Top
Begin typing your search above and press return to search.

उत्तर भारत में भाजपा नहीं जीती कांग्रेस हारी

उत्तर भारत के क्षत्रपों ने कांग्रेस को फिर डुबो दिया। जबकि तेलंगाना के नायक रेवंत रेड्डी ने कर्नाटक के सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की तरह दक्षिण में कांग्रेस की नैया पार लगा दी

उत्तर भारत में भाजपा नहीं जीती कांग्रेस हारी
X

- शकील अख्तर

2023 कांग्रेस के लिए निराशा का साल बन गया। मगर एक अवसर है। अगर कांग्रेस सीख सके तो। क्षत्रपों पर कंट्रोल। दलाल नेताओं की पहचान। खाली दफ्तर में बैठकर मीडिया के जरिए अपना फोटो चमकाने वालों को तत्काल पदों से हटाना। और अच्छी बात अभी यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने अभी अपनी नई टीम घोषित नहीं की है।

उत्तर भारत के क्षत्रपों ने कांग्रेस को फिर डुबो दिया। जबकि तेलंगाना के नायक रेवंत रेड्डी ने कर्नाटक के सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की तरह दक्षिण में कांग्रेस की नैया पार लगा दी।

राहुल गांधी का रोल हर जगह समान रहा। खूब मेहनत की। निश्चित ही रूप से उनके साथ पार्टी अध्यक्ष खरगे जी और प्रियंका गांधी की भी पूरी मेहनत रही। मगर उनके नेता कमलनाथ, गहलोत, पायलट, भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव सब अपनी ढपली अपना राग बजाते रहे। किसी को न पार्टी की चिन्ता थी और न ही राहुल की।
नतीजा सबके सामने है। जबकि दक्षिण में कर्नाटक भी और फिर तेलंगाना भी कांग्रेस के स्थानीय नेताओं ने अपना अहं छोड़कर पार्टी के लिए लड़ा। और वहां का नतीजा भी सामने है।

अब फैसला कांग्रेस नेतृत्व को करना है। उसे उत्तर भारत के इन क्षत्रपों पर लगाम लगाना है या फिर ऐसा ही ढीला ढाला रवैया चलते रहने देना है।

राजस्थान में पांच साल से ज्यादा कांग्रेस में भयंकर गुटबाजी चली। 2018 के चुनाव में जाने से पहले गहलोत और पायलट में तलवारें खिंच चुकी थीं। और उसके बाद 2023 में रिजल्ट आने के बाद तक वे म्यानों में वापस नहीं गईं। हमने शायद दो साल पहले लिखा था कि वोट कांग्रेस को मिलते हैं। उसके नेताओं सोनिया गांधी राहुल के नाम पर। उसकी नीतियों को लोग पसंद करते हैं। मगर चुनाव जीतने के बाद क्षत्रप यह समझने लगते हैं कि वोट उन्हें मिले। लोकप्रियता उनकी है और वे अपनी मनमानी करने लगते हैं। हमारी यह बात उस समय कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं की समझ में आई थी। एकाध ने सार्वजनिक रूप से उसका समर्थन कर दिया। बड़ा हंगामा मचा। कांग्रेस के क्षत्रप लाल-पीले हो गए। मगर बात सच थी और आज नुकसान उठाकर कांग्रेस की समझ में आई है।

हमने यह भी लिखा था कि कांग्रेस को राजस्थान में गहलोत और पायलट दोनों को भूलकर तीसरा नेतृत्व तैयार करना चाहिए। मगर कांग्रेस कभी सुनती है? याद रखना चाहिए कि राजस्थान में प्रधानमंत्री मोदी ने वहां की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे को किनारे करके चुनाव लड़ा। मगर कांग्रेस गहलोत और पायलट के बीच झूलती रही। जिस समय पायलट अपने विधायकों को लेकर मानेसर गए कांग्रेस क्या कर रही थी? क्यों नहीं पायलट के खिलाफ एक्शन लिया गया? और फिर जब पार्टी अपना सबसे बड़ा डिसिजन ले रही थी। परिवार के बाहर का अध्यक्ष बनाने का तो गहलोत ने राजस्थान की कहावत के अनुसार मु_ी भर बाजरे के लिए हिन्दुस्तान की बादशाहत ठुकरा दी।

कांग्रेस गहलोत को अध्यक्ष बना रही थी। मगर राजस्थानी भाषा के अनुसार गहलोत नट गए। मतलब इन्कार कर दिया। और उसके साथ ही उन्होंने भी पार्टी का अनुशासन तोड़ने का एक बड़ा काम भी कर दिया। कांग्रेस ने वहां विधायक दल की बैठक बुलाई थी। उसमें आब्जर्वर के तौर पर उस समय के राजस्थान इंचार्ज अजय माकन और खरगे जी जिनका नाम उस समय अध्यक्ष पद की रेस में दूर-दूर तक नहीं था गए थे। मगर गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों को उसे बैठक में जाने से रोक दिया। कांग्रेस इस पर कोई एक्शन नहीं ले पाई। नतीजा आज राजस्थान के रिजल्ट हैं।

