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बिहार : पटना एम्स तैयार कर रहा श्रवण कुमार, बुजुर्गो के लिए मददगार

बिहार की राजधानी पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ग्रामीण क्षेत्र में बुजुर्गो की देखभाल के लिए युवाओं को 'श्रवण कुमार' के रूप में तैयार कर रहा है

बिहार : पटना एम्स तैयार कर रहा श्रवण कुमार, बुजुर्गो के लिए मददगार
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पटना। बिहार की राजधानी पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ग्रामीण क्षेत्र में बुजुर्गो की देखभाल के लिए युवाओं को 'श्रवण कुमार' के रूप में तैयार कर रहा है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्गों व गरीब, असहायों को सहारा देने के साथ ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है।

पटना एम्स के कम्युनिटी आउटरिच एंड टेलीमेडिसिन विभाग द्वारा प्रारंभ 'श्रवण कुमार योजना' के तहत फिलहाल दूसरे बैच में छह महिला सहित कुल 36 लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। इससे पहले प्रथम बैच में 45 युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।

कम्युनिटी आउटरिच एंड टेलीमेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. अनिल कुमार ने आईएएनएस को बताया कि इसके तहत मैट्रिक पास युवाओं, युवतियों को बुजुर्गों से जुडी बीमारियों सहित प्राथमिक इलाज से संबंधित 120 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

उन्होंने कहा कि इसमें मुख्य रूप से खून जांच, ब्लड प्रेशर, शुगर, थॉयरॉयड, बुखार, डायरिया, इंजेक्शन देने, स्लाइन चढ़ाने सहित अन्य बीमारियों के प्राथमिक उपचारों का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावे प्रायोगिक प्रशिक्षण के तौर पर उन्हें विभिन्न विभागों में भी भेजा जाता है।

इन प्रशिक्षणार्थियों को दवाओं की प्राथमिक जानकारी और बुजुर्गों के हर्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारियों में अपात स्थिति में उठाए जाने वाले कदमों की भी जानकारी दी जाती है।

अनिल बताते हैं कि बिहार में आमतौर पर देखा जाता है कि युवा रोजी-रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में तो चले जाते हैं, लेकिन बुजुर्ग माता, पिता गांव में ही रह जाते हैं। ऐसे में उनकी सबसे बड़ी परेशानी चिकित्सकीय सुविधा को लेकर उत्पन्न होती है। ऐसे में ये युवा अपने गांवों के लिए काफी मददगार साबित हो रहे हैं।

इस प्रशिक्षण के लिए न प्रशिक्षणार्थियों से कोई राशि ली जाती है नहीं कोई राशि एम्स द्वारा दी जाती है।

अनिल कहते हैं कि यहां से प्रशिक्षण पाए युवाओं को अपने गांव में सप्ताह में कम से कम एक दिन सभी बुजुर्गों और बेसहारा लोगों की चिकितसकीय जांच करने का निर्देश दिया जाता है, जिसकी रिपोर्ट वे एम्स के चिकित्सकों और बुजुर्गों के परिजनों को भी भेजते हैं। गंभीर बीमारी सामने आने के बाद उन्हें यहां के चिकित्सकों द्वारा फिर उचित निर्देश दिया जाता है।

डॉ. अनिल बताते हैं कि इस योजना से ग्रामीण क्षेत्रों के बजुर्गो को ही लाभ नहीं हुआ है बल्कि प्रशिक्षण पा चुके युवाओं को भी लाभ पहुंचा है। प्रशिक्षण पाए युवाओं को गांव में स्वास्थ्य जांच करने के एवज में पैसे मिल रहे हैं।

डॉ. अनिल दावा करते हैं कि कई व्यवसायी वर्ग के लोग ऐसे 'श्रवण कुमार' की मांग करते हैं, जिनके एवज में युवाओं को अच्छी रकम मिल रही है। इसके अलावे पहले बैच में ग्रामीण क्षेत्र में सेवा के लिए तैयार किए गए श्रवण कुमारों में से कई निजी अस्पतालों में अटेंडेंट के रूप में कार्य करने लगे हैं।

एम्स ने हालांकि इस बैच से निकलने वाले श्रवण कुमारों को ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करने के लिए शपथ पत्र भरवाने की योजना बनाई है।

प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों की योग्यता के संबंध में बताया जाता है कि प्रशिक्षण के लिए आए लोगों का पुलिस वेरिफिकेशन किया जाता है। अनिल कहते हैं कि इसमें उम्र की कोई बाध्यता नहीं रखी गई है। उन्होंने कहा कि इसमें मुख्य रूप से इसका पूरा ख्याल रखा जाता है कि प्रशिक्षण पाने वालों का कोई अपराधिक रिकॉर्ड नहीं हो।

डॉ. अनिल ने बताया कि मेडिकल कार्यो में दक्ष हो जाने के कारण ऐसे युवाओं की मांग बढ जाती है। डॉ. अनिल यह भी कहते हैं कि फिलहाल कोरोना के इस दौर में भी ऐसे युवा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 'वरदान' साबित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने के बाद सबसे अधिक दिक्कत गांवों में चिकित्सकीय सलाह की हो गई थी। ऐसे प्रशिक्षित युवा इस दौर में काफी कारगर साबित होंगे।


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