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बिहार एपीसोड : किस सियासत का संकेत है

हाल ही में इंडिया गठबन्धन का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी की मदद से अपनी सरकार बनाकर रिकार्ड नौवीं बार मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार (जनता दल यूनाइटेड) ने सोमवार को बिहार विधानसभा में विपक्ष के बॉयकॉट के बीच विश्वास मत तो हासिल कर लिया

बिहार एपीसोड : किस सियासत का संकेत है
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हाल ही में इंडिया गठबन्धन का साथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी की मदद से अपनी सरकार बनाकर रिकार्ड नौवीं बार मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार (जनता दल यूनाइटेड) ने सोमवार को बिहार विधानसभा में विपक्ष के बॉयकॉट के बीच विश्वास मत तो हासिल कर लिया, लेकिन यह एपीसोड अनेक सवाल छोड़ गया है। बेहद निर्लज्जता से दलबदल के बावजूद समर्थन हासिल कर लेना भारतीय राजनीति के उस चेहरे को उजागर करता है जिसमें एकदम विपरीत विचारधारा के दलों के साथ अपवित्र गठजोड़ कर सत्ता बनाई और बचाई जाती है। यह सियासी माहौल दुर्भाग्यपूर्ण तो कहा जा सकता है पर वहीं दूसरी तरफ़ जिस प्रकार से राष्ट्रीय जनता दल के नेता व पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ कांग्रेस एवं सीपीआई (एमएल) के सदस्य एकजुट रहे उससे यह भी स्पष्ट है कि बिहार में एक मजबूत विपक्ष जनता के पक्ष में लड़ने के लिये तैयार खड़ा है। इस गठबन्धन ने वह लामबन्दी भी तय कर दी है जिसके आधार पर लोकसभा का चुनाव लड़ा जायेगा, कि कौन किस पक्ष में खड़ा है।
उल्लेखनीय है कि 90 के दशक में पहले समता पार्टी और फिर जेडीयू के रूप में नीतीश बाबू का भाजपा के साथ किया गठबन्धन कई मौकों पर बनता व टूटता रहा।

अंतिम बार उनका राजद से मेल हुआ जिन्होंने मिलकर 17 माह तक सरकार चलाई। गुपचुप तरीके से एक बार फिर इस साल की 28 जनवरी को उन्होंने अपनी सरकार का इस्तीफा दिया व उसी शाम नवीं मर्तबा शपथ ले ली। उन्हें फिर से भाजपा ने समर्थन देना मंजूर किया जिसे गरियाते हुए वे डेढ़ वर्ष पहले ही अलग हुए थे। झारखंड में जहां सीएम हेमंत सोरेन (झारखंड मुक्ति मोर्चा) की ईडी द्वारा गिरफ्तारी के कारण उनकी जगह पर आये चंपाई सोरेन को बहुमत साबित करने के लिये केवल तीन दिन दिये गये, वहीं नीतीश कुमार को 15 दिन मिले क्योंकि सहयोगी भाजपा जो है। विश्वास मत पाने में कोई दिक्कत न हो इसके लिये पहले अविश्वास प्रस्ताव लाकर विधानसभा अध्यक्ष अवध बिहारी चौधरी (राजद) को हटाया गया। कार्यवाही का संचालन महेश्वर हजारा (जेडीयू) ने किया।

