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भाजपा संकट में : पिच मिजाज बदल रही है!

आज की तारीख में साथ मिलकर लड़ना जरूरी है

भाजपा संकट में : पिच मिजाज बदल रही है!
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- शकील अख्तर

आज की तारीख में साथ मिलकर लड़ना जरूरी है। सवाल लोकतंत्र का है। वह बचेगा तो बाकी सब राजनीतिक लड़ाइयां चलती रहेंगी। और जब वही नहीं होगा तो किसी बात को कोई मतलब नहीं होगा। कहा सिर्फ केजरीवाल के लिए नहीं जा रहा अखिलेश यादव के लिए भी जा रहा है। ममता बनर्जी तो अभी तक सीट शेयरिंग में कांग्रेस के साथ शामिल ही नहीं हुई हैं। केवल एक सीट यूपी में अपने लिए जरूर लेकर फार्मल इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी हुई हैं। समस्या बिहार में भी है।

सिर्फ दस साल में! समय का पहिया उल्टा घूम गया। केजरीवाल जो संघ परिवार के हीरो थे आज उन्हीं के हाथों गिरफ्तार होकर जेल में हैं। और मीडिया जो केजरीवाल की आंख के इशारे पर काम करती थी आज उन्हें आंखें दिखा रही है।

क्या है यह? यह है बिना सिद्धांतों की राजनीति करना। केवल मौके देखकर उनके अनुरूप अपने सिद्धांत गढ़ना। जिस कथित भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर केजरीवाल ने 2013 में मोदी से पहले कांग्रेस को हराया। आज उसी भ्रष्टाचार के आरोप में उन्हीं मोदी ने जो केजरीवाल की दिल्ली राज्य की जीत के जरिए बनाई जमीन पर चलकर 2014 में प्रधानमंत्री बने थे उन्हें गिरफ्तार कर लिया है।

दोनों साथ थे। आगे एक मुखौटा खड़ा कर रखा था। जो आज तक के भारत के इतिहास का सबसे दुष्ट और पाखंडी इंसान था। अन्ना हजारे नाम का यह मुखौटा वह सब कुछ बोलता था जो उससे संघ परिवार बुलवाना चाहता था। दिल्ली की गद्दी पर कब्जा हुआ और मुखौटे को उठाकर फेंक दिया गया। कांग्रेस कभी समझ नहीं पाई कि यह अन्ना एक मुखौटा है। वह उसे अन्ना जी, अन्ना जी करती रही। जबकि कांग्रेस के महाराष्ट्र के नेता अन्ना की हकीकत जानते थे। उन्होंने कहा भी कि हम इसे वापस इसके गांव छोड़कर आ सकते हैं। मगर अनिर्णय और डर की शिकार मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस नेतृत्व के सलाहकार कुछ नहीं कर सके। केवल पीछे हटते रहे और भाजपा एवं केजरीवाल के लिए जगह बनाते रहे।

और पहिया घूम गया। मगर झूठ चलता नहीं। दस साल में ही वापस पहिया उलटी दिशा में घूमने लगा। केजरीवाल बोल्ड हुए और अब मोदी के लिए भी अपना विकेट बचाना आसान नहीं है।

इसे ही समय का न्याय कहते हैं। जो दो साथ मिलकर काम करे लोगों को आमने-सामने खड़ा कर देता है। मोदी और केजरीवाल को। अब मोदी एक तरफ हैं और केजरीवाल मोदी से पिछले दस सालों से लड़ने वाली कांग्रेस के साथ। कांग्रेस पूरे मन से केजरीवाल की गिरफ्तारी का विरोध कर रही है। वह दस साल पहले के केजरीवाल के आचरण को नहीं देख रही। न ही अभी एक साल पहले तक के उनके कांग्रेस विरोधी बयानों को।

बड़ी पार्टियां ऐसी ही होती हैं। होना भी चाहिए। यही तो फर्क दिखाता है भाजपा और कांग्रेस में। भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने का शोर मचाती रहती है। मगर दिल इतना छोटा है कि खुद अपनी पार्टी के बड़े नेताओं को भी एडजस्ट नहीं करती है और एनडीए गठबंधन के सभी सहयोगियों को तो बाहर ही फेंक देती है। शिवसेना जिसे नेचुरल अलायंस कहती थी, अकाली दल जो सबसे पुराना सहयोगी था सबको अपनी ताकत का घमंड दिखा दिया। अभी हरियाणा में जेजेपी के दुष्यंत चौटाला को और बिहार के लोजपा के पशुपति पारस को उपयोग के बाद बाहर का रास्ता दिखा दिया।

मगर कांग्रेस उस केजरीवाल के बुरे वक्त में उसके साथ खड़ी है जो 2012 से कांग्रेस को बदनाम करने के काम में लगे हुए थे। किस गंदे स्तर पर इसकी लोग कल्पना नहीं कर सकते। झूठ किस तरह गढ़ा जाता है इसकी भी नहीं। केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पत्रकारों के साथ बैठकर यह प्लान करते थे कि यह फैलाएं तो चल जाएगा? या यह वाला ज्यादा चलेगा! जाहिर है सत्य से और तथ्य से कोई मतलब नहीं था बस केवल माहौल खराब होना चाहिए। और वह हुआ। कांग्रेस निपट गई।

मगर जैसा कि हम कह रहे थे कि बड़ी पार्टी कैसी होती है बड़ा दिल कैसा होता है वह कांग्रेस ने दिखाया। अभी भी लोग बहुत कह रहे हैं कि केजरीवाल धोखा देगा। दे। कांग्रेस का क्या ले जाएगा?

