क्या बिहार में सिर्फ वोटर बनकर रह जाएंगी महिलाएं
बिहार में महिलाओं के वोट तो सभी पार्टियों को चाहिए लेकिन उन्हें पर्याप्त मौके कोई पार्टी नहीं देना चाहती. बिहार विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम है

बिहार में महिलाओं के वोट तो सभी पार्टियों को चाहिए लेकिन उन्हें पर्याप्त मौके कोई पार्टी नहीं देना चाहती. बिहार विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या 10 फीसदी से भी कम है.
बिहार की राजनीति की बात होती है तो नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसे कई नाम जेहन में आते हैं. लेकिन इन नामों में बमुश्किल ही कोई नाम किसी महिला नेता का होता है. बिहार में आजादी से लेकर अब तक सिर्फ एक महिला मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ही हुई हैं, जो लालू यादव के जेल जाने के बाद राज्य की सीएम बनी थीं. यह बिहार की राजनीति में महिलाओं की स्थिति को दिखाता है.
इस बार के विधानसभा चुनावों में भी यही चलन आगे बढ़ता दिखा है. बिहार विधानसभा की 243 सीटों का प्रतिनिधित्व करने के लिए कुल 2,615 उम्मीदवारों ने नामांकन किया. इनमें से 2,357 पुरुष उम्मीदवार हैं और महिला उम्मीदवारों की संख्या केवल 258 है. यानी कुल उम्मीदवारों में महिलाएं 10 फीसदी से भी कम हैं.
पार्टियों ने कितनी महिलाओं को दिया मौका
बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने के मामले में सभी बड़ी पार्टियां फिसड्डी साबित हुई हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनडीए ने इस बार 243 में से सिर्फ 34 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया है. बीजेपी और जेडीयू ने 13-13 और चिराग पासवान की एलजेपी (रामविलास) ने पांच महिलाओं को टिकट दिया है. एनडीए में शामिल अन्य दो पार्टियों ने एक-एक महिला को टिकट दिया है.
विपक्षी महागठबंधन की हालत इस मामले में और खराब है. उन्होंने सिर्फ 30 सीटों पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. आरजेडी ने 24 महिलाओं को टिकट दिया था, लेकिन उनमें से एक का नामांकन रद्द हो गया. कांग्रेस ने पांच महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है. बाकी वीआईपी और सीपीआई-एमएल ने एक-एक महिला को ही टिकट दिया है. महागठबंधन के कुल उम्मीदवारों में महिलाओं की हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी है.
महिलाओं को क्यों नहीं दिए जाते टिकट
बिहार में लगभग नौ साल से काम कर रहीं स्वतंत्र पत्रकार काजल महिलाओं को कम टिकट मिलने के पीछे दो कारण बताती हैं. वे कहती हैं, "पहली वजह है कि हम उन्हें योग्य नहीं मानते हैं…मुझे लगता है कि एक नैरेटिव है जो घर और समाज से होते हुए राजनीति तक जाता है कि महिलाओं के जीतने की संभावना उतनी अच्छी नहीं होगी. वो जीत नहीं दर्ज कर पाएंगी.”
वे दूसरी वजह बताती हैं कि "कभी-कभी महिलाएं खुद से ही जूझती रहती हैं क्योंकि उनके ऊपर एक अच्छी मां, एक अच्छी पत्नी और एक अच्छी बहू होने का दबाव होता है, उस दरमियान एक अच्छी महिला नेता का निकलना उतना संभव नहीं है.” वे आगे कहती हैं कि कई बार महिलाएं खुद को असक्षम भी मानती हैं क्योंकि उन्हें वह माहौल नहीं मिला, जिसमें वे अपनी बात खुलकर और मजबूती से रख सकें.
काजल यह भी मानती हैं कि महिलाओं के पास चुनाव लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते, ना उनके पास पर्याप्त पैसा होता है और ना मदद के लिए लोग, तो ऐसे में वे मुकाबला कैसे करेंगी. वे कहती हैं कि महिलाओं को इस बारे में जागरुक करने की जरूरत है कि क्यों उन्हें राजनीति में आना चाहिए और नीति निर्माण में हिस्सेदारी निभानी चाहिए.
महिलाओं को कम टिकट देने पर पार्टियों ने क्या कहा
बिहार में कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई-एमएल विपक्षी महागठबंधन का हिस्सा है. इस पार्टी ने 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें महिला उम्मीदवार सिर्फ एक है. सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में कहा कि उनके पैनल का सबसे कमजोर पहलू यही है कि 20 उम्मीदवारों में सिर्फ एक महिला है. उन्होंने कहा, "कम से कम 5-10 की ओर हमें बढ़ना चाहिए था, लेकिन यह हो नहीं पाया.”
बिहार बीजेपी के प्रदेश महामंत्री राधामोहन शर्मा ने डीडब्ल्यू हिन्दी से कहा कि जहां-जहां महिला दावेदार थीं, वहां बीजेपी ने उन्हें टिकट दिया है. उन्होंने कहा कि जितनी महिलाएं हमारे पास थीं, उन सबको टिकट दे दिया. बिहार में बीजेपी ने 101 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, उनमें से 13 सीटों पर पार्टी ने महिलाओं को टिकट दिया है.
एनडीए गठबंधन में शामिल जेडीयू के प्रवक्ता अरविंद निषाद ने डीडब्ल्यू हिन्दी से कहा कि जहां जेडीयू ने उचित समझा, वहां पर महिलाओं को उम्मीदवार बनाया. उन्होंने कहा, "यह अलग विषय है कि समाज का 50 प्रतिशत महिला आबादी है, उसके अनुरूप टिकट नहीं दिया है लेकिन महिलाओं के विकास का क्रम जारी है और यह एक दिन में नहीं होता है, उसके लिए लगातार काम किया जाता है.”
कहां अटका हुआ है महिला आरक्षण कानून
केंद्र सरकार ने सितंबर, 2023 में ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम' बनाया था, जो लोकसभा, राज्यों की विधानसभा और दिल्ली विधानसभा की एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करता है. हालांकि, इसमें पेच यह है कि यह कानून तत्काल प्रभाव से लागू नहीं हुआ था. सरकार के मुताबिक, इस कानून के लागू होने से पहले देश में जनगणना और परिसीमन होना जरूरी है. इसलिए अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह कानून देश में कब तक लागू होगा.
बीजेपी नेता राधामोहन शर्मा ने भी इस कानून का जिक्र करते हुए कहा कि आने वाले 2029 या 2030 में जब भी चुनाव होंगे तो उसमें महिलाओं का 33 फीसदी आरक्षण मिलेगा. वहीं, सीपीआई-एमएल के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि महिला आरक्षण को तुरंत प्रभाव से लागू कर देना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस कानून के लागू होते ही, महिलाओं को टिकट देना सभी पार्टियों की मजबूरी बन जाएगी.


