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जन्मदिन का जश्न और परेशान जनता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार 17 सितम्बर को अपना 73 वां जन्मदिन बनाया

जन्मदिन का जश्न और परेशान जनता
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार 17 सितम्बर को अपना 73 वां जन्मदिन बनाया। उनके पिछले जन्मदिन पर अफ्रीका से लाए गए 8 चीते मध्यप्रदेश के कूनो में छोड़े गए थे। हरेक चीते को लाने में 3 हजार डॉलर का खर्च आया। बाद में दूसरी खेप में भी चीते आए, लेकिन साल भर के भीतर एक के बाद एक चीतों की मौत पर अब चिंता का आलम है।

चीतों को लाने की योजना बरसों से बनी हुई है और उस पर अब अमल किया गया। हो सकता है इस फैसले को पूरी तरह से जांचा-परखा नहीं गया, तभी तो शायद चीतों को जिंदा रहने के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिला। चीते अगर 17 सितंबर की जगह किसी और तारीख को भी आते, तब भी उनका यही अंजाम होता। मगर प्रधानमंत्री इस मौके को अपने जन्मदिन पर भुनाने का मोह संवरण नहीं कर सके। उन्हें हर हाल में प्रचार चाहिए, फिर चाहे वो चीतों से हो या कन्वेंशन सेंटर के उद्घाटन से। दरअसल इस साल प्रधानमंत्री ने 17 सितंबर को दिल्ली के द्वारका में बने यशोभूमि कन्वेंशन सेंटर का उद्घाटन किया। बताया जा रहा है कि इस सेंटर में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की मीटिंग, कांफ्रेंस, ट्रेड शो आदि के आयोजन के लिए विश्व स्तरीय सुविधाएं मिलेंगी। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने 30 हजार करोड़ की विश्वकर्मा योजना की शुरुआत की। ब

ताया जा रहा है कि इससे पारंपरिक शिल्प और कारीगरी से जुड़े 30 लाख परिवारों को मदद मिलेगी। साथ ही श्री मोदी ने एक नए मेट्रो स्टेशन का भी उद्घाटन किया। दिल्ली मेट्रो में सफर करते हुए आम यात्रियों के साथ उनकी सेल्फी वाली कई तस्वीरें भी सामने आई हैं।

इससे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह के लिए भी प्रधानमंत्री ने अचानक मेट्रो से सफर किया था। खाली स्टेशन पर स्वचालित सीढ़ियों से अकेले उतरते श्री मोदी की तस्वीरें बहुत से लोगों को याद होंगी। अगले साल चुनाव होने वाले हैं और पिछले 9 सालों में चाय वाला, गरीब का बेटा और फकीर की चक्की खूब पीसी गई है, अब उससे और ज्यादा हासिल नहीं किया जा सकता, इसलिए खुद को आम आदमी जैसा दिखाने या बताने के लिए शायद प्रधानमंत्री अपनी महंगी गाड़ी की जगह मेट्रो में कभी-कभार दिखाई दे रहे हैं। ये शायद राहुल गांधी से मिल रही अघोषित चुनौती का असर भी हो सकता है। क्योंकि राहुल गांधी पिछले दिनों आम लोगों के बीच उन्हीं की तरह सवारी करते हुए पहुंच रहे हैं। भाजपा समर्थक अगर मोदी को महानायक बताने में लगे हैं तो राहुल गांधी के लिए जननायक जैसी पदवी गढ़ी जा चुकी है। लोकतंत्र के लिए जननायक की ही जरूरत होती है, महानायक की नहीं। बहरहाल, श्री मोदी प्रधानमंत्री हैं, तो उनके लिए यह सुरक्षा कारणों से संभव नहीं है कि वे ट्रक में या किसी स्कूटी के पीछे बिठाई दें। वैसे भी उन्हें विरोध से कितना डर लगता है इसका नमूना पिछले पंजाब चुनाव में दिख ही गया था, जब वे जरा से विरोध के कारण अपनी रैली रद्द करवा कर वापस लौट गए थे और साथ में संदेश दे दिया था कि मैं जिंदा लौट आया।