मध्य प्रदेश की कहानी तो और भी खराब है। वहां तो कमलनाथ ने अपने आपको भावी मुख्यमंत्री ही लिखवाना शुरू कर दिया था। ये तो सबको मालूम था कि वे किसी से मिलते-जुलते नहीं हैं। मगर यह नहीं मालूम था कि वे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री पूरे टर्म के अखिलेश यादव के लिए ऐसे भी बोल सकते हैं कि अरे छोड़िए भी अखिलेश वखिलेश! और इससे भी आगे जाकर दस साल मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह और उनके विधायक पुत्र जयवर्द्धन सिंह जिनका टिकट बंटवारे से कोई लेना-देना नहीं के लिए यह बोल सकते हैं कि जाकर उनके कपड़े फाड़ो।

दिग्विजय ने एक कार्यक्रम में इस पर कमलनाथ की मौजूदगी में ही हल्के व्यंग्य के साथ एक कमेंट भी किया। मगर पार्टी की एकता बनाए रखने को ध्यान में रखते हुए ज्यादा तूल नहीं दिया। इसके साथ ही बेमतलब की फिल्मी डायलगबाजी की गई। वहां कांग्रेस इन्चार्ज के तौर पर अच्छा-भला बैकग्राउंड में रहकर काम कर रहे वरिष्ठ नेता जयप्रकाश अग्रवाल को अचानक प्रेस नोट जारी करते पद से हटा दिया गया। इतने वरिष्ठ नेता को पहले से जानकारी देना भी कांग्रेस ने उचित नहीं समझा। जिस समय उन्हें हटाने की विज्ञप्ति आई वे कांग्रेस मुख्यालय के अपने आफिस में पत्रकारों को भाजपा पर बाइट दे रहे थे। बता रहे थे कि कांग्रेस कैसे मध्य प्रदेश से भाजपा को हटाएगी मगर उसी समय उन्हीं को हटा दिया गया। उनकी जगह आए रणदीप सुरजेवाला ने उनकी चुपचाप काम करने वाली स्टाइल के विपरीत धूम-धड़ाका शुरू कर दिया। कमलनाथ और दिग्विजय को फिल्म शोले की जय-वीरू की जोड़ी बता दिया। बीजेपी तो इसी के इंतजार में थी। उसने फौरन सवाल किया की फिल्म खत्म होने से पहले एक खत्म हो गया था। वह कौन है? और वह अब कमलनाथ निकले।

कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ ने तारीख तो मध्यप्रदेश में उनके शपथ ग्रहण की बताई थी मगर किस को पता था कि उनकी राजनीति ही खत्म हो जाएगी। कमलनाथ किसी की सुनते नहीं थे। इंडिया गठबंधन ने जिस एंकर का बायकाट किया था उसे वे अपने जहाज में घुमाते हुए इंटरव्यू दे रहे थे। अपने आसपास के लोगों द्वारा रोज सुबह-शाम जय जय कमलनाथ सुनकर उन्हें लगने लगा था कि वे मुख्यमंत्री बन ही गए हैं।

अब बात छत्तीसगढ़ की। जहां कांग्रेस सबसे ज्यादा अपनी जीत सुनिश्चित मान रही थी। भाजपा को दस से ज्यादा सीटें न देने की बात कही जा रही थी। वहां मुख्यमंत्री बघेल, कमलनाथ जैसे अहंकार में तो नहीं थे मगर आत्मुमग्ध थे। उनके आसपास भी ऐसे लोगों की भीड़ जुट गई थी जो करते-धरते तो कुछ नहीं थे मगर रोज आकर बघेल को कहानियां सुनाते थे कि उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गई है।

तीनों राज्यों में एक बात कॉमन थी कि दो के मुख्यमंत्री गहलोत और बघेल को और तीसरे के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को चापलूस लोगों ने घेर रखा था। सत्ताधारियों का चाटुकारों और दलालों से घिरा होना कोई खास बात नहीं मगर खास बात यह है कांग्रेस के नेता इनके अलावा किसी और से कोई संपर्क ही नहीं रखते थे।

यहां एक बात और कह दें कि दिल्ली भी अब अपने नेताओं पर निगाह नहीं रख पाती है। इन्दिरा गांधी के समय तक कांग्रेस में एक निगरानी की व्यवस्था थी। बाद में बीच के लोगों ने खुद ही सबकुछ देख लेने की जिम्मेदारी लेकर सब कुछ व्यक्तिगत बना दिया। सिस्टम खत्म कर दिया।

2023 कांग्रेस के लिए निराशा का साल बन गया। मगर एक अवसर है। अगर कांग्रेस सीख सके तो। क्षत्रपों पर कंट्रोल। दलाल नेताओं की पहचान। खाली दफ्तर में बैठकर मीडिया के जरिए अपना फोटो चमकाने वालों को तत्काल पदों से हटाना।

और अच्छी बात अभी यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष ने अभी अपनी नई टीम घोषित नहीं की है। उसे लिस्ट में से उन सब लोगों को निकालकर बाहर कर देना चाहिए जो केवल बातें करते हैं। जिनका कोई काम नहीं है। नए लोगों को जिम्मेदारियां देना चाहिए। गणेश परिक्रमा करने वाले कांग्रेस के सबसे बड़े दुश्मन हैं।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it