुनहरे ख्वाबों को नए सिरे से दिखाने की कोशिश की गई है। लेकिन जनता अब शायद दिन में सपने देखने से मना कर दे।


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