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बिहार में दलित वोट बैंक पर नेताओं की नजर

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अब राजनीतिक दल और उनके नेता अपने सारथी की तलाश में नए सियासी ठिकाने देख रहे हैं, जिससे राज्य में नए सियासी समीकरण भी बन रहे हैं. जेडीयू और एलजेपी में बढ़ती तल्खी के बीच एनडीए दलित चेहरे की तलाश में जुट गई है.

बिहार में दलित वोट बैंक पर नेताओं की नजर
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बिहार | बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले जेडीयू की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. जहां एक तरफ एलजेपी उसे आंख दिखा रही है, तो वहीं दूसरी तरफ श्याम रजक तो उसे अलविदा कह चुके हैं. इन दोनों के तल्ख तेवर से ना सिर्फ एनडीए बिखर रही है. बल्कि जेडीयू का सियासी समीकरण भी बिगड़ रहा है. इसकी वजह दलित वोट बैंक है. जी हां बिहार में दलित चेहरा माने जाने वाले श्याम रजक ने सीएम नीतीश कुमार का साथ छोड़कर आरजेडी का दामन थाम लिया है. वहीं एलजेपी भी बाहर जाने के लिए तैयार बैठी है. इस भगदड़ से उसका दलित वोटबैंक भी खिसक सकता है. यही कारण है कि अब रजक की विदाई से होने वाले नुकसान की भरपाई जीतनराम मांझी के जरिए करना चाहती है. पार्टी की कोशिश है कि मांझी को एनडीए में शामिल किया जाए. इसके संकेत उन्होंने खुद दिए है. मांझी ने कहा कि नीतीश कुमार दलित विरोधी हैं तो श्याम रजक इतने दिनों तक उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी के रूप में कैसे काम करते रहे. चुनाव के समय जब वो आरजेडी में चले गए हैं और जेडीयू ने उन्हें मंत्रिमंडल और पार्टी से निकाल दिया है तब वे इस तरह की बातें कर रहे हैं जिसे सही नहीं कहा जा सकता है. मांझी ने कहा कि श्याम रजक मंत्रिमंडल में इतने दिनों तक लाभ लेने के बाद चुनाव के समय में नीतीश कुमार को दलित विरोधी कह रहें हैं, जिसे उचित नहीं ठहराया जा सकता है.जीतनराम मांझी का ये बयान साफ इशारा कर रहा है कि वो एनडीए में शामिल हो सकते हैं. दरअसल, जीतनराम मांझी की घर वापसी को लेकर जेडीयू की तरफ से पिछले कई महीनों से कवायद हो रही है. जेडीयू चाहती है कि मांझी की पार्टी हम का पूरी तरह से जेडीयू में विलय हो जाए. अब मांझी क्या फैसला लेंगे, ये तो आने वाला वक्त बताएगा…लेकिन आरजेडी ने अपना दलित कार्ड खेल दिया है. पार्टी ने संकेत दिए हैं कि रजक को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है, आरजेडी के इस दांव से उसे खासा फायदा हो सकता है. क्योंकि बिहार में अनुसूचित जाति की जनसंख्या लगभग 16 प्रतिशत है. बिहार विधानसभा में कुल आरक्षित सीटें 38 हैं. 2015 में आरजेडी ने सबसे ज्यादा 14 दलित सीटों पर जीत दर्ज की थी. जबकि, जेडीयू को 10, कांग्रेस को 5, बीजेपी को 5 और बाकी चार सीटें अन्य को मिली थी. इसमें 13 सीटें रविदास समुदाय के नेता जीते थे जबकि 11 पर पासवान समुदाय से आने वाले नेताओं ने कब्जा जमाया था.इन आंकड़ों से साफ है कि दलित वोटबैंक नेताओं का समीकरण बना और बिगाड़ सकता है. अब देखना होगा कि एनडीए और महागठबंधन में से किसे फायदा और किसे नुकसान पहुंचता है.


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