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बिलासपुर जिले में तेजी से पांव पसार रहा मलेरिया

बिलासपुर ! जिले में मलेरिया के कीटनाशक दवा के छिडक़ाव के बाद भी सन् 2015 की तुलना में 700 मलेरिया के मरीज अभी तक बढ़ चुके है। 2015 में जिले में मलेरिया के 975 मरीज पाए गये थे।

बिलासपुर जिले में तेजी से पांव पसार रहा मलेरिया
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एक वर्ष में बढ़े 700 रोगी,मलेरिया विभाग कर रहा केवल खानापूर्ति
बिलासपुर ! जिले में मलेरिया के कीटनाशक दवा के छिडक़ाव के बाद भी सन् 2015 की तुलना में 700 मलेरिया के मरीज अभी तक बढ़ चुके है। 2015 में जिले में मलेरिया के 975 मरीज पाए गये थे। वहीं एक वर्ष में मलेरिया के कुल 1602 मरीज जिले में मिले हैं। इधर मलेरिया विभाग केवल खानापूर्ति में ही लगा हुआ है जबकि जिले के कई संवेदनशील क्षेत्र ऐसे हैं जहां मलेरिया से मौतें भी हुई हैं लेकिन विभाग इसे नकार रहा है। विभाग के चार साल के आंकड़ों के अनुसार मलेरिया के मरीजों की संख्या बढ़ गई है लेकिन विभाग के डाटा में एक भी मलेरिया से मौत के आंकड़े दर्ज नहीं है जबकि मरीजों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है।
बिलासपुर जिले के मरवाही, गौरेला, पेण्ड्रा व कोटा चारों संवेदनशील क्षेत्र है। जंगली क्षेत्र होने के कारण मलेरिया के मरीज इन जगहों पर ज्यादा है। मलेरिया विभाग द्वारा कागजों में डीडीटी का छिडक़ाव व ‘डोर टू डोर’ सर्वे चलाया जा रहा है। चार साल आंकड़ों में मरवाही में 1704 मलेरिया के मरीज मिले। वहीं गौरेला में 1,805 पेण्ड्रा में 338 तथा कोटा में 2694 मरीज पाये गये थे। यह चारो मलेरिया के लिए संवेदनशील क्षेत्र माने जाते हैं। इन क्षेत्रों में मलेरिया से ग्रसित मरीजों की मौत भी होती है। लेकिन स्वास्थ्य विभाग के डाटा में मौत के एक भी आंकड़े दर्ज नहीं है। जबकि साल दर साल मलेरिया के मरीज चारों ब्लाकों में बढ़ते जा रहे हैं।
मलेरिया के परजीवी का वाह मादा एनाफिलिस मच्छर है। इसके काटने पर मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं में प्रवेश करके बहुगुणित होते हैं जिससे रक्तहीनता एनीमिया के लक्षण उभरते हैं जैसे चक्कर आना, सांस फूलना, द्रुतनाड़ी आदि।
इसके अलावा बुखार, सर्दी, उबकाई और जुकाम होता है। ज्यादातर गंभीर मामलों में मरीज मुर्छित की अवस्था में चले जाते हैं जिससे मृत्यु भी हो सकती है। मलेरिया के फैलाव को रोकने के लिए कई उपाय किये जा सकते हैं। मच्छरदानी और कीड़े भगाने वाली दवाएं मच्छर काटने से बचाती है तो कीटनाशक दवा के छिडक़ाव तथा स्थित जल जिस पर मच्छर अण्डे देते हैं उसकी निकासी से मच्छरों का नियंत्रण किया जा सकता है।
मलेरिया से बचने के लिए निरोधक दवाएं लंबे समय तक लेनी पड़ती है। दवाएं इतनी महंगी होती है कि मलेरिया प्रभावित लोगों की पहुंच से अक्सर बाहर होती है।
2012 से नहीं बंटी मच्छरदानियां
संवेदनशील क्षेत्रों में मलेरिया को रोकने के लिए मच्छरदानियां सहायक होती है। लेकिन मलेरिया द्वारा 2012 से मच्छरदानियां नहीं बांटी गई है। विभाग का कहना है कि मलेरिया ग्रसित क्षेत्रों में जो मच्छरदानी बांटी जाती है वह वियतनाम से बनकर आती है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2012 में एक लाख 39 हजार मच्छरदानी बांटी गई थी। लेकिन पिछले 4 साल से संवेदनशील क्षेत्र मरवाही, पेण्ड्रा, गौरेला, कोंटा में मलेरिया विभाग द्वारा मच्छरदानियों का वितरण नहीं किया गया है जबकि हर साल शासन द्वारा सभी ब्लाकों व तहसीलों में मच्छरदानी बांटी जाती है।
मलेरिया पीडि़तों की संख्या में नहीं आई गिरावट
मलेरिया से प्रतिवर्ष 40 से 90 करोड़ बुखार के मामले सामने आते हैं। वहीं इससे 10 से 50 लाख तक मौतें हर साल होती है। जिसका सीधा अर्थ है प्रति 30 सेकेण्ड में एक मौत। इनमें से ज्यादातर पांच वर्ष से कम आयु वाले बच्चे होते हैं। वहीं गर्भवती महिलाएं की इस रोग के प्रति संवेदनशील होती है। संक्रमण रोकने तथा इलाज करने के प्रयासों के होते हुए भी 1992 के बाद इसके मामलों में अभी तक कोई गिरावट नहीं आई है। यदि मलेरिया की वर्तमान प्रसार दर ऐसा ही बना रहा तो अगले 20 वर्षों में मृत्यु दर दोगुनी हो सकती है। मलेरिया के बारे में वास्तविक आंकड़े अनुपलब्ध है। क्योंकि ज्यादातर रोगी ग्रामीण इलाकों में रहते हैं न तो वे चिकित्सालय जाते हैं और न उनके मामलों का लेखा-जोखा विभाग के पास रखा जाता है।
ये है आंकड़े
जिले में 2012 में 20,76 मरीज मलेरिया के मिले थे वहीं 2013 में 2589, 2014 में 1181 मरीज 2015 में 975 व 2016 में 1602 मलेरिया के मरीज पाये गये हैं। जिले में संवेदनशील क्षेत्रों में पीएफ प्लासमोडियम फेलिस्फोरम के 2012 में 1713, 2013 में 2403, 2014 में 999 व 2015 में 751 मरीज पाये गये वहीं पीवी प्लासमोडियम वाईवेक्स चार साल के डाटा में भी मलेरिया के मरीजों संख्या में इजाफा हुआ है।


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