Top
Begin typing your search above and press return to search.

झारखंड में भाजपा की रणनीति

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापकों में से एक, शिबू सोरेन के साथी चंपई सोरेन भगवा पटका पहनने को तैयार हो चुके हैं

झारखंड में भाजपा की रणनीति
X

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापकों में से एक, शिबू सोरेन के साथी चंपई सोरेन भगवा पटका पहनने को तैयार हो चुके हैं। मंगलवार को चंपई सोरेन ने इस बात की पुष्टि कर दी कि वे भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं। इसके बाद चंपई सोरेन का एक ट्वीट आया है, जिससे यह जाहिर हो रहा है कि श्री सोरेन अब पूरी तरह से भाजपा के खेमे में जा चुके हैं। चंपई सोरेन ने सोशल मीडिया पर लिखा है कि आज बाबा तिलका मांझी और सिदो-कान्हू की पावन भूमि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जिन वीरों ने जल, जंगल व जमीन की लड़ाई में कभी विदेशी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की, आज उनके वंशजों की जमीनों पर ये घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं। इनकी वजह से फूलो-झानो जैसी वीरांगनाओं को अपना आदर्श मानने वाली हमारी माताओं, बहनों व बेटियों की अस्मत खतरे में है।

चंपई सोरेन ने इस लंबे ट्वीट में लिखा कि आदिवासियों एवं मूलवासियों को आर्थिक तथा सामाजिक तौर पर तेजी से नुकसान पहुंचा रहे इन घुसपैठियों को अगर रोका नहीं गया, तो संथाल परगना में हमारे समाज का अस्तित्व संकट में आ जायेगा। पाकुड़, राजमहल समेत कई अन्य क्षेत्रों में उनकी संख्या आदिवासियों से ज्यादा हो गई है। राजनीति से इतर, हमें इस मुद्दे को एक सामाजिक आंदोलन बनाना होगा, तभी आदिवासियों का अस्तित्व बच पाएगा। चंपई सोरेन ने आगे लिखा है कि आदिवासियों के मुद्दे पर सिर्फ भाजपा ही गंभीर दिखती है और बाकी पार्टियां वोटों की खातिर इसे नजरअंदाज कर रही है। इसलिए आदिवासी अस्मिता एवं अस्तित्व को बचाने के इस संघर्ष में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने का फैसला लिया है।

यानी जो बात घुसपैठ की समस्या और आदिवासियों की अस्मत से शुरु हुई थी, वो आखिर में इस बिंदु पर आकर खत्म हुई कि क्यों भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने का उनका फैसला सही था। राजनीति में यह पहला दल बदल नहीं है, जिस पर अब आश्चर्य हो। इसलिए श्री सोरेन इतना स्पष्टीकरण नहीं भी देते तो कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन राजनीति की जिस पृष्ठभूमि से चंपई सोरेन आए हैं, उसमें वे शायद खुद भी अब तक भाजपा में अपने प्रवेश को लेकर सहज नहीं हुए हैं। दरअसल पिछले 10-15 दिनों से झारखंड में यह हलचल रही थी कि चंपई सोरेन किस तरह अपनी नाराजगी को जाहिर करेंगे। जब हेमंत सोरेन को भूमि घोटाले में आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया गया था, उस वक्त गिरफ्तारी से पहले इस्तीफा देकर हेमंत सोरेन ने अपनी जगह चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया था, ताकि भाजपा को सत्ता हथियाने का मौका न मिले। हेमंत सोरेन की यह रणनीति काम कर गई और चंपई सोरेन ने सदन में विश्वासमत भी हासिल कर लिया। इसके बाद लोकसभा चुनावों के दौरान हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन के साथ चंपई सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन के लिए प्रचार भी किया। जून के आखिरी में हेमंत सोरेन को जमानत मिल गई और जुलाई में उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री का पद संभाल लिया। चंपई सोरेन पूर्व मुख्यमंत्री बन गए और तभी से उनकी नाराजगी बढ़ने लगी। कयास लग रहे थे कि चंपई सोरेन भाजपा में जा सकते हैं, लेकिन खुद उन्होंने इससे इंकार किया था। जब पिछले दिनों वे दिल्ली आए, तब उन्होंने कहा कि चश्मे का नंबर ठीक करवाने आया हूं। मगर मंगलवार को उनकी अमित शाह और हिमंता बिस्वासरमा के साथ तस्वीर सामने आई। खुद हिमंता बिस्वासरमा ने बता दिया कि चंपई सोरेन 30 अगस्त को भाजपा में शामिल हो रहे हैं और अब चंपई सोरेन ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है।

भाजपा के नजरिए से यह बड़ी जीत है, क्योंकि झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन में दरार डालने की उसकी कोशिश आखिरकार सफल हुई। चंपई सोरेन को कोल्हान टाइगर कहा जाता है, कोल्हान क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ी है और यहां की कम से कम 14 विधानसभा सीटों पर इस दलबदल का असर पड़ सकता है। भाजपा के हाथों से पिछली बार झारखंड की सत्ता फिसल गई थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने कपड़ों से पहचानने वाला विभाजनकारी बयान दिया था, उसका लाभ भी भाजपा को नहीं मिला था। इस बार भाजपा ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा लिया है। असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वासरमा असम में इस मुद्दे को भुनाते ही रहते हैं, अब उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया गया है, तो वे यहां भी बांग्लादेशी घुसपैठियों को प्रमुख मुद्दा बना रहे हैं। चंपई सोरेन को भाजपा में लाने के पीछे श्री बिस्वासरमा की ही काफी मेहनत रही है, ऐसा माना जा रहा है। हो सकता है इस रणनीति से भाजपा को फायदा मिले। और अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो यह छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बाद उसकी एक बड़ी व्यापारिक जीत भी कही जा सकती है। क्योंकि पूंजीपतियों के हितों को साधने में प्राकृतिक संपदा के धनी राज्यों पर सत्ता काबिज करना पहली शर्त है, ताकि मनमाने दोहन में कोई अड़चन न आए।

सवाल यही है कि चंपई सोरेन ने आदिवासी अस्मिता और हितों की रक्षा की जो उम्मीदें भाजपा से लगाई हैं, क्या वे पूरी होंगी। क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के लोग आदिवासियों को वनवासी बोलना छोड़ेंगे। क्या चंपई सोरेन कभी राहुल गांधी की तरह इस बात को उठा सकेंगे कि भाजपा के लोग आदिवासियों को वनवासी क्यों बोलते हैं। क्या झारखंड में भाजपा की असली रणनीति को चंपई सोरेन ने जानकर भी नजरंदाज कर दिया है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it