आज की तारीख में साथ मिलकर लड़ना जरूरी है। सवाल लोकतंत्र का है। वह बचेगा तो बाकी सब राजनीतिक लड़ाइयां चलती रहेंगी। और जब वही नहीं होगा तो किसी बात को कोई मतलब नहीं होगा।

कहा सिर्फ केजरीवाल के लिए नहीं जा रहा अखिलेश यादव के लिए भी जा रहा है। ममता बनर्जी तो अभी तक सीट शेयरिंग में कांग्रेस के साथ शामिल ही नहीं हुई हैं। केवल एक सीट यूपी में अपने लिए जरूर लेकर फार्मल इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनी हुई हैं। समस्या बिहार में भी है। लालू यादव कांग्रेस की मर्जी के मुताबिक सीटें नहीं दे रहे हैं। न संख्या में और न चाहे गए निर्वाचन क्षेत्र। कांग्रेस दस सीटें मांग रही है। लालू जी छह सात से ज्यादा देने को तैयार नहीं है। और जिस पुर्णिया से लड़ने के लिए पप्पू यादव कांग्रेस में आए वह पूर्णिया सीट नहीं। प्राब्लम महाराष्ट्र में भी है।

सब पाठकों को बताना चाहिए। केवल गुडी गुडी बातें नहीं। लेकिन साथ ही यह भी बताना चाहिए कि बड़े गठबंधन में यह समस्याएं आती ही हैं। और खासतौर से तब जब सब को माहौल बदला हुआ लग रहा हो।

हां! इस वक्त माहौल ऐसा है। मुकाबला होता दिख रहा है। तो हर पार्टी अपनी कोई सीट छोड़ने को तैयार नहीं है। मगर वह समझदारी का भाव है कि साथ मिलकर लड़ेंगे तभी यह बदला हुआ माहौल लाभदायी होगा। इसलिए सपा ने इसे सबसे पहले समझा और अच्छी सीट शेयरिंग की। अखिलेश बीजेपी से बहुत बुरी चोट खाए बैठे हैं अपमान की। मुख्यमंत्री निवास खाली करने के बाद उसे गंगाजल से धुलवाया गया था। इस पर भी मन नहीं भरा तो बहुत ही निम्न स्तर के आरोप टोंटी चोर जैसे लगाए। यह केवल अखिलेश यादव पर नहीं थे। उनके पूरे समाज पर थे। मायावती सारे अपमान सहकर भी भाजपा के खिलाफ जाने का साहस नहीं कर सकीं। मगर अखिलेश मजबूती से इंडिया गठबंधन के साथ खड़े हैं।

मगर यहां जब इंडिया गठबंधन के दूसरे सहयोगी दलों से सवाल हैं तो सबसे बड़े दल और गठबंधन की धुरी कांग्रेस भी सवालों से बच नहीं सकती। जिस यूपी का जिक्र कर रहे हैं और वही इस चुनाव को पलटने का काम कर सकता है वहां माहौल बनाने में कांग्रेस को भी बड़ा फैसला लेना होगा।

अमेठी और रायबरेली के बारे में खबरें अच्छी नहीं आ रही हैं। भारी प्रचार है कि राहुल और प्रियंका वहां से नहीं लड़ेंगे। मतलब परिवार वह सीटें छोड़ देगा। कांग्रेस ने अभी तक इस पर कुछ नहीं बोला है। जबकि अमेठी रायबरेली के कांग्रेसी दिल्ली आकर यह मांग, रिक्वेस्ट कर चुके हैं कि राहुल और प्रियंका वहीं से लड़ें। लेकिन कोई सकारात्मक जवाब सामने नहीं आने से माहौल खराब हो रहा है।

राहुल और प्रियंका इस बात को समझ लें कि अगर वे अमेठी रायबरेली से नहीं लड़ते हैं तो कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के माहौल को बड़ा नुकसान पहुंचाएंगे। अभी समय है। यहां पांचवे चरण में 20 मई को वोटिंग है।

नोटिफिकेशन में भी समय है। 26 अप्रैल को होगा। मगर भाजपा ने यहां स्मृति ईरानी का नाम एनाउंस करके माहौल बनाना शुरू कर दिया है। यह चुनाव माहौल का ही है। नरेटिव (कहानियों, छवियों) का। मुद्दे गौण हो गए हैं। नहीं तो मुद्दे तो बहुत बड़े हैं। इतिहास की आज तक की सबसे बड़ी बेरोजगारी का। ऐसी तो अकाल के समय भी नहीं होती थी। यूपी की बात हो रही है तो अवध का ही उदाहरण दें कि वहां अकाल पड़ा तो वहां के नवाब आसिफउद्दौला ने ऐतिहासिक भूल भुलैया का निर्माण करवाना शुरू कर दिया। यह उस समय ढाई सौ साल पहले का सबसे बड़ा रोजगार प्रोग्राम कहलाया। और खास बात यह कि केवल गरीब निम्न मध्यम वर्ग के लिए ही नहीं मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग के लिए भी। वह ऐसे कि दिन में गरीब बनाता था। रात में उन्हें काम मिलता था जो व्हाइट कालर दिन में शारीरिक श्रम करने से अपमानित महसूस करते थे जिन्हे बनाना कुछ नहीं आता मगर बिगाड़ना जानते है तो उनसे कहा जाता था तुम तोड़ दो। उन्हें भी रोजगार मिल जाता था।

आज उससे भी गंभीर बेरोजगारी की स्थिति है। देखते हैं अगर बेरोजगार युवा इसे बड़ा सवाल बना दें तो! फिर तो चुनाव इकतरफा हो जाएगा!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


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