Top
Begin typing your search above and press return to search.

भाजपा फिर मंदिर भुनाने की राह चली

संघ-भाजपा के अयोध्या के राम मंदिर को चुनाव में भुनाने के उद्यम का, एक और चक्र शुरू हो गया है

भाजपा फिर मंदिर भुनाने की राह चली
X

- राजेन्द्र शर्मा

संघ-भाजपा जोड़ी का इस तरह सांप्रदायिक धु्रवीकरण के अपने जाने-पहचाने हथियार के लिए लपकना, उसके संकट को ही दिखाता है। उनका सबसे बड़ा संकट यह है कि मोदी के चेहरे के साथ, उनका यह सबसे धारदार हथियार भी, बार-बार के इस्तेमाल से और जनमानस के प्रतिरोध की बढ़ती कठोरता के चलते, ज्यादा से ज्यादा भोंथरा होता जा रहा है।

संघ-भाजपा के अयोध्या के राम मंदिर को चुनाव में भुनाने के उद्यम का, एक और चक्र शुरू हो गया है। इसी महीने होने जा रहे मध्य प्रदेश के चुनाव अभियान में तो नामजदगी के पर्चे भरे जाने की आखिरी तारीख से पहले ही, राममंदिर की बाकायदा एंट्री हो चुकी थी। राज्य के विभिन्न हिस्सों में भाजपा ने बड़ी-बड़ी होर्डिंगें लगाकर, न सिर्फ 'भव्य राम मंदिर बनकर हो रहा तैयार' की याद दिलाई है बल्कि इसके श्रेय पर भाजपा के दावे की ओर खुला इशारा करते हुए, उसके साथ 'फिर एक बार भाजपा सरकार' की तुक जोड़ने की भी कोशिश की है। होर्डिंग पर अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर की विशाल तस्वीर के साथ ही, एक ओर प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी सी तस्वीर है और दूसरी ओर, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डïा को बीच में रखते हुए, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत, भाजपा के प्राय: सभी शीर्ष नेताओं को तस्वीर में जगह दी गई है।

कांग्रेस पार्टी ने चुनाव के लिए धार्मिक अपील का सहारा लिए जाने का मामला होने को रेखांकित करते हुए, चुनाव आयोग से इसकी शिकायत की है। यह शिकायत खासतौर पर तब की गई, जब इस होर्डिंग का इस्तेमाल इंदौर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की एक चुनाव सभा में किया गया, जो राज्य के शीर्ष भाजपा नेताओं में से एक, कैलाश विजयवर्गीय के पक्ष में प्रचार के लिए आयोजित की गई थी। वैसे यह भी हैरानी की बात नहीं है कि उक्त शिकायत के कई दिन बाद, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, चुनाव आयोग के इस शिकायत पर किसी तरह से हरकत में आने की कोई खबर नहीं आई थी। इस मामले में अपने बचाव की उनकी दलील यही थी कि भाजपा की राम और उनके मंदिर में आस्था है और उनके अपनी इस आस्था का प्रदर्शन करने का विरोध करने वाले, राम और राम मंदिर के विरोधी हैं, उसके बनने का विरोध करते आए हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, बीडी शर्मा ने न सिर्फ यह दलील पेश कि हम रामभक्त हैं, राम के मंदिर की तस्वीर क्यों नहीं लगाएंगे, बल्कि उन्होंने खास संघी शैली में विपक्ष के लिए कहा कि दूसरे चाहें तो, बाबर की तस्वीर लगा सकते हैं!

इससे कोई यह नहीं समझे कि यह कोशिश भाजपा के मध्य प्रदेश के नेताओं तक ही सीमित हो सकती है। इसी क्रम में, मोदी की भाजपा में दो-नंबर के आसन पर सवार माने जाने वाले, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश में ही उज्जैन में अपनी प्रचार सभा में खुलकर राम मंदिर बनने के श्रेय का दावा किया। शाह ने राहुल गांधी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वह उन्हें मंदिर के उद्ïघाटन की तारीख बताने आए हैं। कांग्रेसी व्यंग्य से उनसे कहा करते थे कि 'ये मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे'; अब तारीख बता रहे हैं—22 जनवरी 2024। शाह ने अपने भाषण में बार-बार इसका दावा किया कि उनकी पार्टी के विरोधियों, खासतौर पर कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर को नहीं बनने देने की सभी संभव कोशिशें की थीं। यानी न सिर्फ भाजपा के पक्ष में वोट को, राम मंदिर के लिए वोट बताया जा रहा था बल्कि कांग्रेेस या अन्य विपक्षी पार्टियों के लिए वोट को, राम मंदिर के खिलाफ वोट भी बताया जा रहा था।

याद रहे कि इस पूरे सिलसिले की शुरूआत और किसी ने नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव प्रचार के वर्तमान चक्र की शुरूआत से पहले, चित्रकूट का दौरा किया और इस दौरे के क्रम में इसका विस्तार से बखान किया कि किस तरह, उन्हें 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठïा के अवसर पर उपस्थित रहने के लिए निमंत्रित किया गया है और किस तरह इस निमंत्रण से वह धन्य महसूस कर रहे हैं, आदि आदि। यह संघ-भाजपा के लिए इसका स्पष्टï संकेत था कि राम मंदिर की शुभारंभ की तारीख की घोषणा के बहाने से, अयोध्या मंदिर के मुद्दे को भुनाने के एक और चक्र में जुट जाएं। बहुत से टिप्पणीकारों के अनुमान के विपरीत, जिन्हें लग रहा था कि अंतत: राम मंदिर के शुरू होने को नरेंद्र मोदी की भाजपा द्वारा अगले आम चुनाव में ही भुनाने की कोशिश की जाएगी, नरेंद्र मोदी ने चित्रकूट से इसका स्पष्टï संकेत दे दिया कि विधानसभाई चुनाव के मौजूदा चक्र से ही इसे भुनाना शुरू कर दिया जाए। उन्हें लगा होगा कि इसे भुनाना लोकसभा चुनाव के लिए ही उठा रखना, समझदारी नहीं नासमझी का मामला भी साबित हो सकता है। नरेंद्र मोदी वैसे भी, चुनावी-राजनीतिक लड़ाई में, वैध-अवैध कोई भी हथियार, उठा रखने में विश्वास नहीं रखते हैं; फिर विधानसभा चुनावों का वर्तमान चक्र तो वैसे भी उनके ही चेहरे पर लड़े जाने के बावजूद, काफी कठिन दिखाई दे रहा है।

