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मप्र के घटनाक्रम से भाजपा हाईकमान नाराज, रिपोर्ट तलब

भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई में 'दरार' नजर आने से पार्टी हाईकमान नाराज है। विधानसभा में एक विधेयक पर मत विभाजन के दौरान भाजपा के दो विधायकों का सत्ता के पक्ष में चले जाना हाईकमान पर नागवार गुजरा है

मप्र के घटनाक्रम से भाजपा हाईकमान नाराज, रिपोर्ट तलब
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भोपाल। भाजपा की मध्यप्रदेश इकाई में 'दरार' नजर आने से पार्टी हाईकमान नाराज है। विधानसभा में एक विधेयक पर मत विभाजन के दौरान भाजपा के दो विधायकों का सत्ता के पक्ष में चले जाना हाईकमान पर नागवार गुजरा है। हाईकमान ने पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट तलब की है और बड़े नेताओं को दिल्ली बुलाया है। दूसरी तरफ, पार्टी की ओर से 'डैमेज कंट्रोल' की कोशिशें तेज कर दी गई हैं। कर्नाटक के ताजा राजनीतिक घटनाक्रम के बाद भाजपा की नजर मध्यप्रदेश पर थी। विपक्षी पार्टी की राज्य इकाई के नेता कमलनाथ सरकार के भविष्य पर सवाल तक उठाने लगे थे। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव विधानसभा के भीतर एक दिन भी सरकार न चलने देने का दावा तक कर डाला था। इसके बाद घटनाक्रम इतनी तेज से बदला कि कुछ ही घंटों बाद भाजपा बैकफुट पर आ गई। सरकार ने दंड विधि संशोधन विधेयक पर जब मत विभाजन कराया तो भाजपा के दो विधायकों- नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने विधेयक के पक्ष में वोट कर सबको चौंका दिया। इससे बाहर यह संदेश गया कि पार्टी के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने 24 जुलाई को विधानसभा में मत विभाजन के दौरान हुए घटनाक्रम पर सख्त नाराजगी जताते हुए रिपोर्ट तलब की है और वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली तलब किया गया है।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि हाईकमान की पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह से बात हुई है। पार्टी के भीतर सवाल उठा रहा है कि जब सत्ताधारी कांग्रेस की ओर से भाजपा में तोड़फोड़ की कोशिश की जा रही थी, उस समय पार्टी संगठन इस बात से अनजान कैसे रहा।

पूर्व भाजपा सांसद रघुनंदन शर्मा का तो यहां तक कहना है कि पार्टी संगठन के कुछ लोगों ने पार्टी पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की और ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल कर लिया, जिनका पार्टी की नीति-रीति और सिद्धांत से कोई लेना-देना नहीं था। उनका कहना है कि आज जो हालात बने हैं, इसकी यही वजह है।

राज्य में कांग्रेस सरकार को पूर्ण बहुमत न होने के कारण भाजपा उस पर लगातार हमला कर रही थी और कांग्रेस के भीतर कमजोर कड़ी खोजी जा रही थी, मगर हुआ उलटा। दो विधायकों का विधानसभा में साथ छोड़ना पार्टी के लिए बड़े आघात के तौर पर देखा जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि कुछ और विधायकों में पार्टी के प्रति असंतोष है।

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं को उन विधायकों से सीधे संवाद करने को कहा गया है जो कांग्रेस के संपर्क में हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि कुछ और विधायक कांग्रेस के संपर्क में हैं और आने वाले दिनों में कोई बड़ा फैसला भी ले सकते हैं।

दरअसल, भाजपा की चिंता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक संजय पाठक गुरुवार को मंत्रालय में नजर आए और चर्चा यह होने लगी कि पाठक की कमलनाथ से मुलाकात हुई है। हलांकि बाद में पाठक ने इसका खंडन किया।

पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाजपा राज्य संगठन और विधायक दल में विधानसभा सत्र के दौरान नजर आई कमजोरी से भी हाईकमान नाराज है। सवाल उठ रहा है कि विधानसभा सत्र के दौरान 20 से ज्यादा विधायक नदारद क्यों रहे, कांग्रेस सरकार को पूर्ण बहुमत नहीं है, तब मत विभाजन के दिन व्हिप क्यों नहीं जारी की गई।

राज्य की 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 114 विधायक हैं, उसे चार निर्दलीय, दो बसपा के और एक सपा के विधायक का समर्थन हासिल है। विपक्षी भाजपा के 108 विधायक हैं और एक पद रिक्त है।

बीते बुधवार को कांग्रेस की ताकत उस समय और बढ़ गई, जब दंड विधि संशोधन विधेयक पर हुए मत विभाजन के दौरान 122 विधायकों ने विधेयक का समर्थन किया। समर्थन करने वालों में भाजपा के दो विधायक शामिल रहे। पार्टी हाईकमान की नाराजगी का यही अहम वजह है।


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