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4 सालों से बैगाओं को नहीं बांटे चूजे

बिलासपुर ! आदिवासियों की संस्कृति एवं जीवन शैली में मुर्गे-मुर्गियों का एक विशिष्ट स्थान तो है साथ ही आदिवासी परिवारों के लिए यह नियमित आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत भी है।

4 सालों से बैगाओं को नहीं बांटे चूजे
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इकलौती हैचरी को 7 जिलों में आपूर्ति का जिम्मा

जिले में 480 बैगा आदिवासी परिवार
बिलासपुर ! आदिवासियों की संस्कृति एवं जीवन शैली में मुर्गे-मुर्गियों का एक विशिष्ट स्थान तो है साथ ही आदिवासी परिवारों के लिए यह नियमित आय का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत भी है। ग्रामीण परिवार बिना लागत एवं बहुत कम देखरेख पर अपनी बाड़ी में कुक्कुट पालन करते हंै। अनुसूचित जनजाति वर्ग के परिवारों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए प्रतिवर्ष चूजे वितरित किए जाते हैं लेकिन पिछले 4 वर्ष से जिले में चूजों का वितरण नहीं हो सका है। इस तरह 480 बैगा आदिवासियों परिवारों को चूजों का वितरण नहीं किया जा सका है। हालांकि बेलगहना गौरेला व तखतपुर में ही ज्यादातर बैगा आदिवासियों परिवारों की बसाहट है।
आदिवासी उपयोजना के तहत बैगा आदिवासी परिवारों को कुक्कुट पालन के लिए शासन द्वारा प्रतिवर्ष एक यूनिट में 55 चूजे देने का प्रावधान है इस तरह जिले के बेलगना, कोटा, गौरेला व तखतपुर के आसपास लगभग 480 बैगा आदिवासी परिवारों का बसाहट है जिन्हें प्रति परिवार के हिसाब से चूजे दिए जाने है लेकिन वर्ष 2014-15 से अब तक जिम्मेदार अधिकारियों का कहना है कि हमारे पास केवल एक ही हैचरी है और सात जिलों में चूजों की आपूर्ति की जाती है जैसे-जैसे आपूर्ति होती है चूजों का वितरण किया जाता है।
शासन के नियमानुसार हितग्राहियों की चयन प्रक्रिया भी कठिन है। कई बैगा परिवारों को शासन द्वारा चलाई गई इस योजना के बारे में ही पता नहीं रहता नियमत: वर्ष दो बार चूजों का वितरण किया जाना है सतत् निरीक्षण भी नहीं हो पाता कम उम्र के चूजे वितरण किए जाने से नुकसान भी होता है। हालांकि अब 28 दिनों के बजाए अब 2 माह के चूजों का वितरण के प्रयास किए जा रहे हैं। मुर्गी पालन में आदिवासियों को बाजार की समस्या भी है और वे इसे बिचौलियों के हाथों बेचने को विवश हो जाते हैं।
नस्लें और बीमारियां
विशेषज्ञों का मानना है कि वनाच्छादित क्षेत्रों में मुर्गी पालन काफी सफल है। हालांकि इनमें बीमारियां का प्रकोप जल्दी होता है साथ ही मुर्गियों की काफी अच्छी नस्लें भी है। जिनकी वजन 2-5 किलोग्राम तक होता है। मुख्य रुप से झुमरी, रानीखेत, चेचक, पाक्स सफेद दस्त, खूनी दस्त, कृमि सर्दी, आदि प्रमुख बीमारियां है जिसे सावधानी व इलाज से दूर किया जा सकता है। इसी के साथ मुख्य रुप से प्लाईमाउथ रॉक, रोड आईलैंड रेड, न्यूहैम्पशायर, और पिनाटन, कार्निश, ससेक्स, कोचिन, मिनॉर्काअसील प्रमुख है। जिनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।


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