उपचुनावों में भाजपा को मात
चार राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे सोमवार को आए, जिसमें केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है

चार राज्यों की 5 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे सोमवार को आए, जिसमें केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को बड़ा झटका लगा है। गुजरात की कड़ी और विसावदर विधानसभा सीट, पंजाब की लुधियाना सीट, केरल की नीलांबुर सीट और प.बंगाल की कालीगंज सीट पर 19 जून को मतदान हुआ था।
पंजाब में आप उम्मीदवार संजीव अरोड़ा और प.बंगाल में टीएमसी उम्मीदवार अलीफा अहमद को जीत मिली, यानी इन दो राज्यों में सत्तारुढ़ दलों के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। लेकिन गुजरात में भाजपा के लिए मामला फंस गया, क्योंकि यहां की कडी सीट पर तो भाजपा के राजेंद्र कुमार (राजूभाई) दानेश्वर चावड़ा ने जीत दर्ज की है, लेकिन विसावदर सीट पर अब आप की जीत हुई है। आप प्रत्याशी गोपाल इटालिया ने भाजपा के कीर्ति पटेल को हराया है।
वहीं केरल में भी नीलांबुर सीट पहले एलडीएफ के पास थी, लेकिन अब उस पर कांग्रेस के आर्यदान शौकत को जीत मिली है। कुल पांच सीटों में भाजपा के पास केवल एक सीट आई है और एक सीट उसने गंवाई है। बेशक इन पांच सीटों से देश की मौजूदा सियासी तस्वीर पर तत्काल कोई असर पड़ते हुए नहीं दिख रहा है, लेकिन इसका दूरगामी परिणाम क्या हो सकता है, यह समझना कठिन नहीं है।
गुजरात की कुल 182 विधानसभा सीटों में भाजपा के पास 161 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 12 और आप के पास चार हैं। एक सीट समाजवादी पार्टी और दो निर्दलीय के पास है। लेकिन अब भाजपा की एक सीट घट गई है और आप की सीट अब पांच हो गई है। अगर इंडिया गठबंधन के लिहाज से देखें तो कुल 18 सीटें हो सकती हैं। हालांकि दिल्ली चुनाव में जिस तरह आप और कांग्रेस के बीच तल्खी बढ़ी जो अब पंजाब में भी देखी जा रही है, उसे देखकर कहना कठिन है कि इंडिया गठबंधन में अब आप और कांग्रेस की एकता कैसे कायम होगी। लेकिन अगर लोकसभा चुनावों में मिली जुली कोशिशें ये दल याद करेंगे तो उन्हें समझ आएगा कि भाजपा को हराने के लिए विपक्षियों में एकता कितनी जरूरी है।
वैसे गुजरात में भाजपा को बड़ा झटका इसलिए माना जा रहा है कि उसने जीती हुई सीट गंवा दी है। कडी सीट तो भाजपा विधायक करसनभाई पंजाबभाई सोलंकी के निधन के कारण खाली हुई थी औऱ वो अब भाजपा के पास ही है। लेकिन विसावदर में आप ने भाजपा के खेल का जवाब दे दिया है। यहां पहले आम आदमी पार्टी से ही भूपेंद्रभाई गंडूभाई भायानी विधायक बने थे, लेकिन दिसंबर 2023 में अपने पद से इस्तीफा देकर वो भाजपा में शामिल हुए थे। तब से ये सीट खाली है। इससे पहले साल 2022 में भाजपा के हारे प्रत्याशी हर्षद रीबडिया ने गुजरात हाईकोर्ट में भायानी की जीत को चुनौती दी थी। लेकिन अभी मार्च में हर्ष रीबाडिया ने अपनी याचिका वापस ले ली थी, तो उपचुनाव का रास्ता साफ हुआ और जनता ने एक बार फिर आप को ही मौका दिया। इस जीत से आप का ग्राफ थोड़ा और बढ़ गया है।
