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बिहार कांग्रेस ने प्रवासी मजदूरों को 10-10 हजार रुपये देने की मांग की

बिहार युवा कांग्रेस ने शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखकर जहां कोरोना संक्रमण काल के दौरान मुख्यमंत्री आवास से नहीं निकलने को लेकर कटाक्ष किया है

बिहार कांग्रेस ने प्रवासी मजदूरों को 10-10 हजार रुपये देने की मांग की
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पटना | बिहार युवा कांग्रेस ने शनिवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक पत्र लिखकर जहां कोरोना संक्रमण काल के दौरान मुख्यमंत्री आवास से नहीं निकलने को लेकर कटाक्ष किया है वहीं प्रवासी मजदूरों को लेकर निशाना भी साधा है। युवा कांग्रेस ने प्रत्येक प्रवासी मजदूर को तत्काल 10 हजार रुपये देने की मांग भी की है। बिहार युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने नीतीश कुमार को लिखे पत्र में कहा कि काफी दिनों से आप अपने मुख्यमंत्री आवास के बाहर नहीं निकले हैं। पत्र में कांग्रेसी नेता ने कटाक्ष करते हुए कहा, "आपकी बैठकों की कई तस्वीरें और चुनिंदा क्वोरंटीन सेंटर के लोगों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बातचीत जरूर सार्वजनिक की गई लेकिन उन क्वोरंटीन सेंटर की आपके द्वारा सुधि नहीं ली गई, जिस क्वोरंटीन सेंटर में विषैला सांप निकला था।"

पूर्व युवा कांग्रेस अध्यक्ष ने पत्र में यह भी कहा कि उन क्वोरंटीन सेंटर के लोगों की भी मुख्यमंत्री द्वारा सुधि नहीं ली गई जिसमें सूखा भात खाकर लोग दिन काट रहे।

पत्र में आगे लिखा गया, "गया के क्वोरंटीन सेंटर में एक युवक ने आत्महत्या कर ली। बिहार के क्वोरंटीन सेंटर की कहानी तो यहां तक चली की खाने में बिच्छु तक पाया गया। क्या मुख्यमंत्री जी ऐसे क्वोरंटीन सेंटर के लोग खुद को अभागा नहीं मानेंगे?"

पत्र में सवालिया लहजे में कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार अभी तक 25-30 लाख से अधिक श्रमिक बाहरी राज्यों से वापस बिहार आये हैं, जबकि अभी तक राज्य में कोरोना की जांच एक लाख लोगों की भी नहीं हुई है। जब जांच ही नहीं हुई है, तो कोरोना फैलाने का आरोप इन प्रवासी मजूदरों पर क्यों लगाया जा रहा है?

ललन कुमार ने पत्र में मांग करते हुए लिखा, "बाहर से आने वाले सभी प्रवासी मजदूरों को और राज्य के सभी गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के बैंक खाते में 10 हजार रुपये तत्काल भेजे जाएं तथा जब तक इन प्रवासी मजदूरों को रोजगार नहीं मिलता, तब तक उन्हें पेंशन या भत्ता के तौर पर प्रतिमाह 2500 रुपये दिया जाए।"

उन्होंने कहा कि आखिर यही मजदूर राष्ट्र निर्माता हैं। दुर्भाग्य है कि ये आज पिछली पंक्ति में खड़े हैं।


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