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भाजपा सरकार ने किसानों को सबसे ज्यादा उपेक्षा और यातना का शिकार बनाया: अखिलेश

समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिर से अपना पुराना चश्मा पहन लिया है

भाजपा सरकार ने किसानों को सबसे ज्यादा उपेक्षा और यातना का शिकार बनाया: अखिलेश
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लखनऊ। समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फिर से अपना पुराना चश्मा पहन लिया है जिसमें उन्हें हर तरफ अमन चैन और सरकार की योजनाओं की धूमधाम दिखाई देने लगी है। वाहवाही वाला चश्मा उतार कर वे देखते तो उन्हें जमीनी हकीकत में चारों तरफ हाहाकार और परेशान हाल लोगों के चेहरों पर दर्द दिखाई देता।

अखिलेश यादव ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि जब हालात इतने दर्दनाक हों तब मुख्यमंत्री के गेहूं खरीद और गणना पेराई संबंधी बयान जख्म को कुरेद देते हैं। कोरोना महामारी में कहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ चल रही हैं। गेहूँ खरीद कई जिलों में बंद चल रही है, क्रय केंद्र खुल नहीं रहें हैं जो खुले हैं खरीद के बजाय बोरियां कम होने, तौलमापक के खराब होने तथा भुगतान के लिए पैसा न होने के बहनें बना रहे हैं। मजबूरी में किसान एमएसपी के बजाय बिचौलियों को बहुत काम दामों में अपनी फसल बेच रहा है। धान की लूट हो चुकी है।

सपा अध्यक्ष ने कहा कि मुख्यमंत्री का नया एलान है कि जब तक खेतों में गन्ना रहेगा तब तक मिलें चलेंगी। यह एलान किसी हवाई कलाबाजी से कम नहीं। इस संकट काल में कितनी मिलें चल रहीं हैं यह भाजपा सरकार को बताना चाहिए। किसान लम्बे समय से अपने भुगतान के लिए परेशान है। उसका करीब 15 हजार करोड़ बकाया है। ब्याज छोड़िये मूलधन भी हाथ नहीं लगा है। चार वर्ष से गन्ने की कीमत भी नहीं बढ़ी है। किसान का गन्ना तो पहले ही बर्बाद हो चुका है। चीनी मीलों में किसानों को घटतौली से लेकर के भुगतान तक में दिक्कत उठानी पड़ी है। भाजापा सरकार से उन्हें कटाई राहत नहीं मिली है।

उन्होने कहा कि भाजपा सरकार ने प्रदेश में किसानों को सबसे ज्यादा उपेक्षा और यातना का शिकार बनाया है। इनके चार वर्ष के कार्यकाल में किसान को हरस्तर पर परेशानी उठानी पड़ रही है। उस पर काले कृषि कानून लादे गए। उनकी मांगों पर भाजपा गूँगी बहरी बन गई है। पिछले कई महीनों से किसान आंदोलन कर रहे हैं परन्तु उनको सिवाय लाठी के कोई जवाब नहीं मिला है। भाजपा की इस निष्ठुरता का प्रतिउत्तर अब किसान अगले वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों में देने के लिए तैयार बैठा है।


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