बिहार : गया में कोरोना से मरे लोगों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान
सनातन धर्म में मान्यता है कि किसी भी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति तभी मिलती है, जब उस मृत व्यक्ति के नाम पर पितृपक्ष में कोई पिंडदान और श्राद्घ करे

गया (बिहार)। सनातन धर्म में मान्यता है कि किसी भी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति तभी मिलती है, जब उस मृत व्यक्ति के नाम पर पितृपक्ष में कोई पिंडदान और श्राद्घ करे। पितृपक्ष में अपने पूर्वजों और पितरों को पिंडदान और तर्पण करने के लिए लाखों लोग पिंडदान के लिए बिहार के गया पहुंचते हैं, लेकिन कोरोना काल में इस वर्ष सरकार ने पितृपक्ष मेला पर पाबंदी लगा दी थी। सरकार द्वारा पाबंदी लगाए जाने के कारण इस साल देश-विदेश में रहने वाले हिंदू धर्मावलंबी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान नहीं कर सके। आश्विन मास के कृष्णपक्ष में एक पखवाड़े तक आयोजित होने वाला पितृपक्ष मेला इस बार स्थगित कर दिया गया।
भटकती आत्माओं की मुक्ति के लिए इस बार गयाजी में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूरे हिंदू रीति-रिवाज और धार्मिक परंपराओं को निभाते हुए बुधवार को समाजसेवी विमलेंदु चैतन्य ने सामूहिक पिंडदान और तर्पण किया।
उन्होंने बताया, "कोरोना की वजह से हजारों की संख्या में लोगों की मौत हुई है। अकाल मृत्यु को प्राप्त कोरोना संक्रमित मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए भी सामूहिक पिंडदान गयाजी में किया गया। सुशांत सिंह राजपूत की आत्मा की शांति के लिए भी सामूहिक तर्पण और पिंडदान किया गया।"
चैतन्य ने कहा, "यह सौभाग्य है कि हम गया जी की पवित्र भूमि पर जन्म लेने का अवसर ईश्वर ने प्रदान किया। मृत शरीर की आत्मा को मुक्ति आवश्यक है।"
उन्होंने बताया, "इस साल श्रद्घालुओं को अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और पिंडदान का अवसर नहीं मिल पाया। उन सभी आत्माओं की मुक्ति के लिए सामूहिक पिंडदान किया गया। पिछले वर्ष भी हमने सामूहिक पिंडदान और तर्पण किया था।"
यह पिंडदान पंडित रामप्रवेश मिश्रा के निर्देशन में हुआ। उन्होंने बताया कि घटना-दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाओं में शिकार हुए लोग जिनका कोई नहीं, उनके लिए सामूहिक पिंडदान करने का धार्मिक पुस्तकों में उल्लेख मिलता है।