श्री मोदी के जन्मदिन पर उनके लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना की जा रही है। ऐसी ही कामनाएं उन सैनिकों के परिजन भी करते होंगे जो सीमा पर तैनात होकर देश की रक्षा कर रहे हैं। ऐसे ही तीन अधिकारी अभी जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए। इधर अधिकारियों की शहादत हुई, उधर भाजपा कार्यालय में प्रधानमंत्री पर फूलों की बरसात कर इस बात के लिए उनका सत्कार किया गया कि उन्होंने जी-20 की सफल मेजबानी की। बड़ा नेता यानी महानायक तो वो होता है, जो ऐसे टीम वर्क का श्रेय खुद न लेकर अपने साथियों और छोटे से छोटे कर्मचारियों को दे।

भाजपा अगर उनका स्वागत करती, तो कोई सवाल नहीं उठते। लेकिन अधिकारियों की शहादत के मौके पर प्रधानमंत्री ने अपना स्वागत करवाया तो उन पर संवेदनहीन होने का आरोप लगा। ये आरोप भी मिट जाता, लेकिन फिर अगले ही दिन मध्यप्रदेश में प्रधानमंत्री ने फिर बड़े तामझाम के साथ सरकारी योजनाओं का उद्घाटन किया। उत्सवों का यह सिलसिला अब रोका जा सकता था, लेकिन रविवार को फिर करोड़ों का खर्च करके उद्घाटन जैसे कार्यक्रम हुए और प्रधानमंत्री सहर्ष इसमें शामिल हुए। वे चाहते तो कह सकते थे कि अभी हमारी माटी फिर शहीदों के खून से लाल हुई है, इसके दाग अभी छूटे नहीं हैं, इसलिए मैं अपना जन्मदिन नहीं मनाऊंगा। लेकिन श्री मोदी फिर चूक गए। उन्होंने शहीदों की याद में ही अपनी माटी, अपना देश कार्यक्रम पिछले महीने शुरु किया और इतनी जल्दी उस कार्यक्रम पर मिट्टी डाल दी।

प्रधानमंत्री के जन्मदिन से दो दिन पहले हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का जन्मदिन था, जिस पर उन्होंने साफ कह दिया था कि वे शहीदों की याद में कोई जश्न नहीं करेंगे, सादगी से जन्मदिन मनाएंगे। किसान आंदोलन के वक्त 3 जनवरी 2021 को दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी अपने जन्मदिन का जश्न रद्द किया था कि किसान कड़कती ठंड में खुले आसमान के नीचे बैठे हैं, शहीद हो रहे हैं, तो मैं जन्मदिन कैसे मनाऊं। गलवान में भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद राहुल गांधी ने भी अपना जन्मदिन नहीं मनाया था। ऐसी अनेक मिसालें देखी जा सकती हैं। लेकिन श्री मोदी आत्ममुग्धता और प्रचार की नयी मिसालें गढ़ने में लगे हुए हैं।

जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए मेजर आशीष धौंचक के परिजनों ने सरकार से सेना के लिए बुलेटप्रुफ वर्दी की मांग की है, क्योंकि दो गोलियां लगने के बावजूद आतंकियों से भिड़ने वाले मेजर धौंचक की मौत इसलिए हुई, क्योंकि उनके पास बुलेटप्रुफ वर्दी नहीं थी। क्यों नहीं थी, इसका कारण सरकार और सेना ही बता सकती है। अगर वित्तीय समस्या के कारण हमारे सैनिक कम संसाधनों के साथ मोर्चे पर तैनात हैं, तो फिर सवाल उठता है कि सरकार की प्राथमिकता क्या है, विश्व स्तरीय सम्मेलन कक्ष या फिर सैनिकों के लिए बुलेट पु्रफ वर्दी। एक खबर और आई है कि इसरो के चंद्रयान अभियान के लिए लॉंच पैड बनाने वाले 2,800 कर्मचारियों को बीते 18 महीने से वेतन नहीं मिला है। रांची के धुर्वा स्थित हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचईसी) के अधिकतर कर्मचारी वेतन न मिलने से फाकाकशी को मजबूर हो चुके हैं। बीबीसी की खबर है कि कर्ज में डूबे कई कर्मचारी चाय या इडली बेचकर अपना गुजारा कर रहे हैं। एचईसी केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रम है, और भारी कर्ज में है। पिछले पांच सालों से लगातार घाटे में है। लेकिन सरकार को न घाटे की परवाह है, न आर्थिक दिक्कतें झेल रहे कर्मचारियों की।
प्रधानमंत्री अगर अपने जन्मदिन पर देश के परेशान लोगों की सुध लेते, तो शायद इससे सही संदेश जनता में जाता।


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