इसके पहले प्रस्ताव के खिलाफ बोलते हुए पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने अपने जबरदस्त भाषण में नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, सम्राट चौधरी आदि के एक दूसरे के बारे में विचारों को जिस तरह से बेपर्दा किया उससे उन्हें एवं उनकी पार्टियों को सदन में अच्छी-खासी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा। यह संदेश जनता तक साफ गया है जिसके बीच तेजस्वी यादव ने जाने की बात की। तेजस्वी यादव ने कहा है कि जिस मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से नीतीश ने इंडिया गठबन्धन बनाया था, उनकी पार्टी (आरजेडी) व सहयोगी दल (कांग्रेस, सीपीआई-एमएल) उस दिशा में बढ़ते हुए न केवल केन्द्र से बल्कि बिहार से भी भाजपा को उखाड़ फेंकेंगे।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उनकी पार्टी (जेडीयू) और भाजपा साथ मिलकर वर्ष 2005 से काम कर रहे हैं। उन्होंने याद दिलाया कि पहले जब लालूप्रसाद यादव सीएम थे, तब प्रदेश में अराजकता थी, हिंदू-मुस्लिम झगड़े होते थे और कोई भी रात को घर से निकलता नहीं था। उन्होंने तेजस्वी यादव द्वारा हर काम का श्रेय लेने का विरोध किया। नीतीश कुमार ने कहा कि वे तो प्रतिपक्ष के लोगों को एकजुट कर रहे थे, परन्तु जब विरोधी दल खुद ही एकत्र नहीं हो रहे थे तो उन्होंने भाजपा-एनडीए के साथ जाना उचित समझा। उन्होंने कहा कि सरकार के रूप में वे सभी तबकों व वर्गों के काम करते रहेंगे। उन्होंने आश्वस्त किया कि अब वे भाजपा के साथ ही रहेंगे और कहीं नहीं जाएंगे।

वैसे तो नीतीश कुमार के लिये कुर्सी के लिये बार-बार पाला बदला है परन्तु उनका अच्छा प्रदर्शन, चुनावी तथा सदन के भीतर, राजद के साथ गठबन्धन होने पर ही दिखा है। इस बार भी उनकी सरकार ने बड़े पैमाने पर नौकरियां देने के कारण लोकप्रियता हासिल की थी। साथ ही वे सामाजिक न्याय की दिशा में जातिगत जनगणना की बात मुखर होकर उठाते रहे हैं जिसका समर्थन अनेक गैर भाजपायी दल भी कर रहे हैं। इतना ही नहीं, जिस इंडिया गठबन्धन के मुख्य निर्माताओं के तौर पर नीतीश कुमार को देखा जाता है, उसका भी यह प्रमुख एजेंडा है।

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इसे जोर-शोर से उठा रहे हैं। इसे भाजपा-एनडीए के धु्रवीकरण की काट के रूप में देखा जाता है। फिर, ऐसे वक्त में जब संयुक्त प्रतिपक्ष की कोई चर्चा भी नहीं कर रहा था, तब नीतीश कुमार ही आगे बढ़े थे। पटना में उनकी पहल पर इंडिया गठबन्धन की जून, 2023 को पहली बैठक बुलाई गई थी जिसमें 16 दल शामिल हुए थे। इसके बाद यह कारवां बढ़ता चला गया। उनकी मेहनत से बेंगलुरु (जुलाई, 2023) एवं मुंबई (अगस्त-सितम्बर, 2023) और आखिरकार पिछले साल के अंत में दिल्ली में इसकी बैठकें हुईं। 28 दलों को मिलाकर बने इस महागठबन्धन को उनके छोड़ जाने का कारण यह माना जाता है कि वे इंडिया के संयोजक व प्रधानमंत्री का चेहरा बनना चाहते थे। हालांकि वे कहते रहे कि उनकी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है और वे सिर्फ भाजपा को सत्ता से हटाना चाहते हैं।

नीतीश कुमार की जेडीयू जैसे घटक दल के साथ छोड़ने और कुछ अन्य पार्टियों को लेकर भी इसी तरह के शक-ओ-शुबहों के बावजूद इंडिया का आकार एवं ताकत इतनी बढ़ चुकी है कि वह भाजपा व उसके नेतृत्व में बने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) को लोकसभा चुनाव में चुनौती व टक्कर देने में सक्षम दिखता है। तो भी, बिहार की परिघटना अनैतिक गठबन्धनों का अस्तित्व रहने और उसके सदनों में विश्वास जीतने की तस्दीक करता है, जो बतलाता है कि भारतीय लोकतंत्र की मूल्यगत व नीतिपरक लड़ाई को बहुत आगे ले जाने की आवश्यकता है।


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