बीजेपी का घटता आत्मविश्वास, फीका होता मोदी मैजिक
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने 195 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है

- राहुल लाल
पिछले चुनाव तक बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर किसी भी उम्मीदवार को जीत दिलवाने का आत्मविश्वास रखती थी, लेकिन अब आत्मविश्वास खोती हुई बीजेपी स्टार कलाकारों पर निर्भर होती जा रही है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के कारण दिल्ली में बीजेपी के 5 उम्मीदवारों में से केवल एक वर्तमान सांसद मनोज तिवारी को टिकट मिल पाया, शेष 4 वर्तमान सांसदों का टिकट कट गया।
लोकसभा चुनाव 2024 के लिए बीजेपी ने 195 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। इस सूची से ही बीजेपी की कई गंभीर कमियां और विपक्ष की मजबूती दिखने लगी है। प्रथम सूची जारी होते ही आसनसोल से बीजेपी उम्मीदवार पवन सिंह ने चुनाव पूर्व ही हार स्वीकार करते हुए अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। इस घटना के अगले दिन ही उत्तर प्रदेश के बाराबंकी सांसद उपेंद्र रावत ने भी एक तथाकथित वीडियो वायरल होने के बाद अपना टिकट वापस कर दिया। इस तरह अब 195 उम्मीदवारों में से 193 बीजेपी प्रत्याशी मैदान में हैं। इस टिकट वितरण से यह भी स्पष्ट हो गया कि बीजेपी उत्तर प्रदेश में बुरी तरह फंसी हुई है। बीजेपी ने यहां 51 उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिसमें सभी वर्तमान बीजेपी सांसदों को पुन: टिकट दे दिया गया, केवल 4 हारे हुए स्थानों पर टिकट बदला गया। जबकि दूसरे राज्यों में कई वर्तमान सांसदों के टिकटों को भी काटा गया।
बीजेपी ने टिकट वितरण से पूर्व कई मापदंडों की बात कही थी,जिसमें सर्वप्रथम चर्चित मापदंड उम्र से संबंधित था। उम्र के आधार पर ही बीजेपी में कई वरिष्ठ नेताओं को शानदार प्रदर्शन के बावजूद मार्गदर्शन मंडल में भेजा जा रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश में यह मापदंड भी लागू नहीं हुआ। उदाहरण के लिए गुजरात के बनासकांठा सीट और उत्तर प्रदेश के मथुरा सीट की तुलना करके देखा जाए। बनासकांठा में वर्तमान बीजेपी सांसद परबत पटेल की उम्र 75 वर्ष थी और उनकी टिकट काटी गई।
सांसद परबत पटेल का प्रदर्शन भी अच्छा था। वहीं दूसरी ओर मथुरा सीट पर बीजेपी सांसद हेमा मालिनी की उम्र भी 75 वर्ष है। पिछले 10 वर्षों में जनता से उनका संवाद भी नहीं के बराबर रहा। वे अधिकांशत: मुंबई रही। इस तरह परबत पटेल की तुलना में उनका प्रदर्शन भी खराब रहा, फिर भी उनका टिकट नहीं कटा। डुमरियागंज के बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल भी 74 वर्ष के हो चुके हैं। फिर भी उनका टिकट नहीं कटा। वहीं बनासकांठा में बीजेपी ने परबत पटेल का टिकट काटकर रेखा बेन चौधरी को टिकट दिया। ज्ञात हो रेखा बेन चौधरी पहली बार चुनाव लड़ रही हैं। स्पष्ट है कि गुजरात में टिकट वितरण में बीजेपी जोखिम उठाने से पीछे नहीं हट रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी डरी हुई दिखाई दे रही है, जिससे वह कोई भी जोखिम नहीं ले रही है।