वर्तमान चुनावों में संघ-भाजपा का सांप्रदायिक अपील तथा धु्रवीकरण का सहारा लेना, न तो राम मंदिर की अपील तक ही सीमित रहने जा रहा है और न ही सिर्फ मध्य प्रदेश तक सीमित रहने जा रहा है। राजस्थान में खुद प्रधानमंत्री मोदी, उदयपुर के कन्हैयालाल टेलर की हत्या की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का सांप्रदायिक संदेशों के लिए इस्तेमाल कर, संघ-भाजपा की कतारों को सांप्रदायिक धु्रवीकरण का सहारा लेने के लिए, नामजदगी के पर्चे भरे जाने से पहले से ही प्रेरित कर आए थे। उधर कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में, सांप्रदायिक धु्रवीकरण के खुले खेल के लिए उनकी पार्टी ने, अपने सबसे नंगई से सांप्रदायिक प्रचार करने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक, हिमंत विस्वा शर्मा को उतार दिया, जिसने राज्य के इकलौते मुस्लिम मंत्री को नाम लेकर हमले का निशाना बनाया। बेशक, यह सिलसिला चुनाव के इस चक्र में शामिल तीन हिंदीभाषी राज्यों तक भी सीमित नहीं रहा है।

तेलंगाना में भी, हालांकि भाजपा के गुब्बारे की हवा उम्मीदवारों के नामों की घोषणा से पहले ही निकल चुकी थी, भाजपा ने अपने निवर्तमान विधायक, टी राजासिंह का निलंबन खत्म कर, उसे बड़ी तत्परता से चुनाव में उतार दिया है। सांप्रदायिक बदजुबानी और उकसावे भरे भाषणों व हरकतों के लिए ही कुख्यात, पांच साल पहले हुए विधानसभाई चुनाव में जीते अपने इस इकलौते विधायक को, पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ भड़काऊ टिप्पणी करने के बाद, भाजपा को निलंबित करना पड़ा था। तेलंगाना में भाजपा, ओवैसी की पार्टी एमआईएम के 'जवाब' के ही तौर पर आम तौर पर अपनी प्रासंगिकता साबित करने की ही कोशिश नहीं कर रही है, उसने इसका भी ऐलान किया है कि सत्ता में आते ही वह पहला काम, अन्य पिछड़े वर्ग के हिस्से के तौर पर, राज्य में पिछड़े मुसलमानों को हासिल मामूली आरक्षण खत्म करने का ही करेगी!

इसी बीच संघ-भाजपा की सांप्रदायिक सेनाएं, आतंकवाद विरोध की पाखंडपूर्ण मुद्रा के साथ, खून-खराबे भरे इस्राइल-फिलिस्तीनी टकराव का भी, जहां तक संभव हो इस्तेमाल करने में जुट गई हैं। इस्राइल द्वारा गाज़ा में फिलिस्तीनियों के नरसंहार को बढ़-चढ़कर समर्थन देने के जरिए, संघ-भाजपा की पक्की मुस्लिमविरोधी छवि को ही और चमकाने की कोशिश की जा रही है, ताकि सांप्रदायिक धु्रवीकरण की ओट में आम देशवासियों की बदहाली के सभी वास्तविक सवालों को दबाया जा सके। इसके बाद भी अगर कोई कसर रह गई थी तो वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सरदार पटेल के जयंती के मौके पर किए गए इस ऐलान से पूरी हो जानी चाहिए कि 'तुष्टïीकरण ही देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है।' विपक्ष को निशाना बनाने के लिए, प्रधानमंत्री किस तरह तुष्टिकरण के रास्ते उसे आतंकवाद तथा राष्टï्रविरोध से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, यह अलग से चर्चा की मांग करता है। बहरहाल, तुष्टिकरण और आतंकवाद को समानार्थी बनाने के जरिए, हमास संबंधी अति-प्रचार की पृष्ठïभूमि में किस तरह वह, मुसलमान और आतंकवाद को साथ-साथ रख देते हैं, यह समझना भी मुश्किल नहीं है। सभी जानते हैं कि संघ-भाजपा की शब्दावली में 'तुष्टिकरण' का एक ही अर्थ है—मुस्लिम विरोध! तुष्टïीकरण के खतरे का अर्थ है, मुसलमानों का खतरा! यह खेल, अगले कुछ हफ्तों में और नंगई से खेला जाएगा।

बहरहाल, संघ-भाजपा जोड़ी का इस तरह सांप्रदायिक धु्रवीकरण के अपने जाने-पहचाने हथियार के लिए लपकना, उसके संकट को ही दिखाता है। उनका सबसे बड़ा संकट यह है कि मोदी के चेहरे के साथ, उनका यह सबसे धारदार हथियार भी, बार-बार के इस्तेमाल से और जनमानस के प्रतिरोध की बढ़ती कठोरता के चलते, ज्यादा से ज्यादा भोंथरा होता जा रहा है।
(लेखक साप्ताहिक पत्रिका लोक लहर के संपादक हैं।)


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it