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अंतर्विरोधों से परिपूर्ण भाजपा के चुनावी वादे

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिये प्रमुख राजनैतिक दलों का प्रचार अभियान जैसे-जैसे चरम पर पहुंच रहा है

अंतर्विरोधों से परिपूर्ण भाजपा के चुनावी वादे
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5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिये प्रमुख राजनैतिक दलों का प्रचार अभियान जैसे-जैसे चरम पर पहुंच रहा है, कुछ घोषणापत्रों के जरिये तो कुछ भाषणों के माध्यम से वादे किये जा रहे हैं। कांग्रेस तथा भारतीय जनता पार्टी के बीच हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में प्रमुख मुकाबला है- राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़। तेलंगाना में पहले वहां की सत्तारुढ़ पार्टी भारत राष्ट्रीय समिति (बीआरएस) और भाजपा के बीच आमने-सामने की लड़ाई थी पर अब कांग्रेस के साथ बीआरएस को संघर्ष करना पड़ रहा है। भाजपा तीसरे क्रमांक पर है। मिजोरम में भी कांग्रेस ही सत्तारुढ़ मिजो नेशनल फ्रंट को चुनौती दे रही है।

एक ओर कांग्रेस की कमान सम्भालने वाले पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी एवं अन्य नेतागण कांग्रेस की गारंटियों को भरोसेमंद बतला रहे हैं वहीं भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (और उनके प्रमुख सिपहसालार गृह मंत्री अमित शाह) बतला रहे हैं कि उनकी कही बात खाली नहीं जायेगी। ऐसे में यह सबसे माकूल वक्त है कि इन राज्यों में दिये जा रहे आश्वासनों, वादों और गारंटियों के टिकाऊपन तथा विश्वसनीयता की समीक्षा की जाये- खासकर राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के परिप्रेक्ष्य में। ऐसा नहीं कि मिजोरम एवं तेलंगाना के चुनाव महत्वहीन हैं। ऐसा इसलिये कि इन दो राज्यों में इन गारंटियों के परीक्षण का पैमाना या तो सीमित है (मिजोरम में, जहां विकास, धार्मिक आजादी एवं विविधता के संरक्षण की गारंटी कांग्रेस दे रही है) अथवा इन तीन राज्यों जैसा राजनैतिक समीकरण वहां नहीं हैं।

मिजोरम में भाजपा मुकाबले में तो नहीं है लेकिन वहां तुलना कांग्रेस व केन्द्र में बैठी भाजपा के बीच हो रही है; जबकि तेलंगाना में भाजपा का पहले ही साफ होता सूपड़ा दिखने से कोई इन दोनों के बीच समानता या विरोधाभास की बात ही नहीं कर रहा है। वहां गारंटियों की तुलनात्मक समीक्षा कांग्रेस व बीआरएस को आमने-सामने रखकर हो रही है।

बहरहाल, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के मामलों में भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही आ रही है कि इन दोनों राज्यों की कांग्रेसी सरकारों ने पिछले पांच वर्षों में जनता का भरोसा इसलिए जीता है कि वहां पर पिछले चुनावों में किये गये वादे न केवल पूरे किये गये बल्कि घोषित अवधि में अमल में लाये गये। मसलन, पिछली बार छत्तीसगढ़ ने वादा किया था कि पहली कैबिनेट बैठक में ही किसानों की कर्ज माफी का फैसला लिया जायेगा- वैसा हुआ। इस बार फिर से अगली सरकार के बनने पर ऋण माफ करने का वैसा ही ऐलान कांग्रेस ने कर दिया है। ऐसे ही, धान का समर्थन मूल्य बढ़ाने, उस पर बोनस देने, प्रति एकड़ 20 क्विंटल धान खरीदने, बेरोजगारी भत्ता देने आदि सम्बन्धी जो भी वादे किये गये थे, वे सारे के सारे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने पूरे कर दिखाये हैं। जनता के पास अविश्वास का कोई कारण नहीं है।

भाजपा के पास यह कहने का अवसर भी नहीं है कि ऐसा हो नहीं सकता। छग कांग्रेस के पास ऐसे कई वादों की फेहरिस्त है जो उसकी निवर्तमान सरकार द्वारा पूरे किये गये हैं। उधर राजस्थान की बात करें तो वहां पुरानी पेंशन योजना, सस्ता गैस सिलेंडर आदि के वादे भी पूरे किये गये हैं।

पूरे किये गये वादों के चलते दोनों राज्यों में सरकार विरोधी भावना नहीं के बराबर है। दूसरी तरफ मध्यप्रदेश सरकार के खिलाफ जो प्रचंड नाराजगी नज़र आ रही है वह वहां व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के कारण भी है जिसके कारण घोषित योजनाएं तक ठीक से लागू नहीं हो पाई हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अगर अपने व्यक्तिगत प्रयासों से वहां इन असफलताओं के बावजूद नैया पार लगा भी लेते तो वहां भाजपा नेतृत्व ने सात सांसदों या केन्द्रीय नेताओं को चुनावी मैदान में उतारकर चौहान की नाकेबंदी कर दी है।

परेशान भाजपा को देखा-देखी में ऐसी-ऐसी घोषणाएं करनी पड़ रही हैं जिनमें अनेक विसंगतियां तथा अंतर्विरोध नज़र आते हैं। इसके चलते वे अविश्वसनीय लग रही हैं और लोगों को प्रभावित करने में नाकाम भी दिखती हैं। (मौका मिला तो) कुछ वादे भाजपा लागू करती भी है तो वह उसके स्थापित विचारों के खिलाफ हैं। अपनी गारंटियों को विश्वसनीयता दिलाने के लिये उन्हें मोदी के नाम से जोड़ा जा रहा है परन्तु उससे स्थिति और उलझ रही है। मोदी ने तीनों राज्यों (राजस्थान, मप्र व छग) में पार्टी के वादों को अपनी व्यक्तिगत गारंटियां घोषित कर दिया है। यह एक तरह से चौहान के लगभग 18 वर्ष तथा भूपेश के पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के 15 साल के कामों को श्रेय न देने जैसा है।

कांग्रेस से बढ़कर घोषणा करने के चक्कर में छत्तीसगढ़ भाजपा के संकल्पपत्र में प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान खरीदी का आश्वासन दिया गया है क्योंकि कांग्रेस ने 20 क्विंटल का भरोसा दिया है। मजेदार बात यह है कि भाजपा के ही एक पूर्व मंत्री कांग्रेस की इस घोषणा को इसलिये दिखावटी कह चुके हैं कि राज्य में कहीं भी 17 क्विंटल से ज्यादा धान का उत्पादन असम्भव है। जिस नगद राशि वितरण को भाजपा रेवड़ियां कहती थी, वह अब उसके वादों के रूप में खूब बंट रही है।

मनरेगा को वह अपनी उपलब्धि बता रही है जिसका कभी मोदी संसद में 'कांग्रेस की विफलता का स्मारक' कहकर मज़ाक उड़ाते थे। ओबीसी के मुद्दे पर भाजपा निरूत्तर है क्योंकि कांग्रेस जातिगत जनणना की बात कर रही है, वहीं मोदी इस पर इतना ही कह पा रहे हैं- 'मैं ओबीसी हूं इसलिये कांग्रेस मुझे गालियां देती है।' गारंटियों की स्पष्टता व विश्वसनीयता ही हार-जीत तय करेगी।


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