उत्तर प्रदेश को बीजेपी अपना गढ़ बताया करती है, लेकिन अब उसी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के आत्मविश्वास में भारी कमी दिख रही है। आत्मविश्वास की कमी के कारण वह अपने विवादास्पद सांसदों का टिकट भी नहीं काट पा रही। बीजेपी का दावा है कि वह उम्मीदवारों को टिकट देने से पहले अलग-अलग तीन-तीन एजेंसियों से सर्वें करा रही है और नमो एप पर भी आंकड़ों का विश्लेषण कर टिकट दे रही है। इन सबके बावजूद बाराबंकी से सांसद उपेंद्र रावत को पुन: उम्मीदवार कैसे बना लिया गया था? उनके तथाकथित वायरल वीडियो से पूर्व भी वे लगातार विवादों में रहे हैं। अधिकारियों के साथ गालीगलौज और मारपीट की धमकी वाले उनके ऑडियो हमेशा वायरल होते रहे हैं, फिर भी इनके उम्मीदवारी पर कोई असर नहीं पड़ा। अंतत: बीजेपी को अब बाराबंकी सीट पर इस शर्मनाक स्थिति को झेलना पड़ रहा है।
बीजेपी उत्तर प्रदेश में यंू तो 80 सीट जीतने का दावा कर रही थी, लेकिन इतने भारी दबाव में है कि काफी खराब प्रदर्शन करने वाले सांसदों को भी पुन: उम्मीदवार बनाने के लिए बाध्य हो गई। इस संदर्भ में उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश के सलेमपुर लोकसभा सीट और झारखंड के लोहरदग्गा सीट की तुलना काफी रोचक है। बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के सलेमपुर में बीजेपी सांसद रवींद्र कुशवाहा को पुन: उम्मीदवार बनाया है, जबकि क्षेत्र में उनके अत्यंत खराब प्रदर्शन से लोग काफी नाराज हैं। प्राय: सत्ता विरोधी रूझान को कम करने के लिए ऐसे स्थानों पर उम्मीदवार बदल दिया जाता है। वहीं झारखंड के लोहरदग्गा सीट पर बीजेपी सांसद सुदर्शन भगत तीन बार से सांसद थे।
सुदर्शन भगत जातीय समीकरण के आधार पर भी मजबूत थे, लेकिन सर्वे रिपोर्ट में उनके प्रति थोड़ी नाराजगी दिखते ही बीजेपी ने उनका टिकट काट कर सुदर्शन उरांव को टिकट दे दिया। इस तरह भारी नाराजगी के बावजूद सलेमपुर में रवींद्र कुशवाहा का टिकट बरकरार रहा, जबकि झारखंड के लोहरदग्गा सीट पर सुदर्शन भगत का टिकट कट गया। सलेमपुर सांसद रवींद्र कुशवाहा का एक बयान यूं भी काफी चर्चा में रहा था कि मैं 2 बार सांसद रहा हूं, जबकि मेरे पिताजी 4 बार के सांसद रहे हैं, फिर भी मेरे घर के सामने का टंकी चालू नहीं हो पाया है। इस बयान से ही सांसद महोदय के रिपोर्ट कार्ड को समझा जा सकता है। सलेमपुर सीट पर 'इंडिया' गठबंधन ने अभी प्रत्याशी नहीं उतारा है, लेकिन इसके पहले ही बीजेपी इस सीट पर अभी ही हारती नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश में डरी हुई बीजेपी इस तरह के उम्मीदवारों की टिकट देकर अपने सीटों की संख्या स्वयं घटा रही है। इसी तरह जौनपुर सीट पर बीजेपी ने कृपाशंकर सिंह को टिकट दिया है, जो पहले कांग्रेस में थे और महाराष्ट्र में कांग्रेस नेता के रूप में गृह राज्य मंत्री रह चुके हैं। यहां से धनंजय सिंह बीजेपी के टिकट के लिए प्रयत्नशील थे, लेकिन उन्हें यह टिकट नहीं दिया गया । तब उन्होंने बीजेपी के विरुद्ध ही विरोध का बिगुल फूंक दिया। लेकिन इसी समय (6 मार्च) उन्हें एमपी एमएलए कोर्ट ने 7 वर्ष की सजा सुना दी, फलत: धनंजय सिंह चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हो गए। इस घटनाक्रम से उत्तर प्रदेश के ठाकुर समुदाय में बीजेपी के प्रति नाराजगी दिख रही है। यहां भी अभी गठबंधन के तरफ से उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया है, फिर भी मुकाबले से पहले ही बीजेपी गलत उम्मीदवार के चयन के कारण कमजोर दिख रही है।
