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बिहार: गर्मी में किसानों की जिंदगी में 'ड्रैगन' ला रही खुशहाली

कोरोना के इस संक्रमण काल में भले ही अधिकांश लोगों को 'ड्रैगन' नाम से नफरत हो गई है, लेकिन इस गर्मी में 'ड्रैगन' बिहार के कई किसानों की जिंदगी में खुशहाली ला रही है।

बिहार: गर्मी में किसानों की जिंदगी में ड्रैगन ला रही खुशहाली
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किशनगंज | कोरोना के इस संक्रमण काल में भले ही अधिकांश लोगों को 'ड्रैगन' नाम से नफरत हो गई है, लेकिन इस गर्मी में 'ड्रैगन' बिहार के कई किसानों की जिंदगी में खुशहाली ला रही है। जी हां, हम बात कर रहे 'ड्रैगन' फ्रूट की खेती की, जिसमें अब बिहार के कई किसान भाग्य आजमा रहे हैं।

किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया के किसानों ने अब विकल्प के तौर पर ड्रैगन फ्रूट की खेती प्रारंभ कर दी है।

बिहार में ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत किशनगंज जिला के ठाकुरगंज प्रखंड में प्रगतिशील किसान नागराज नखत ने साल 2014 में ही की थी। अब नखत इस फ्रूट के बड़े उत्पादक बन गए हैं।

मूल रूप से मध्य अमेरिका का यह फल मैक्सिको, कम्बोडिया, थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, वियतनाम, इजरायल और श्रीलंका में उपजाया जाता है। चीन में इसकी सबसे बड़ी मांग होने के कारण इसे ड्रैगन फ्रूट कहा जाता है।

नागराज नखत ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट का औषधीय महत्व है। मेट्रो सिटी में यह 600 से 800 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है, जबकि स्थानीय बाजार में व्यापारी इसे 200 से 300 रुपये प्रति किलो की दर से खरीद रहे हैं।

इस खेती से उत्साहित किसान नखत कहते हैं, "आम तौर पर सिलीगुड़ी व देश के बड़े शहरो में बिकने वाला यह फल गुलाबी व पीले रंग का होता है जो मुख्य रूप से वियतनाम व थाइलैंड से मंगाया जाता है। ड्रैगन फ्रूट की खेती जैविक एवं प्राकृतिक तरीके से की जा रही है। इसमें रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं के बराबर होता है।"

ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत करने के संबंध में पूछे जाने पर नखत ने आईएएनएस को बताया, "2014 में वे सिंगापुर एक रिश्तेदार के यहां घूमने गए थे और वहीं इसके विषय में उन्हें जानकारी हुई थी। वहीं से 100 पौधे लाकर इसकी खेती प्रारंभ की और आज हम चार एकड़ में इसकी खेती कर रहे हैं और 2000 से ज्यादा पेड़ हैं।"

उन्होंने कहा कि पहली बार प्रति एकड़ लगभग 8 लाख रुपये के करीब लागत आती है, लेकिन दूसरे साल से यह घटकर एक चौथाई रह जाती है।

वे कहते हैं, "इसके एक फल का वजन 200 से 400 ग्राम तक होता है। ड्रैगन फ्रूट पूरी तरह ऑर्गेनिक है इस कारण इसका औषधीय और पादप गुण सुरक्षित रहता है।"

किशनगंज कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. हेमंत कुमार सिंह ने आईएएनएस को बताया, "सीमांचल ही नहीं बिहार की मिट्टी और जलवायु इसकी खेती के लिए बेहद उपयुक्त है। तीन सालों के बाद इसका पौधा पूरी तरह तैयार हो जाता और फल प्राप्त किया जा सकता है। फरवरी- मार्च से लेकर अक्टूबर,-नवंबर तक इसमें फूल और फल आते हैं। 36 दिनों में फूल फल के रूप में तैयार हो जाता है।"

कई लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा यदि यहां के किसानों को सहायता प्रदान करे तो यहां के किसानों के लिए ड्रैगन की खेती वरदान साबित होगी।

वैज्ञानिक सिंह कहते हैं, "प्रारंभ में इसकी खेती भले ही महंगी हो, लेकिन बाद में यह काफी लाभप्रद होता है। कैक्टस प्रजाति के इस पौधे के लतर के लिए सपोर्ट जरूरत होती है, जो क्रंक्रीट से बनाया जाता है।"

उन्होंने बताया कि ड्रैगन की तीन प्रजातियां हैं, लेकिन बिहार में सबसे अच्छी प्रजाति की खेती होती है।

उन्होंने इसे बहुबरसी बताते हुए कहा कि एक पौधे की आयु 20 से 25 साल होती है।

ड्रैगन फ्रूट में औषधीय गुण होते हैं। इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन-ए और कैलोरी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। कम उपलब्धता के कारण इसकी कीमत अधिक है। यह फल दिल की बीमारी, मोटापा कम करने में कारगर मानी जाती है।


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