उधर पंजाब में तो आप की जीत का दोहरा असर होता दिख रहा है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल फरवरी 2025 में हुए दिल्ली चुनाव में अपनी सीट भी हारे थे और सत्ता भी गंवाई थी। तब से आप कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी टूटा हुआ दिख रहा था। इस बीच कई नेता भाजपा खेमे में शामिल हो गए थे। लेकिन पंजाब की लुधियाना वेस्ट सीट पर उपचुनाव से आप के हौसले अब सातवें आसमान पर हैं। पार्टी मुखिया ने इस संभावना से तो इंकार किया है कि वे संजीव अरोड़ा की खाली सीट पर राज्यसभा जाएंगे, लेकिन ये दावा उन्होंने किया है कि अगले विधानसभा चुनाव में पंजाब में आप की आंधी नहीं बल्कि तूफान आएगा, क्योंकि हमारे प्रत्याशी को पिछली बार की अपेक्षा दोगुने वोट देकर जनता ने हमारे काम पर मुहर लगाई है।
पंजाब में कुल 117 विधानसभा सीटों में आप के पास 91 सीटें हैं। जो अब 92 हो जाएंगी। कांग्रेस के पास 18, शिरोमणि अकाली दल के पास 3 सीट, बसपा 1 और बीजेपी की 2 सीटे हैं। एक विधायक निर्दलीय है। यानी केजरीवाल की आसान जीत तय है। मुख्यमंत्री न रहने और सत्ता जाने के बाद केजरीवाल के पास जो सरकारी सुविधाएं नहीं थीं, वो अब उन्हें मिल जाएंगी और उनके खिलाफ चल रहे केस में पुलिस को कार्रवाई के लिए अनुमति लेने की जरूरत पड़ेगी।
बात करें केरल की तो कांग्रेस का बढ़ता दबदबा और प्रियंका गांधी का असर दोनों नजर आ रहा है। केरल में 140 विधानसभा सीटों में सत्तारुढ़ एलडीएफ के पास 98 सीटें हैं। और कांग्रेस के यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास 41 सीटें हैं। नीलांबुर सीट से 2021 में एलडीएफ के समर्थन से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर पी.वी. अनवर विधायक चुने गए थे। लेकिन सितंबर 2024 में एलडीएफ से मतभेद के चलते 13 जनवरी 2025 को अनवर ने इस्तीफा दिया था और टीएमसी में शामिल हो गए थे। इस उपचुनाव में टीएमसी से ही अनवर फिऱ खड़े हुए थे, लेकिन कांग्रेस से आर्यदान शौकत से अनवर समेत माकपा के एम. स्वराज और भाजपा के माइकल जॉर्ज प्रत्याशी तीनों को हार मिली। यहां प्रियंका गांधी के दो दिनों के प्रचार ने सारी बाजी पलट दी। अब अगले साल होने वाले चुनावों में इसका असर देखने मिलेगा।
केरल में तो टीएमसी हारी, लेकिन पं.बंगाल में उसका दबदबा कायम रहा। कुल 294 सीटों में इस समय 215 टीएमसी के विधायक हैं। भाजपा के पास 77 सीटें हैं। कांग्रेस का कोई भी विधायक नहीं है। कालीगंज सीट से टीएमसी विधायक नसीरुद्दीन अहमद के निधन के बाद सीट खाली हुई। उपचुनाव में उनकी बेटी अलीफा अहमद को टीएमसी ने उम्मीदवार बनाया और उन्हें जीत मिली। इस तरह ममता बनर्जी के खिलाफ भाजपा का सारा दुष्प्रचार धरा का धरा रह गया।
कुल मिलाकर उपचुनावों में एक बार फिर इंडिया गठबंधन के दलों का ही दबदबा देखने मिला है, भले ही ये दल अलग-अलग लड़े, लेकिन भाजपा को हराया जा सकता है, ये संदेश जनता में गया है।