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से एक बार पुन: गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को टिकट दिया गया है। बीजेपी के इस कदम से किसान आक्रोश में हैं। टेनी के टिकट को किसान जले पर नमक छिड़कने के रूप में देखते हैं। अजय मिश्र टेनी के टिकट ने 2021 में किसानों को थार से रौंदने के घटनाक्रम के जख्म को फिर से ताजा कर दिया है। एक तरफ केंद्र की सरकार कह रही है कि हम किसानों की मांगों के प्रति हमदर्दी रखते हैं, जबकि दूसरी तरफ अजय मिश्र टेनी को टिकट दे दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश के डबल इंजन में अब तक का विश्लेषण कुछ सामान्य सीटों का था। लेकिन अगर उत्तर प्रदेश के हाईप्रोफाइल सीट अमेठी का विश्लेषण किया जाए, तो यहां भी बीजेपी की उम्मीदवार केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी काफी कमजोर नजर आ रही हैं। अभी कांग्रेस ने अमेठी से उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है, लेकिन खबर है कि राहुल गांधी, अमेठी और वायनाड दोनों जगहों से चुनाव लड़ेंगे।
2019 में राहुल गांधी कांटे के मुकाबले में 55 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। अमेठी में 5 विधानसभा है। इनमें तीन सीटों पर बीजेपी का कब्जा है, जबकि दो सीटें समाजवादी पार्टी ने जीती थी। हालांकि, हाल में हुए राज्यसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के दोनों विधायक बीजेपी के पक्ष में दिखे। इस तरह अब कागज पर अमेठी के सभी 5 सीटों पर बीजेपी का प्रभाव है। परंतु अमेठी की जमीनी स्थिति बिल्कुल अलग है। लोग 2019 में स्मृति ईरानी को वोट देकर दुखी हैं।
अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1967 में बना था, तभी से यह सीट कांग्रेस, विशेषकर गांधी परिवार का गढ़ रहा है। स्मृति ईरानी ने वहां 13 रुपया किलो चीनी और 400 रुपया प्रति सिलेंडर का वादा किया था। अब जनता उनसे सवाल पूछ रही है कि कहां है 13 रुपया में चीनी और 400 वाली सिलेंडर? महंगाई और बेरोजगारी के बीच राहुल गांधी को लोग याद कर रहे हैं। अगर राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़ते हैं, तो स्मृति ईरानी के लिए के लिए जीत संभव नहीं है। बीजेपी देश में 400 पार का नारा दे रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में ही 30-40 सीटों के नुकसान में दिख रही है।
पिछले चुनाव तक बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर किसी भी उम्मीदवार को जीत दिलवाने का आत्मविश्वास रखती थी, लेकिन अब आत्मविश्वास खोती हुई बीजेपी स्टार कलाकारों पर निर्भर होती जा रही है। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन के कारण दिल्ली में बीजेपी के 5 उम्मीदवारों में से केवल एक वर्तमान सांसद मनोज तिवारी को टिकट मिल पाया, शेष 4 वर्तमान सांसदों का टिकट कट गया। दिल्ली में गौतम गंभीर ने पहले ही चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। इसके अतिरिक्त दिल्ली में बीजेपी सांसद हंसराज हंस का टिकट कटना तय माना जा रहा है। इस तरह बीजेपी ने दिल्ली के 7 सीटों में केवल मनोज तिवारी को टिकट दिया है, वह भी उनके भोजपुरी स्टारडम के कारण। वहीं तमाम कमियों के बावजूद हेमा मालिनी को भी पुन: टिकट मिलने का कारण उनका स्टारडम ही रहा है। ऐसा लगता है कि अब बीजेपी को प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर जीतने की संभावना कम है, इसलिए प्रसिद्ध सेलिब्रिटी से ही उनका सहारा बचा है। बीजेपी उम्मीदवारों के टिकट वितरण से स्पष्ट हो चुका है कि मोदी मैजिक फीका पड़ गया है।
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार व आर्थिक मामलों के जानकार हैं)


